रायपुर। रिएजेंट और मेडिकल उपकरण खरीदी में सरकार को अरबों की चपत लगाने के मामले में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने एफआईआर दर्ज की है। एफआईआर दर्ज करने के बाद ईओडब्ल्यू ने घोटाले की स्क्रिप्ट लिखने वाले मोक्षित कॉरपोरेशन के कई ठिकानों पर आज दबिश दी है। खबर है कि ईओडब्ल्यू ने कई दस्तावेज बरामद किए हैं। ईओडब्ल्यू ने अपनी एफआईआर में स्वास्थ्य महकमे के आला अधिकारियों के खिलाफ भी अपराध दर्ज किया है। एफआईआर में स्वास्थ्य संचालक और सीजीएमएससी की एमडी पर गंभीर टिप्पणी की गई है। इस एफआईआर के बाद यह माना जा रहा है कि जांच की जद में कई आला अफसर आ सकते हैं। चर्चा है कि इस घोटाले में शामिल रहे लोगों की जल्द गिरफ्तारियां होंगी। ईओडब्ल्यू की शुरुआती जांच में यह तथ्य भी सामने आया है कि अफसरों की मिलीभगत से सरकार को अरबों रुपए की चपत लगाई गई।

राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो और एंटी करप्शन ब्यूरो की एफआईआर के मुताबिक, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अंतर्गत वर्ष 2021 में हमर लैब की स्थापना (जिला स्तरीय एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्तरीय) के तहत आवश्यक उपकरणों, मशीनों आदि की खरीद के लिए विभाग द्वारा निर्देश जारी किया गया था, जिसके तहत आवश्यक उपकरणों/मशीनों आदि का आकलन कर संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के माध्यम से सीजीएमएससी को खरीदी कर आपूर्ति करने निर्देशित किया गया था।

एफआईआर के अनुसार, 11 जनवरी 2022 को संचालक स्वास्थ्य सेवाएं ने उक्त मशीन और रिएजेंट को खरीद कर आपूर्ति के लिए सीजीएमएससी को पत्र के माध्यम से सूचित किया था। सीजीएमएससी द्वारा मार्च-अप्रैल 2023 में मशीनों एवं रिएजेंट की खरीद की गई थी। रिएजेंट की आवश्यकता के समुचित आकलन किए बिना उक्त रिएजेंट की खरीद स्थापित प्रक्रियाओं का पालन न करते हुए की गई। वहीं संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं ने उपकरण और मशीनों की आवश्यकता के संबंध में आकलन करते समय जिलों के स्तर पर अध्ययन नहीं किया और मशीनों की स्थापना के लिए संबंधित संस्था में उचित स्थान की उपलब्धता, बिजली आपूर्ति, कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था का आकलन किए बिना मांग पत्र जारी किया गया।

एफआईआर के अनुसार, उपरोक्त मशीनों को उपयोग करने के लिए रिएजेंट की आवश्यकता होती है, इसके लिए रिएजेंट का स्पेसिफिकेशन, उसकी संस्थावार मात्रा का मूल्यांकन करने की जिम्मेदारी संचालक स्वास्थ्य सेवाएं की होती है। संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के द्वारा संचालनालय स्तर पर विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया। जिनके द्वारा रिएजेंट की मात्रा का निर्धारण संस्थावार किया गया। यह एक प्रकार का टेबल टॉप एक्सरसाइज था। किसी प्रकार की दवाई/रिएजेंट इत्यादि की आवश्यकता का निर्धारण की स्थापित पद्धति यह है कि संस्थावार अपनी आवश्यकता ऑनलाइन मॉडल DPDMIS में इंद्राज करती है, जिसका संकलन कर संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं की विशेषज्ञ समिति उसको अंतिम रूप देती है। रिएजेंट के लिए DPDMIS मॉडल नहीं था, किंतु संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के द्वारा ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया जिससे संस्थावार रिएजेंट की आवश्यक मात्रा का एनालिसिस हो सके। संचालक स्वास्थ्य सेवाएं चाहती तो पहले DPDMIS में यह मॉडल डेवलप करवा सकती थीं या गूगल शीट से संस्थावार आवश्यक मात्रा की जानकारी आहूत कर सकती थीं। किंतु ऐसा नहीं किया गया, जिसके कारण आवश्यकता से कहीं अधिक रिएजेंट की खरीदी की मात्रा का निर्धारण किया गया।

