सदफ हामिद, भोपाल। माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपना भविष्य त्याग देते हैं। अपने बच्चे को इस उम्मीद में पालते हैं कि बुढ़ापे में वो उनका सहारा बनेगा। लेकिन आज के समय में बच्चे अपने जन्मदाता को भूल जा रहे हैं। उन्हें घर से निकालकर वृद्धाश्रम भेज रहे हैं। यह कहानी है भोपाल के अपना घर वृद्ध आश्रम में रह रहे बुजुर्गों की है।
घर से निकाले गए बुजुर्ग जीते जी अपना श्राद्ध पिंडदान करने को मजबूर हैं। पिंडदान करने का हक तो हिंदू धर्म में बच्चों को है। लेकिन ये बुजुर्ग अपने ही बच्चों से तिरस्कार पाकर वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। बुजुर्ग खुद इस उम्मीद में पिंडदान कर रहे हैं कि कम से कम मरने के बाद भगवान के पास जाकर मोक्ष्य की प्राप्ति कर सके। अपना घर वृद्ध आश्रम में रहने वाले 5 बुजुर्गों ने खुद का पिंडदान किया।
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जिन्होंने हमें जीते जी छोड़ा वो मरने के बाद हमारा पिंडदान क्या करेंगे
पिंडदान कर रहे बुजुर्गों ने कहा कि जिन्होंने हमें जीते जी छोड़ दिया। घर से निकाल कर वृद्धाश्रम लाकर फेंक दिया। वो मरने के बाद हमारा पिंडदान क्या करेंगे। अब उम्मीद नहीं बची है। इसलिए हमने खुद ही श्राद्ध के महीने में अपना पिंडदान करने का फैसला किया है। ये कहते हैं बुजुर्गों के आंखों में आंसू आ जाते हैं।
कोई 20 तो कोई 11 साल से रह रहे
अपना घर वृद्ध आश्रम में बुजुर्ग कोई 20 साल तो कोई 11 सालो से रह रहा है। लेकिन अब तक उनके अपनों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, जिसके चलते वृद्ध आश्रम को ही अपना घर मान बैठे बुजुर्गों ने श्राद्ध के महीने में स्वयं का श्राद्ध किया।
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