रायपुर। छत्तीसगढ़ में पत्थलगढ़ी की आग अभी बुझी नहीं है, बल्कि ये और भड़कने की तैयारी में है. क्योंकि पत्थलगढ़ी को लेकर दर्जन भर से अधिक राजनैतिक, सामाजिक संगठनों अब मोर्चाबंदी की तैयारी कर ली है. 21 मई को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बैनरतले एक बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में सर्व आदिवासी समाज, सीपीआई, सीपीएम, आदिवासी महासभा, पीयूसीएल सहित कई संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए. बैठक में यह तय किया गया कि पत्थलगढ़ी के मुद्दे पर 24 जून को राजधानी रायपुर में महासभा आयोजित की जाएगी. यही नहीं इसके साथ-साथ जशपुर, अंबिकापुर, जगदलपुर में इसे लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.

एक निजी स्कूल में आयोजित इस बैठक में दोपहर से लेकर शाम तक पत्थलगढ़ी के मुद्दे पर विस्तार चर्चा की गई, रणनीति तैयार किया गया और प्रस्ताव भी पारित किया गया. बैठक में विशेष रूप से पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम भी मौजूद थे. इसके साथ प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया भी बैठक में विशेष रूप से मौजूद रहीं.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि पत्थलगढ़ी आदिवासियों की पुरातन परंपरा है. इस परंपरा को बिना वजह संविधान विरोधी बताकर आदिवासियों को प्रताड़ित करने काम किया जा रहा है.

सीपीआई लीडर सीआर बख्शी ने कहा कि पत्थलगढ़ी के मुद्दे पर सरकार की भूमिका आदिवासी विरोधी है. सरकार आदिवासियों को बांटने की साजिश कर रही है. पत्थलगढ़ी में संविधान विरोधी कोई बातें नहीं है. इसे बिना वजह धर्मांतरण से जोड़ा है. नतीजा ये है कि आज आदिवासी आक्रोशित है और उनका गुस्सा फूटने लगा है.

भारत जन आंदोलन के नेता विजय भाई ने कहा कि पत्थलगढ़ी मुद्दे पर हम राजधानी रायपुर में एक बड़ी आमसभा कर सरकार को स्पष्ट करेंगे आखिर पत्थलगढ़ी है और आदिवासी क्षेत्रों में इसकी आवश्यकता है क्या. इस संबंध में मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे.  दरअसल पत्थलगढ़ी कुछ राजनीतिक लोग बिना वजह बदनाम करने में लगे हैं. जबकि यह पूरी तरह से सामाजिक और पांरपरिक है.  पत्थलगढ़ी न सरकार विरोधी न संविधान विरोधी. आदिवासी इसके जरिए जल-जंगल-जमीन की रक्षा करना चाह रहे हैं.

बैठक में कुछ प्रस्ताव भी पारित किया गया. इसमें तय किया गया कि आदिवासी जल-जंगल-जमीन की रक्षा करना, आदिवासियों उनके अधिकार दिलाना, पत्थलगढ़ी आंदोलन को लेकर सरकार के सामने स्पष्ट नीति रखना, गिरफ्तार आदिवासियों की रिहाई की मांग शामिल है.