यह भी जानकारी प्राप्त हुई है कि रिएजेंट कय करने हेतु जो इंडेंट दिया गया, उसे दिए जाने के पूर्व संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के द्वारा न तो बजट उपलब्धता सुनिश्चित की गई और न ही किसी प्रकार का प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त किया गया। शासन को संज्ञान में लाए बिना लगभग 411 करोड़ की खरीदी शासन के ऊपर निर्मित की गई।

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व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने 27 दिन में खरीदी की प्रक्रिया पूरी

एफआईआर के मुताबिक, सीजीएमएससी ने पूरी खरीद के लिए आदेश सिर्फ 26-27 दिन के अंतराल में जारी कर दिया था, लेकिन इन रिएजेंट की रख-रखाव की कोई व्यवस्था नहीं थी, फिर भी रिएजेंट प्रदायकर्ता के द्वारा संपूर्ण रिएजेंट एक ही जगह सभी निर्धारित स्वास्थ्य केंद्रों में भंडारण कर दिया गया। इस प्रकार सीजीएमएससी के अधिकारियों के द्वारा रिएजेंट के आपूर्तिकर्ता को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने की दृष्टि से शासन की स्थापित प्रक्रिया का पालन न करते हुए रिएजेंट के आपूर्तिकर्ता को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के लिए कार्य किया गया।

एफआईआर के मुताबिक, जिन रिएजेंटों के भंडारण के लिए रेफ्रिजरेटर की आवश्यकता थी और उनका भंडारण 4°C पर किया जाना था, क्या इनके क्रय आदेश जारी करने के पूर्व आपके पास यह जानकारी थी कि सामग्री प्रदाय हेतु निर्धारित केंद्रों में रेफ्रिजरेटर उपलब्ध था? यदि नहीं, तो उक्त सामग्री कहां रखी गई है और क्या वह आज की तारीख में उपयोग के लायक है अथवा नहीं? इस संबंध में यह जानकारी स्पष्ट है कि सीजीएमएससी को 27 जून 2023 को यह ज्ञात था कि सुविधा केंद्रों में आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। उनके द्वारा रिएजेंट का पहली बार खरीदी का आदेश जुलाई में जारी किया गया। इससे स्पष्ट है कि उनके द्वारा इस संबंध में पूरी जानकारी होते हुए भी ऐसे रिएजेंट का क्रय आदेश पूरी मात्रा में जारी किया गया। सीजीएमएससी के संज्ञान में यह बात थी और वह इस मामले की विशेषज्ञ संस्था है, इसलिए उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि भंडारण एवं वितरण का क्रम उपयुक्त रहे। यही त्रुटि रेफ्रिजरेटर की आपूर्ति और उनमें भंडारित होने वाले रिएजेंट के संबंध में की गई है। रेफ्रिजरेटर का प्रदाय आज तक नहीं किया जा सका है, लेकिन रिएजेंट की आपूर्ति जुलाई से दिसंबर के मध्य की जा चुकी है। इससे स्पष्ट रूप से सीजीएमएससी द्वारा वास्तविक तथ्यों की अनदेखी परिलक्षित हो रही है।

