रोहित कश्यप, मुंगेली। शिवनाथ नदी के जल के दूषित होने से लाखों मछलियों की मौत के बाद अब जाकर पर्यावरण संरक्षण मंडल की नींद खुली है. मंडल की टीम ने जांच के लिए नदी जल का सैंपल लिया है. वहीं दूसरी ओर भाटिया वाइन मर्चेंट से निकलने वाले जहरीले और बदबूदार अपशिष्ट से परेशान धुमा और आस-पास के गांव के लोगों ने गुस्से का इजहार किया है. इस बीच विहिप और बजरंग दल ने शराब फैक्ट्री संचालक के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है. इसे भी पढ़ें : KFC, Pizza Hutt और Momos Adda पर खाद्य विभाग का छापा: एक ही फ्रीजर में मिले वेज और नॉनवेज…

पर्यावरण संरक्षण मंडल की टीम ने शुक्रवार को भाटिया वाइन्स फैक्ट्री के आसपास के तीन गांव से शिवनाथ नदी का जल सैम्पल के रूप में लिया गया है. इस दौरान आबकारी विभाग की संयुक्त टीम भी मौजूद थी. इधर शिवनाथ नदी के दूषित जल से मछलियों के साथ मवेशियों की मौत से धुमा स्थित भाटिया वाइन मर्चेंट के आसपास बसे गांवों के लोग आक्रोशित हैं.

वहीं विहिप व बजरंग दल ने शिवनाथ के दूषित जल से दर्जन भर मवेशियों की मौत की बात कहते हुए सरगांव थाने में भाटिया वाइन फैक्ट्री के संचालक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. विहिप और बजरंग दल का आरोप है कि भाटिया शराब फैक्ट्री के अपशिष्ट पदार्थ शिवनाथ नदी में छोड़ने से जल दूषित हुआ है, जिसे पीकर गौवंश की मौत हुई है.

प्रशासन का नोटिस कचरे के डब्बे में

मुंगेली जिले के पथरिया अनुविभाग के एसडीएम भरोसा राम ठाकुर ने करीब 2 माह पूर्व स्थानीय लोगों की शिकायत पर दंड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 133 (1) (च) के तहत सरगांव क्षेत्र के धुमा स्थित भाटिया शराब फैक्टी के संचालक को शोकॉज नोटिस जारी कर जवाब मांगा था, जिसका प्रबधंक की ओर से आज तक कोई जवाब नहीं दिया गया है. यह दर्शाता है कि भाटिया वाइन फैक्ट्री संचालक के लिए प्रशासन का नोटिस कोई मायने नहीं रखता, या फिर जिम्मेदार अधिकारियों के फैक्ट्री संचालक पर शिकंजा कसने में हाथ-पैर फूल रहे हैं.

नोटिस का क्यों कर रहे थे इंतजार

स्थानीय लोगों का कहना है कि नोटिस के जवाब का इंतजार करने की बजाए अगर अव्यवस्था को दुरुस्त किया गया होता, तब यह स्थिति निर्मित नहीं होती. इसके अलावा उसी समय एसडीएम ने बिलासपुर पर्यावरण संरक्षक मंडल को पत्र जारी कर नदी जल की तत्काल जांच रिपोर्ट मांगा था. जांच नहीं हुई तो रिपोर्ट का सवाल ही पैदा नहीं होता. ग्रामीणों का कहना है कि यदि उसी समय नदी जल की जांच हो गई होती तो बेजुबान जलीय जीव-जंतुओं की मौत नहीं होती.