दिल्ली के एक बुजुर्ग दंपति को अपने सपनों का घर पाने के लिए पूरे 18 साल इंतजार करना पड़ा. 80 और 73 वर्षीय इस दंपति ने 2007 में अपनी जीवनभर की कमाई से गाजियाबाद की ट्रॉनिका सिटी में एक फ्लैट खरीदा था, लेकिन बिल्डर ने न तो प्रोजेक्ट पूरा किया और न ही उन्हें घर का कब्जा दिया. लंबी कानूनी लड़ाई और अदालत के हस्तक्षेप के बाद अब जाकर उन्हें न्याय मिला है.
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सपनों का घर जो कागजों में ही रह गया
दंपति ने 35 लाख रुपये में 3 बीएचके फ्लैट बुक कराया था. इरादा था कि रिटायरमेंट के बाद वहीं जीवन बिताएंगे. लेकिन साल दर साल बीतते गए और फ्लैट का सपना सिर्फ कागजों पर ही रह गया.
बिल्डर का डबल धोखा
2022 में बिल्डर ने एक नया रास्ता निकाला. उसने दंपति को फ्लैट वापस खरीदने (बायबैक) का प्रस्ताव दिया, लेकिन कीमत रखी 34 लाख रुपये — यानी 2007 की कीमत से भी कम. उस समय बाजार में ऐसे फ्लैट्स की कीमत लगभग दोगुनी थी. बिल्डर ने दस्तावेज अपने पास ले लिए और कुछ रकम दी, बाकी भुगतान से बचता रहा. दंपति को धमकियां भी दी गईं. वकील सुमित गहलोत ने अदालत में इसे डबल धोखा बताया.
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पुलिस से अदालत तक की लड़ाई
2023 में दंपति ने दिल्ली पुलिस में शिकायत की, लेकिन इसे सिविल मामला बताकर FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया गया. हार न मानते हुए दंपति ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. वकील गहलोत ने अदालत में साबित किया कि बिल्डर का इरादा शुरू से ही धोखा देने का था. अदालत ने पुलिस को दोबारा जांच के आदेश दिए.
आखिरकार हुआ समझौता
अदालत की सख्ती और दबाव के चलते बिल्डर को झुकना पड़ा और उसने दंपति को बेहतर भुगतान का प्रस्ताव दिया. दंपति इस समझौते से संतुष्ट हुए और 13 अगस्त 2025 को अदालत को सूचित किया कि वे अब FIR की मांग वापस ले रहे हैं. 18 साल लंबी इस कानूनी लड़ाई के बाद मिले इंसाफ ने न सिर्फ दंपति को राहत दी, बल्कि उन हजारों होमबायर्स के लिए भी उम्मीद जगाई है, जो सालों से अपने घरों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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