वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट
रायपुर। 15 अगस्त को हमने देश की आजादी का महापर्व मनाया है. देश को आजाद हुए 78 साल पूरे हो चुके हैं. और हमने 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाकर यह संदेश दिया कि हमारा आधुनिक भारत विकसित राष्ट्र की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है. लेकिन आगे बढ़ते भारत में आजादी की एक और लड़ाई लड़ी जा रही है. ये लड़ाई है नशे से आजादी की.


महानगरों से गांवों तक
दरअसल युवा भारत की सबसे बड़ी समस्या आज नशा बनती जा रही है. महानगरों से लेकर शहरों और गांवों तक युवाओं की एक बड़ी आबादी नशे की लत में जकड़ती जा रही है. नशे की जकड़न से मुक्ति समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. विशेषकर गांवों को नशे से बचाना तो और भी बड़ी चुनौती है. क्योंकि गांवों की सांस्कृतिक विरासत खतरे में है.
बड़ी आबादी की बर्बादी
शराब, गांजा, जुए, सट्टे जैसी लतों से गांवों को बचाना, युवाओं को बचाना, किशोरों को बचाना, आज सबसे ज्यादा जरूरी हो चला है. यही नहीं गांवों की एक बड़ी समस्या पानी पाउच और डिस्पोजल भी बन चुकी है. जिसने गांवों की सादगी और सुंदरता को खत्म करने के साथ पशुओं, तालाबों, नदियों और जमीनों को बर्बाद किया है. इस बर्बादी को रोकना भी जरूरी हो गया है.
छत्तीसगढ़ की स्थिति
छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह चुनौती इसलिए और बड़ी हो जाती क्योंकि हमारा राज्य देश के उन अग्रणी राज्यों में जहां शराब की खपत सर्वाधिक है. जहां गांजे के साथ-साथ अब ड्रग्स जैसे अन्य सूखे नशे की चपेट में युवा हैं. इन चुनौतियों को बल तब और मिलने लगता जब सरकार की ओर से शराबबंदी करना छोड़ शराब की दुकानें खोलने पर जोर दिया जाने लगता है.
गांवों में जागरण
इन परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच जब कोई गांव उठ खड़ा होता है. नशे से मुक्ति के खिलाफ संग्राम छेड़ देता है, तो उसकी चर्चा होनी चाहिए. इस रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के ऐसे ही उन 5 पंचायतों की चर्चा हो रही जिन्होंने नशे से आजादी की लड़ाई शुरू कर दी है. जहां के ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से साहसिक निर्णय लेते हुए नशे पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है. यही नहीं नियमों का उल्लंघन करने पर 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान भी कर दिया है. इतना ही नहीं गांवों में पानी पाउच और डिस्पोजल विक्रय और उपयोग पर शर्तों के साथ रोक लगा दी गई है.
बेमेतरा से अच्छी खबर
नशे पर पाबंदी की ये खबर है आई है बेमेतरा जिला से. जिले में बेमतरा विकासखंड और नवागढ़ विकासखंड से, जहां पर खम्हरिया, मल्दा, केशला, धोबघट्टी और मगरघटा पंचायत में शराब, जुए और सट्टे पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है. इन पंचायतों में शराब बेचना, सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीना, सट्टा चलाना, खेलना प्रतिबंधित है. कोई भी अगर इस तरह की गतिविधियों में पाया जाता तो उस पर 50 हजार तक जुर्माना लगेगा. यही नहीं गांवों में पानी पाउच और डिस्पोजल का उपयोग भी शर्तों के साथ ही किया जा सकता है. सार्वजनिक रूप से कचरा फैलाने पर भी रोक है.
खम्हरिया में रात में बैठकी भी नहीं – रामदिल निषाद
खम्हरिया पंचायत के सरपंच रामदिल निषाद बताते है कि आस-पास के गांवों में नशे पर पाबंदी की शुरुआत 2 महीने पहले हमारे गांव से हुई. हम सब गांव के लोग अवैध शराब बिक्री और युवाओं में नशे की लत को लेकर परेशान हो गए थे. गांव में यह एक बड़ी समस्या बनती जा रही थी. इसे दूर करने कठोर निर्णय लेना आवश्यक हो गया था. मैंने पंचायत की बैठक बुलाई. बैठक में निर्णय लिया गया कि गांव में शराब, गांजा न तो बिकेगा और न ही कोई सार्वजनिक रूप से कहीं इसका सेवन करेगा. यही नहीं गांव में बिना कोई कारण रात 10 बजे के बाद नहीं घूमेगा, बैठकी नहीं करेगा. अगर कोई पंचायत के निर्णयों का उल्लंघन करता है तो उस 5 से 15 हजार तक जुर्माना लगाया जाएगा. पुलिस कार्रवाई भी हो सकेगी. 2 महीने में उल्लंघन के 3 मामले भी आए थे, जिन पर जुर्माना भी लगाया और कड़ी चेतावनी भी दी गई है.