मामले की जांच में यह पाया गया कि उपरोक्त मशीनों को उपयोग करने के लिए रिएजेंट की आवश्यकता होती है। इसके लिए रिएजेंट का स्पेसिफिकेशन, उसकी संस्थावार मात्रा मूल्यांकन करने की जिम्मेदारी संचालक स्वास्थ्य सेवाएं की होती है। संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के द्वारा संचालनालय स्तर पर विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया, जिनके द्वारा रिएजेंट की मात्रा का निर्धारण संस्थावार किया गया। यह एक प्रकार का टेबल टॉप एक्सरसाइज था। किसी प्रकार की दवाई/रिएजेंट इत्यादि की आवश्यकता का निर्धारण की स्थापित पद्धति यह है कि संस्थावार अपनी आवश्यकता ऑनलाइन DPDMIS में इंद्राज करती है। जिसका संकलन कर संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं की विशेषज्ञ समिति उसको अंतिम रूप देती है। जांच में यह बात भी सामने आई कि रिएजेंट के लिए DPDMIS मॉडल नहीं था, लेकिन संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के द्वारा ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया जिससे संस्थावार रिएजेंट की आवश्यक मात्रा का एनालिसिस हो सके। संचालक स्वास्थ्य एवं सेवाएं चाहती तो पहले DPDMIS में मॉडल को डेवलप करवा सकती थी या गूगल शीट से संस्थावार आवश्यक मात्रा की जानकारी मंगवा सकती थी। हालांकि ऐसा नहीं किया गया, जिसके कारण आवश्यकता से कहीं अधिक रिएजेंट की खरीदी की मात्रा का निर्धारण किया गया।

उपरोक्त मात्रा का निर्धारण करने के बाद संचालक स्वास्थ्य एवं सेवाएं ने CGMSC को रिएजेंट की खरीद के लिए 10 जनवरी 2022 को इंडेंट दिया। इससे पहले पूर्व संचालक स्वास्थ्य एवं सेवाएं ने न तो बजट की उपलब्धता सुनिश्चित की और न ही किसी प्रकार का प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त किया। यानी बिना शासन के संज्ञान में लाए लगभग 411 करोड़ का liability शासन के ऊपर निर्मित की गई।

एफआईआर के मुताबिक, संचालक स्वास्थ्य एवं सेवाएं ने जो इंडेंट दिया था, उसमें उन्होंने यह उल्लेख किया कि खरीदी का आदेश 2 भागों में दिया जाए। लेकिन रिएजेंट की पूर्ति का शेड्यूल ऑफ डिलीवरी का निर्धारण न तो संचालक स्वास्थ्य एवं सेवाएं ने किया और न ही CGMSC ने किया। दूसरी ओर, CGMSC ने पूरी मात्रा की खरीदी का आदेश सिर्फ 26 से 27 दिनों के अंदर जारी कर दिया। इसके बाद रिएजेंट सप्लाई करने वाले ने पूरा माल एक ही जगह सभी निर्धारित स्वास्थ्य केंद्रों में भंडार कर दिया। लेकिन इन जगहों पर इनके रख-रखाव की कोई व्यवस्था नहीं थी। इससे ऐसा परिलक्षित होता है कि रिएजेंट के आपूर्तिकर्ता को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने की दृष्टि से निर्धारित सतर्कता एवं स्थापित शासन की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।

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मूल्य से कहीं अधिक कीमत पर की गई खरीदी

एफआईआर के मुताबिक, जांच के दौरान यह बात सामने आई कि ब्लड सैंपल कलेक्शन करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली EDTA ट्यूब को मोक्षित कॉरपोरेशन से 2352 रुपये प्रति नग के भाव से खरीदा गया है, जबकि अन्य संस्थाओं ने इसी सामग्री को अधिकतम 8.50 रुपये (अक्षरी – आठ रुपये पचास पैसा) की दर से क्रय किया। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन ने जनवरी 2022 से 31 अक्टूबर 2023 तक अरबों रुपये की खरीदी मोक्षित कॉरपोरेशन और CB कॉरपोरेशन के साथ सांठगांठ करके की है।

सिर्फ इतना ही नहीं, इसके अलावा छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन ने 300 करोड़ रुपये के रिएजेंट सिर्फ इसीलिए खरीद लिए ताकि मोक्षित कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड के पास उपलब्ध केमिकल्स की एक्सपायरी डेट नजदीक न आ जाए। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन ने मोक्षित कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड से 300 करोड़ रुपये के रिएजेंट खरीदकर राज्य के 200 से भी अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिना मांग के ही भेज दिया। विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि उन स्वास्थ्य केंद्रों में उक्त रिएजेंट को उपयोग करने वाली CBC मशीन ही नहीं है। उक्त रिएजेंट की एक्सपायरी मात्र दो से तीन माह की बची हुई है और रिएजेंट खराब न हो, इसलिए छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन के द्वारा 600 फ्रिज खरीदने की भी तैयारी की जा रही है।

