अमृतसर। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के पांचवीं बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी की अगुआई में आयोजित आम इजलास में आठ प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में केंद्र और राज्य सरकार से सिखों के धार्मिक, सामाजिक और सांविधानिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई है।
प्रस्तावों में कहा गया कि नदियों के पानी पर पंजाब का हक है। इसके अलावा 1984 के सिख विरोधी दंगों को नरसंहार घोषित और श्री करतारपुर साहिब काॅरिडोर को खोलने की मांग भी की गई। बैठक की शुरुआत श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश, अरदास और पाठ से हुई। इसके बाद दिवंगत नेताओं को श्रद्धांजलि दी गई।
- पहले प्रस्ताव में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की 350वीं शहीदी शताब्दी को समर्पित श्रद्धांजलि दी गई। प्रस्ताव में कहा गया कि गुरु तेग बहादुर साहिब ने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपना शीश बलिदान कर दिया था लेकिन आज देश में सिख पहचान और प्रतीकों जैसे केश, कड़ा और कृपाण को बार-बार चुनौती दी जा रही है जो गुरु साहिब की शहादत का अपमान है। केंद्र सरकार से मांग की कि देशभर में सिखों के धार्मिक अधिकारों और मर्यादाओं की रक्षा की जाए और उन्हें बिना किसी रोक-टोक अपने विश्वास के अनुसार जीवन जीने की आजादी दी जाए।
दूसरे प्रस्ताव में पंजाब के हकों से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता दी गई। एसजीपीसी अध्यक्ष ने कहा कि केंद्र सरकार लगातार पंजाब के संसाधनों और नदियों के जल पर अन्य राज्यों को अनुचित लाभ पहुंचा रही है। सतलुज-यमुना लिंक नहर का निर्माण पूरी तरह अवैध है और इसे रोकने के लिए केंद्र तत्काल कदम उठाए। चंडीगढ़ को पूर्ण रूप से पंजाब को सौंपने, भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में पंजाब की बराबर भागीदारी बनाए रखने और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देने की मांग भी रखी गई।
- तीसरे प्रस्ताव में हाल ही में आई बाढ़ से हुए भारी नुकसान पर गहरी चिंता जताई गई। इजलास में कहा गया कि पंजाब सरकार राहत कार्यों में असफल रही और पीड़ित परिवारों की मदद समाजसेवी और धार्मिक संस्थाओं ने की।
सरकार को समय पर नदियों के बांधों की मरम्मत और जल निकासी व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए थी लेकिन इसकी अनदेखी की गई। करतारपुर कारिडोर खोलने की मांग चौथे प्रस्ताव में केंद्र सरकार से करतारपुर साहिब कारिडोर को तुरंत फिर से खोलने की मांग की गई। दोनों देशों के बीच हालात सामान्य हैं, ऐसे में इस पवित्र मार्ग को बंद रखना संगत की भावनाओं के विपरीत है। सजा पूरी कर चुके सिखों को जेल में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन पांचवें प्रस्ताव में जेलों में बंद सिखों की रिहाई की मांग की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि जिन सिख कैदियों ने अपनी सजा पूरी कर ली है उन्हें जेल में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
एसजीपीसी ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि यदि इस पर जल्द निर्णय नहीं लिया गया तो सिख पंथ अपने परंपरागत निर्णय लेने के लिए बाध्य होगा। सिख ऐतिहासिक स्थलों के विवादों का समाधान छठे प्रस्ताव में केंद्र सरकार से सिख ऐतिहासिक गुरुद्वारों से जुड़े विवादों को तत्काल हल करने की अपील की गई। इसमें गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी साहिब हरिद्वार, गुरुद्वारा डांग मार साहिब सिक्किम, और गुरुद्वारा बावली मठ पुरी (ओडिशा) के मामलों का विशेष उल्लेख किया गया। पीयू सीनेट और सिंडिकेट को खत्म करने का विरोध सातवें प्रस्ताव में केंद्र सरकार की ओर से पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) चंडीगढ़ की सीनेट और सिंडिकेट को समाप्त करने के निर्णय की तीखी आलोचना की गई। एसजीपीसी ने इसे संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ बताया।

सिख नरसंहार के दोषियों मिले सजा आठवें प्रस्ताव में 1984 के दिल्ली, कानपुर और बोकारो में हुए सिख दंगों को सिख जनसंहार घोषित करने की मांग की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सुनियोजित साजिश के तहत सिखों पर हमले करवाए जिनके दोषी आज भी सजा से बच रहे हैं। उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
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