प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत एक सजा को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. न्यायालय ने कहा कि एक भी आपराधिक कृत्य, अगर यह सांप्रदायिक तनाव की ओर ले जाता है और “जीवन की गति को अस्त-व्यस्त” कर देता है, तो यह कानून और व्यवस्था का मात्र उल्लंघन नहीं बल्कि सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन है.

न्यायमूर्ति जे जे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की पीठ ने शोएब नामक व्यक्ति की बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका खारिज कर दी. शोएब ने मऊ के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित अपने नजरबंदी आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

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दरअसल, मामला 15 नवंबर 2024 का है. जब शोएब ने सुक्खू नाम के एक शख्स की बाइक को टक्कर मार दी थी. इसके बाद शोएब ने अपने कुछ साथियों को बुलाकर सुक्खू को चाकू मारकर मौत के घाट उतार दिया था. इतना ही नहीं, इसके बाद पीड़ित को अस्पताल ले जाने पर शोएब के लोग उसके पक्ष में जुट गए मारपीट और पत्थरबाजी करने लगे. करीब 200 लोगों ने घोसी-दोहरीघाट मेन रोड को ब्लॉक कर दिया था. पुलिस बीच-बचाव करने पहुंची तो मामला और बढ़ गया, आगजनी होई. इस दौरान सार्वजनिक संपत्तियों और कुछ धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुंचा था.