एफआईआर के मुताबिक, जांच के दौरान यह बात भी सामने आई कि CGMSC ने ईडीएल दवा और नॉन-ईडीएल/कंज्यूमेबल और टेस्ट किट आइटम/फूड बास्केट/प्रोप्राइटरी और नॉन-प्रोप्राइटरी कंज्यूमेबल आइटम/आयुष दवाइयां/उपकरण सामग्री की आपूर्ति करने और कालातीत औषधियों के निष्कासन के लिए प्रतिष्ठित फर्म से कोटेशन/खरीदी और दर अनुबंध के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए निविदा प्रक्रिया 26 अगस्त 2022 के लिए ई-निविदा जारी की गई। इस निविदा के लिए प्री-बिड मीटिंग के लिए 29 अगस्त 2022 निर्धारित किया गया था। इसके बाद 26 सितंबर तक निविदा दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए निर्देश दिए गए थे।

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जांच के दौरान यह जानकारी सामने आई कि मेरिल डायग्नोस्टिक एवं ट्रांसएशिया बायोमेडिकल लिमिटेड ने अगस्त 2022 में एमडी, सीजीएमएससी लिमिटेड रायपुर को 26 अगस्त 2022 की निविदा प्रक्रिया के संबंध में पत्र लिखकर यह सूचित किया था कि आपके संगठन के द्वारा जिन मेडिकल इक्विपमेंट्स के संबंध में निविदा आमंत्रित की गई है, उनके स्पेसिफिकेशन टेलरमेड हैं और किसी कंपनी विशेष के स्पेसिफिकेशन से मिलते हैं। इस संबंध में इन दोनों कंपनियों ने सूचित किया था कि यदि इन मेडिकल इक्विपमेंट्स के स्पेसिफिकेशन में कुछ परिवर्तन किए जाएं तो इस निविदा प्रक्रिया में अधिक कंपनियां भाग ले सकेंगी, जिससे बेहतर क्वालिटी के मेडिकल इक्विपमेंट्स प्राप्त हो सकते हैं। इसके अलावा, निविदा में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से शासन को कम दर पर मेडिकल इक्विपमेंट्स प्राप्त हो सकते हैं।

संचालनालय स्वास्थ्य एवं सेवाएं के उप संचालक ने इस जानकारी के बाद सीजीएमएससीसीएल के प्रबंध संचालक को प्री-बिड के आयोजन के संबंध में जानकारी देते हुए यह बताया कि राज्य स्तरीय निरीक्षण और परीक्षण तकनीकी समिति के विषय-विशेषज्ञों के जिलों से प्राप्त स्पेसिफिकेशन का निर्धारण किया गया है, जिसमें कोई बदलाव न करते हुए टेंडर प्रक्रिया को पूर्ण करने का निर्देश दिया गया। इस निविदा के लिए मोक्षित कॉर्पोरेशन, रिकार्ड्स एवं मेडिकेयर सिस्टम और श्री शारदा इंडस्ट्रीज के द्वारा निविदा प्रक्रिया में भाग लिया गया। जिसमें निविदा समिति ने उपकरणों, रिएजेंट, कंज्यूमेबल्स व मशीनों के सीएमसी के एल-1 दर को मान्य किए जाने की अनुशंसा करते हुए मोक्षित कॉर्पोरेशन को 25 जनवरी 2023 को निविदा देने की अनुशंसा की, जो प्रबंध संचालक द्वारा स्वीकृत की गई।

एफआईआर के मुताबिक, सूचना की जांच में यह पाया गया कि CGMSC उपकरण निर्माता कंपनियों से मशीन खरीदने के लिए निविदा जारी करती है, लेकिन निविदा में मोक्षित कॉर्पोरेशन और उनकी अन्य दो कंपनियों के द्वारा प्रस्तुत निविदा को ही CGMSC की निविदा समिति पास करती है, जबकि बाकी कंपनियों को किसी न किसी तकनीकी कारण का हवाला देकर अपात्र कर दिया जाता है।

