रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज अपने गांव बेलौदी और दुर्ग शहर के लिए नरवा-गरुवा-घुरवा-बारी पर योजना बनाने के निर्देश दिये. अपने गांव बेलौदी में पहुंचे भूपेश बघेल ने ग्रामीणों के साथ जाकर कलेक्टर को वहां की सार्वजनिक गौठान की जगह दिखाई और योजना के बारे में बताते हुए दुर्ग शहर के लिए जगह भी ऐसी जगह खोजने के निर्देश दिया. जहां सभी गायों को रखा जा सके. भूपेश बघेल की सरकार अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना पर बजट सत्र के बाद काम शुरु करेगी. इस योजना के पहले चरण में हर जिले में एक या दो जगहों पर पायलट प्रोजेक्ट की तरह काम शुरु किया जाएगा. बिलासपुर और रायपुर जिले के कुछ गांव वालों ने भी इस परियोजना के लिए प्रस्ताव पारित कर इसे शुरु करने की दिशा में कदम बढ़ाया है.

कलेक्टर उमेश अग्रवाल ने कहा कि वे जल्द ही इसे लेकर एक योजना बनाकर मुख्यमंत्री को दिखाएंगे.इस दौरान मुख्यमंत्री के कृषि एवं ग्रामीण विकास सलाहकार प्रदीप शर्मा भी साथ थे.

क्या है नरवा-गरुवा-घुरवा-बारी योजना

इस योजना में भूपेश सरकार हर गांव में गौठान को घेरकर उसे पशुओं के लिए प्रथम चरण में डे केयर सेंटर की तरह विकसित करेगी. इस गौठान चरने के बाद पशुओं को दिनभर रखा जाएगा और चरणबद्ध तरीके से हरे चारे के लिए चारागाह विकसित किया जाएगा. गौठान में चारा और पानी की व्यवस्था उपलब्ध रहेगी. गौठान की देखरेख के लिए पर गांव में ग्राम सभा और ग्राम पंचायत के बीच गौठान समन्वय समिति बनाकर इसे संचालित किया जाएगा. गौठान में जो गोबर और गौमुत्र इकट्ठा होगा. उसके द्वारा आय के साधन भी विकसित किये जाएंगे. गोबर से जैविक खाद और बायोगैस बनाया जाएगा. बायोगैस का इस्तेमाल गांव के लोग करेंगे. जबकि जैविक खाद को बेचा जाएगा.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि गांव में गरुआ गरु यानि संकट हो गया है. जिसे सरकार एक चुनौती मानकर चल रही है . भूपेश बघेल का कहना है कि गाय हमारी आवश्यकता है. गाय के चलते ही भूमि उर्वर बनी हुई है. वरना ज़मीन की उर्वरता खत्म हो जाएगी. इसलिए गायों के संवर्धन और खेती के लिए फिर से लाभप्रद बनाए जाने की आवश्यकता है. सरकार नरवा-गरुवा-घुरवा-बारी योजना के जरिये गौठान को ग्रामीण अर्थव्यस्था के मूलभूत संस्थान की तरह विकसित कर रही है.

सरकार का मानना है कि किसान खेतों में बाड़ न होने के कारण एक से ज़्यादा फसल नहीं ले पाते. क्योंकि फसलों को मवेशियों द्वारा चरे जाने की आशंका हमेशा बनी रहती है. चूंकि करीब 70 प्रतिशत किसान छोटे और मझौले हैं. जो अपनी खेतों की फेंसिंग खुद नहीं करा पाते हैं. सरकार अगर सबके खेतों की फेसिंग का काम करेगी तो काफी खर्चा आएगा. लिहाज़ा भूपेश सरकार ने दूसरे विकल्प को लेकर काम किया. ये दूसरा विकल्प था मवेशियों को फेसिंग करके एक जगह रखना.

आजकल हार्वेस्टर से कटाई होने के बाद पुआल खेत में ही रह जाते हैं. जिसका कटिया काटकर गायों के खाने की व्यवस्था की जाएगी. कटाई के लिए ग्रामसभाओं को मशीन देने में मदद सरकार करेगी. इससे खेतों में पुआल जलाने की समस्या भी कम हो जाएगी. सरकार का कहना है कि गौठान समितियों को धीरे-धीरे आर्थिक स्तर पर स्वालंबी बनाया जाएगा.

जिन गांवों में चारागाह की जमीन कम है. वहां दो-तीन गांवों के बीच जगह खोजकर उसे सामूहिक तरीके से विकसित किये जाने का विकल्प खुला है. सरकार की दलील है कि सार्वजनिक गौठान बनाने से नस्ल सुधार कार्यक्रम में भी तेज़ी आएगी. गायों के एक जगह गौठान में रहने से बुआई करने वाले लोगों का काम आसान हो जाएगा.

गायों और मवेशियों की संख्या के आधार पर हर गांव में चार पांच चरवाहे रखे जाएंगे. जिन्हें कुछ मानदेय दिया जाएगा. मनरेगा में गौठान में मनरेगा का प्रावधान होने के बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों ने इसका इस्तेमाल नहीं किया. भूपेश सरकार मनरेगा को इससे जोड़ेगी. इस योजना का फ्रेम वर्क बनाने का काम चल रहा है जिसे 10 से 15 दिनों में पूरा कर लिया जाएगा.