लक्ष्मीकांत बंसोड़, डौंडी (बालोद)। रास्ते में कितने भी कांटे हो लेकिन मंजिल तक पहुंचने का जुनून कांटे पर भी चलना सिखा देता है. कुछ ऐसे ही कहानी आदिवासी ब्लॉक डौंडी क्षेत्र की है, जहां पैर से विकलांग एक युवती शासन-प्रशासन से मदद नहीं मिलने पर बैसाखियों के सहारा रोज 10 किलोमीटर पैदल चलकर अपनी जिंदगी चला रही है.

आपने सुना तो होगा बेबसी-लाचारी लंगड़े को भी चलना सिखा देती है, और पेट की भूख मिटाने रोटी तलाशने पर मजबूर कर देती है. कहानी वनांचल ग्राम पेटेचुआ की रहने वाली असवन्तिन नरेटी की है, जो एक पैर से विकलांग है. घर में चार भाई हैं, लेकिन चारों की शादी हो चुकी है, और वह अपने परिवार में मस्त है. माता-पिता दस साल पहले हुई मौत के बाद असवन्तिन नरेटी दुनिया में अकेली रह गई. इसके बाद असवन्तिन ने जिन्दगी से हार नहीं मानी और लाठी को अपना सहारा बना लिया.

विकलांग होने के बावजूद जिन्दगी चलाने के लिए असवन्तिन ने बिहान योजना के तहत काम करने की शुरुआत की और अभी जनपद पंचायत डौण्डी में कार्य कर रही है. लेकिन विडंबना यह है कि उनके गांव से मुख्य मार्ग का दायरा 5 किमी दूर है, और उसके पास चलने के लिए कोई संसाधन भी नहीं है. ऐसे में रोज बैशाखी के सहारे पैदल लड़खड़ाते हुए हर रोज 10 किमी सफर करती है. दिव्यांग युवती हर दिन जिला प्रशासन के आला अफसरों के सामने से गुजरती है, लेकिन आज भी अफसरों की नजर से ओझल है.

महिला एवं समाज कल्याण मंत्री अनिला भेड़िया के विधानसभा क्षेत्र की रहने वाली असवन्तिन की अब तक शासन-प्रशासन ने सुध नहीं ली है. इस बात की जानकारी मंत्री के प्रतिनिधि पीयूष सोनी को दी गई तो उन्होंने बताया कि बेटियां अनमोल हैं. पेटेचुवा गांव की बेटी की तकलीफ हम सबकी तकलीफ है. उस बेटी को विभाग से हर सम्भव मदद मिलेगी. मैं खुद उससे मिलकर आर्थिक सहायता के साथ जो भी जरूरत की सामग्री है, वो सब दिया जाएगा.

वहीं बालोद कलेक्टर जन्मजेय मोहबे ने बताया कि जल्द ही संबंधित विभाग को भेज कर बेटी के लिए ट्राइसाइकिल की व्यवस्था कराई जाएगी और बिहान योजना के तहत अगर बेटी काम कर रही है, तो उसे स्वरोजगार से भी जोड़ा जाएगा.