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5 लाख की मशीन को 17 लाख में खरीदा

जांच में यह जानकारी सामने आई कि निर्माता कंपनियां खुले बाजार में जिस सीबीसी मशीन को मात्र 5 लाख रुपये में विक्रय करती हैं, उन्हीं मशीनों को मोक्षित कॉर्पोरेशन ने निविदा के माध्यम से दर अनुबंध करते हुए CGMSC को 17 लाख रुपये में दिया। CGMSC द्वारा मशीन एवं उपकरण निर्माता कंपनियों के साथ ही दर अनुबंध किया जाता है, जबकि मोक्षित कॉर्पोरेशन के पास अस्पताल में उपयोग होने वाले उपकरण बनाने की कोई फैक्ट्री (उत्पादन इकाई) नहीं है और न ही उपकरणों का निर्माण मोक्षित कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाता है। इसके बावजूद अपने रसूख और कमीशन के प्रलोभन के दम पर मोक्षित कॉर्पोरेशन ने अधिकारियों से सैटिंग करके अधिकांश दर अनुबंध अपनी कंपनी के नाम पर करवा लिए।

इसके अलावा CB कॉर्पोरेशन के नाम से संचालित शेल कंपनी भी मोक्षित कॉर्पोरेशन ग्रुप की ही कंपनी है, जिसके नाम पर भी काफी सारे दर अनुबंध करवाए गए। मोक्षित कॉर्पोरेशन ने रिएजेंट और केमिकल्स को अधिकतम खुदरा मूल्य से भी अधिक के दाम पर दर अनुबंध करवाया। इस प्रकार 750 करोड़ रुपये से अधिक की खरीदी कर शासन के साथ धोखाधड़ी की गई।

एफआईआर के मुताबिक, 22 अगस्त 2022 की निविदा में दो पात्र फर्म, रिकार्ड्स एवं मेडिकेयर सिस्टम और श्री शारदा इंडस्ट्रीज ने मोक्षित कॉर्पोरेशन के कार्टेल बनाकर प्रतियोगिता में भाग लिया था। आश्चर्यजनक रूप से, तीनों फर्मों के द्वारा टेंडर दस्तावेज में जो टेस्ट बताए नहीं गए थे, उनके भी रेट कोट किए गए थे। तीनों फर्मों के टेस्ट के प्रकार, आवश्यक रिएजेंट और मात्रा जो बताई गई थी, वह एक समान थी। इस प्रकार तीनों निविदाकारों ने पूल टेंडरिंग की थी।

मेरिल डायग्नोस्टिक और ट्रांसएशिया बायोमेडिकल लिमिटेड ने अगस्त 2022 में एमडी, सीजीएमएससी लिमिटेड को निविदा के संबंध में पत्र लिखकर यह सूचित किया था कि आपके संगठन के द्वारा जिन मेडिकल इक्विपमेंट्स के संबंध में निविदा आमंत्रित की गई है, उनके स्पेसिफिकेशन टेलरमेड हैं और किसी कंपनी विशेष के स्पेसिफिकेशन से मिलते हैं। इस शिकायत को समिति ने अनदेखा कर दिया।

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CGMSC के अधिकारियों ने बिना वजह की 411 करोड़ रुपये की खरीदी

इस प्रकार पाया गया कि संचालक स्वास्थ्य सेवाएं एवं सीजीएमएससी के अन्य अधिकारियों ने लोक सेवक के रूप में पदस्थ होते हुए अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान बेईमानी कर मोक्षित कॉर्पोरेशन, CB कॉर्पोरेशन, रिकार्ड्स एवं मेडिकेयर सिस्टम, और श्री शारदा इंडस्ट्रीज के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र रचते हुए बिना वजह मशीनों और रिएजेंट की खरीद की। इस खरीदी के लिए उन्होंने न तो बजट की उपलब्धता सुनिश्चित की और न ही इस संबंध में कोई प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त किया। इस प्रकार शासन के संज्ञान में लाए बिना लगभग 411 करोड़ रुपये की देनदारी शासन पर निर्मित की गई।

देखें FIR की कॉपी –

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