पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासी मैदान में घमासान मचा हुआ है। चुनाव नजदीक आते ही महागठबंधन और एनडीए दोनों खेमों में सीट बंटवारे को लेकर जबरदस्त रस्साकशी चल रही है। हर घटक दल अपने हिस्से की ज्यादा से ज्यादा सीटें मांग रहा है, जिससे गठबंधन नेतृत्व के सामने मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि सीटें न मिलने पर कुछ छोटे दल अंतिम वक्त में पाला बदल सकते हैं।

महागठबंधन में फिलहाल सात पार्टियां

महागठबंधन में फिलहाल सात पार्टियां शामिल हैं, जिनमें से हर कोई भरपूर सीटों की मांग कर रहा है। पिछली बार आरजेडी को 144, कांग्रेस को 70, सीपीआई-एमएल को 19 और सीपीआई-सीपीएम को कुल 10 सीटें दी गई थीं। इस बार कांग्रेस अपनी पिछली 70 सीटों से कम पर तैयार नहीं है, वहीं सीपीआई-एमएल ने सीधे 45 सीटों की मांग कर दी है। वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी 60 सीटों की मांग पर अड़े हैं। नई साथी बनी पशुपति पारस की आरएलजेपी और वामपंथी दल भी पिछली संख्या से नीचे जाने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में सहयोगियों की कुल मांग 185-190 सीटों तक पहुंच रही है। अगर ये मांगे मानी जाती हैं तो आरजेडी को खुद के लिए महज 55-60 सीटें ही मिल पाएंगी, जो कि नेतृत्वकारी दल होने के नाते वह स्वीकार नहीं कर सकती।

गठबंधन की एकजुटता खतरे में पड़ सकती

दूसरी ओर, एनडीए में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। खासतौर पर उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम में असंतोष के सुर उठने लगे हैं। बोर्ड और आयोगों में उपेक्षा और अब सीट बंटवारे में उम्मीद से कम सीट मिलने की आशंका ने उनकी नाराजगी को हवा दी है। आरएलएम कम से कम 15 सीटों की मांग कर रही है। यदि एनडीए उनकी मांग पूरी नहीं करता तो यह माना जा रहा है कि कुशवाहा महागठबंधन का रुख कर सकते हैं। महागठबंधन पहले से ही कुशवाहा वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम कर रहा है। आरजेडी ने लोकसभा में अभय कुशवाहा को टिकट देकर उन्हें सांसद बनवाया और पार्टी का नेता भी बनाया, जिससे यह संदेश गया कि महागठबंधन कुशवाहा समाज को अहमियत देता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि टिकट बंटवारे का फॉर्मूला तय होते ही दोनों गठबंधनों में घमासान तय है। हर दल चाहता है कि उसे उसका ‘वाजिब हक’ मिले, लेकिन सीमित सीटों में यह मुमकिन नहीं दिखता। इस वजह से गठबंधन की एकजुटता खतरे में पड़ सकती है और नए समीकरण बन सकते हैं।