शराब तो शराब पाउच और डिस्पोजल पर भी रोक- मनोज साहू
मल्दा पंचायत के सरपंच मनोज साहू ने बताया कि नवागढ़ विकासखंड क्षेत्र में मल्दा प्रमुख गांवों में से एक है. गांव की अपनी एक वर्षों पुरानी सांस्कृतिक पहचान भी है. गांव की मान-मर्यादा और शिक्षा-दीक्षा की चर्चा भी अन्य गांवों में दशकों से होती रही है. लेकिन मल्दा की पहचान शराब और जुए से धूमिल होती जा रही थी. अवैध शराब का विक्रय, युवाओं में नशाखोरी, जुए और सट्टे की बढ़ती लत एक विकराल समस्या बनती जा रही थी. इसके साथ-साथ जगह-जगह पानी पाउच और डिस्पोजल का कचरा भी गांव की सुंदरता के साथ-साथ नदी-तलाबों-नालों और जमीनों को खराब कर रहा था. इसे रोकना बेहद आवश्यक हो गया था. लिहाजा पंचायत ने एक कड़ा फैसला लिया. पंचायत ने तय किया कि गांव में वैध-अवैध शराब की बिक्री नहीं होगी. न ही कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर शराब या अन्य नशे का सेवन करेगा. और तो और सार्वजनिक स्थानों पर पानी पाउच और डिस्पोजल का कचरा भी नहीं फैलाएगा. अगर कोई इसका उल्लंघन करेगा तो उस पर अधिकतम 25 हजार रुपये तक आर्थिक दंड लगाया जाएगा.
कान्हरपुर में 50 हजार जुर्माने का प्रावधान
मल्दा से लगा हुआ कान्हरपुर बस्ती भी है. कान्हरपुर बस्ती पौंसरी पंचायत के अंतर्गत आता है. लेकिन यहां भी बस्तीवालों ने सामूहिक निर्णय लेते हुए शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया दिया है. यही नहीं उल्लंघन कर 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान भी कर दिया है.
केशला में खुल गया था ढाबा
मल्दा के सरपंच मनोज साहू बताते हैं कि मल्दा से ठीक नाले के पार केशला गांव है. जहां अवैध रूप से एक ढाबा खुल गया था. यह ढाबा केशला के साथ-साथ आस-पास के कई गांवों की आबो-हवा को दूषित कर रहा था. क्योंकि ढाबे में शराब से लेकर नशे की कई अन्य चीजें नशेड़ियों को मिल जाती थी. ऐसे में ढाबे को बंद करना बेहद जरूरी हो गया था. क्योंकि यह नशे का केंद्र हो गया था. नशे की इस केंद्र को बंद कराने में हमें कई गांवों की मदद लेनी पड़ी. केशला के सरपंच पप्पू देवांगन से हमने बात की. पंचायत में कड़ा निर्णय लिया गया. सभी गाँववालों के सहयोग से केशला में संचालित ढाबे को तो बंद कराया गया शराब-जुए-सट्टे पर भी पाबंदी लगाई गई.
धोबघट्टी और मगरघटा तक व्यापक असर
खम्हरिया से हुई शुरुआत ने मल्दा सहित कई गांवों को न सिर्फ प्रेरित किया, बल्कि नशा मुक्ति का एक अभियान भी बना दिया. मल्दा पंचायत में लिए गए कड़े निर्णयों का व्यापक असर पड़ोसी गांव धोबघट्टी और मगरघटा तक पड़ा. धोबघट्टी और मगरघटा ने भी वही सारे निर्णय लिए गए, जो मल्दा पंचायत में लिए गए थे.
धोबघट्टी के सरपंच कलेश्वर बर्मन का कहना है कि शराब की समस्या से पूरी तरह से छुटकारा तो नहीं मिल सका है, लेकिन बहुत हद तक गाँव में अब शांति है. शराब की वजह से गांव का माहौल खराब होने लगा था. लिहाजा पंचायत ने 25 हजार तक जुर्माने का प्रावधान कर नशाखोरी को रोकने और युवाओं को शराब की लत से मुक्ति दिलाने का एक अभियान शुरू किया है. डिस्पोजल-पाउच की उपयोगिता को भी रोकने का प्रयास किया गया है.
मगरघटा के सरपंंच योगेश इंद्रा बताते हैं कि हमारे गांव में भी शराब की बिक्री पर पूरी तरह से रोक है. शराब का सेवन भी कोई सार्वजनिक रूप से नहीं कर सकता है. गांव की शांति को भंग करने वाले पर भी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है. नियमों का उल्लंघन करने वालों पर 20 हजार रुपये तक आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है.
मिसाल हैं ये पंचायतें
छत्तीसगढ़ आज जब शराब के साथ ही अन्य सूखे नशे और जुए-सट्टे की चपेट में है, वास्तव में तब ये पंचायतें किसी से मिसाल से कम नहीं. इन पंचायतों ने अपने आत्मबल और सामूहिक निर्णय से बता दिया है कि नशा मुक्त समाज बनाना गाँव की पहली जरूरत है. गांवों को आज नशे से आजादी चाहिए. नशे के खिलाफ लड़ाई प्राथमिकता से लड़ी जानी चाहिए. सामूहिक भागीदारी से गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार किया जा सकता है. नशे से मुक्ति के साथ गांवों में विकास को एक नया आकार, आधार दिया जा सकता है.
जिला प्रशासन, सरकारों से मिले प्रोत्साहन
ऐसे गांवों को जिला प्रशासन के साथ राज्य और केंद्र की सरकारों से विशेष प्रोत्साहन और प्राथमिकता भी दिया जाना चाहिए. ताकि एक के बाद एक अन्य पंचायतों तक इन गांवों की गूंज हो. गांवों की दशा सुधरे, दिशा तय हो. स्वच्छ-सुंदर गांवों के साथ छत्तीसगढ़ की जय हो, भारत की जय हो.
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