हर वर्ष 12 अगस्त को मनाया जाने वाला विश्व हाथी दिवस इस बार एक बहुत ही संवेदनशील और अर्थपूर्ण विषय के साथ आया है, “मातृशक्ति और स्मृतियां” (मेट्रिआर्च एंड मेमोरीज). यह विषय हमें हाथियों के जटिल सामाजिक जीवन की उस अनदेखी दुनिया में ले जाता है, जहां हाथियों की मुखिया हथिनी (मेट्रिआर्च) यानि वरिष्ठ हथिनी पूरे परिवार की मां, शिक्षक और मार्गदर्शक होती है. परिवार में उसके बच्चे, उसकी बहनें, बहनों के बच्चे और उनके भी बच्चे हो सकते हैं, ये संख्या में 30 से 50 तक हो सकते हैं.

हाथी एक बेहद संवेदनशील सामाजिक प्राणी होता है. नर हाथियों को छोड़ दें तो पूरा परिवार लगभग 90 प्रतिशत समय साथ रहता है. नर हाथी 12 से 15 वर्ष की उम्र में परिवार छोड़ देता है, वह अधिकतम एकांकी जीवन या कुछ और नर हाथियों के साथ जीवन गुजारता है. अपवाद को छोड़ दें तो सिर्फ प्रजनन के लिए मादा परिवार के पास आता है. मादा मुखिया का परिवार कुछ सदस्यों के साथ कुछ घंटे या दिन के लिए अलग हो सकता है जब वापस मिलता है तो आपस के सूंड फंसा कर और चिंघाड़ कर ख़ुशी प्रदर्शित करता है. ऐसी ही खुशी ये तब भी जाहिर करते है जब परिवार के अलग हुए दूसरे समूह से मिलते हैं. केवल युवा, कम अनुभवी मुखिया से बने परिवार अक्सर बिखर जाते हैं, संकट के समय में उन्हें भोजन और पानी ढूंढने में कठिनाई हो सकती है, तथा वे अपने बच्चों के पालन-पोषण में अनुभवी माताओं की तुलना में कम सफल हो सकती हैं.

परिवार की मुखिया सबसे ज्यादा ऊम्र की हथनी होती है जो सबसे अनुभवी होती है और सबसे गहरी यादें अपने भीतर संजोए रखती है, वह केवल दिशा ही नहीं जीवन भी देती है — हर संकट की घड़ी में. वह वर्षों की याददाश्त से जानती है कि किस दिशा में खाना मिलेगा, पानी मिलेगा, कब आगे बढ़ना है, कब रुकना है, सूखे और आकाल में कहां जाना है, कौन सा पौधा जहरीला हो सकता है, शिकारियों और मानव से कैसे बचना है. मुखिया पुरानी जगहों के साथ साथ नए इलाकों में भी परिवार के साथ जाती है, उद्देश्य यह भी रहता है कि वहां क्या खाना मिलेगा, कहां पानी मिलेगा, जिससे जरुरत के समय परिवार को वहां ले जाया जा सके. उस नई जगह को भी परिवार का हर सदस्य अपनी स्मृतियो में संजो लेता है. जब यह अनुभव किसी युवा हथिनी को मिलता है और जब वह खुद मुखिया बनती है तो 40–50 साल बाद भी जानकारी काम आ सकती है.

हाथियों की याददाश्त दुनिया के सबसे तेज़ स्मृति वाले जीवों में गिनी जाती है. परेशान करने वाले गांव और मानव हरदम इनकी स्मृति में रहते हैं. अफ्रीका में मसाई जनजाति पहले इनका शिकार करते रहे हैं, आज भी जब कोई मसाई जंगल में जाता है तो उसकी चाल और आवाज सुन कर मुखिया सबको सचेत कर, आपस में पास-पास होकर बच्चों को बीच में रख कर, वहां से परिवार को लेकर सुरक्षित जगह भाग जाती है, दूसरे समूहों को भी सचेत कर देती है. दूसरी तरफ कम्बा जनजाती जो इन्हें परेशान नहीं करती रही, उसके साथ परिवार सामान्य रहता है. ऐसी कई घटनाएं है जिसमें हाथी उस जगह रुक जाते है, जमीन सूंघते है जहां वर्षो पहले उनके परिवार के किसी की मौत हुई होती है, अगर मृत की हड्डियां हो तो उसे भी सूंघते है, छूते है, जैसे श्रदांजलि दे रहे हों. ये सब हाथियों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली स्मृतियां है.

मुखिया का काम परिवार की रक्षा करना भी होता है. पूरे परिवार के प्रत्येक सदस्य पर उसकी नजर रहती है. ये आपस में लो फ्रीक्वेंसी में बात भी करते हैं जिसे हम नहीं सुन सकते. मुखिया हाथी जब निर्णय लेती है कि अब परिवार को खाना छोड़ आगे बढ़ना है तो वह परिवार को लो फ्रीक्वेंसी में सन्देश देती है जिसे गो कॉल कहते हैं. संकट के समय मुखिया और परिवार की अन्य बुजुर्ग माएँ आक्रामक हो सकती हैं, विशेष रूप से जब संकट बच्चों पर आया हो. अपने बच्चों के प्रति माओं का लगाव अत्यधिक होता है, उनको बचाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकती हैं. मादा हथनी अपने बच्चे के साथ हमारे जंगलों का सबसे खतरनाक संयोजन माना जाता है (मादा भालू का भी).

हाथियों के बारे में सबसे पहले किये गए कुछ अध्यन महिलाओं ने ही किये हैं जैसे जॉयस पूले, केटी पेन, सिंथिया मॉस, डैफ्ने शेल्ड्रिक. अगर ये महिलायें नहीं होतीं, तो मुखिया माँ का दर्द नहीं समझ पातीं. डैफ्ने शेल्ड्रिक लिखती हैं जब भी में भावनात्मक रूप से टूट जाती हूं तो मुखिया माँ के दुःख को याद करती हूं, जिसे कभी-कभी बहुत दुख के साथ किसी कमजोर बच्चे को मरने के लिए पीछे छोड़ना पड़ता है. वह जानती है कि अगर वह उसके लिए रुक गई, तो बाकी पूरे परिवार की जान खतरे में पड़ सकती है (भूख प्यास से). उस बच्चे की पुकारें सुनकर भी वह आगे बढ़ जाती है. दूसरों की भलाई के लिए उसे ऐसा करना ही पड़ता है. हार मानना उसके लिए कभी भी रास्ता नहीं होता – मातृशक्ति तुझे सलाम.

लेखक – नितिन सिंघवी, वन्यजीव प्रेमी