सत्या राजपूत, रायपुर। छत्तीसगढ़ के महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, पाटन, दुर्ग में सहायक प्राध्यापक, वैज्ञानिक और अन्य पदों पर हुई भर्ती प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ है। लगभग एक साल पहले कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय जांच समिति ने राज्यपाल को सौंपी गई रिपोर्ट में मनमानी, नियमों का उल्लंघन, चहेतों को फायदा पहुंचाने की सेटिंग और त्रुटिपूर्ण स्कोरिंग सिस्टम जैसे गंभीर आरोपों को सिद्ध माना है। रिपोर्ट में स्पष्ट अनुशंसा की गई है कि इस भर्ती को रद्द किया जाए और दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो। लेकिन एक साल बाद भी यह रिपोर्ट धूल खा रही है और कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह मामला न केवल विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है, बल्कि हजारों योग्य अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ का उदाहरण भी पेश कर रहा है।

भर्ती प्रक्रिया में कैसे हुई धांधली?

मामला 2023 के मध्य में शुरू हुआ, जब विश्वविद्यालय ने विज्ञापन संख्या 05/2023 (7 जुलाई 2023), 06/2023 (10 जुलाई 2023) और 07/2023 (1 अगस्त 2023) के अंतर्गत सहायक प्राध्यापक, वैज्ञानिक, प्रयोगशाला तकनीशियन, क्षेत्र विस्तार अधिकारी, भृत्य, चौकीदार और स्वीपर जैसे पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए। कुल 35 शैक्षणिक पदों समेत कई गैर-शैक्षणिक पदों के लिए सैकड़ों अभ्यर्थियों ने आवेदन किया। लेकिन लल्लूराम डॉट कॉम की जांच-पड़ताल से पता चला कि चयन प्रक्रिया में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के 2018 विनियमों का घोर उल्लंघन किया गया।

जांच समिति की रिपोर्ट

स्कोर कार्ड में हेराफेरी – UGC के विनियमों के मुताबिक सहायक प्राध्यापक पद के लिए 100 अंकों के स्कोर कार्ड में PhD को 25 अंक और NET/JRF को 8–10 अंक अलग-अलग दिए जाते हैं। लेकिन विश्वविद्यालय ने PhD और NET दोनों को मात्र 20–20 अंक देकर योग्य अभ्यर्थियों को नुकसान पहुंचाया। केवल MSc + NET वाले अभ्यर्थी मेरिट में ऊपर आ गए, जबकि PhD धारकों को कोई प्राथमिकता नहीं मिली। यदि UGC नियमों का पालन होता, तो चयन सूची पूरी तरह बदल जाती। रिपोर्ट में कहा गया है कि PhD को NET से 2.5 गुना अधिक वेटेज दिया जाना चाहिए था, जिससे PhD + NET वाले अभ्यर्थियों को 33–35 अंक मिलते।

बिना अनुमोदन के विज्ञापन जारी – विज्ञापन से पहले स्कोर कार्ड को विश्वविद्यालय बोर्ड से मंजूरी नहीं ली गई। बाद में कार्योत्तर स्वीकृति ली गई, जो नियमविरुद्ध है। जब बोर्ड का गठन ही नहीं हुआ था, तब इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के विनियमों का पालन करना चाहिए था।

कुलपति की मनमानी – जांच में खुलासा हुआ है कि कुलपति ने पूरी प्रक्रिया पर व्यक्तिगत नियंत्रण रखा और जल्दबाजी में दबाव बनाया। कुलसचिव ने भी राजभवन और राज्य शासन को शिकायत की थी, लेकिन निर्देशों की प्रतीक्षा किए बिना ही चयन पूरा कर लिया गया। कुलपति ने जांच के दौरान अपने फैसले को सही ठहराने की कोशिश की, लेकिन यह असफल रही।

गैर-शैक्षणिक पदों पर भी सवाल – तृतीय-चतुर्थ श्रेणी के पदों जैसे प्रयोगशाला तकनीशियन, स्वीपर के स्कोर कार्ड में 30-40 अंकों की ‘कौशल परीक्षा’ का प्रावधान किया गया, लेकिन इसका कोई विवरण विज्ञापन में नहीं दिया गया। छत्तीसगढ़ शासन के नियमों के अनुसार, इन पदों पर लिखित प्रतियोगी परीक्षा होनी चाहिए, न कि कौशल परीक्षा। अभी तक ये परीक्षाएं नहीं हुईं और नियुक्तियां लंबित हैं।

नियुक्तियों का खेल – दो अलग-अलग विज्ञापनों अप्रैल और जुलाई 2023 के 36 अभ्यर्थियों को एक ही आदेश 2639, 4 जनवरी 2024 से नियुक्त किया गया, जो प्रक्रिया का उल्लंघन है।

रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि ये सभी कदम विश्वविद्यालय अधिनियम 2019 की धारा 58(3) और UGC विनियमों का स्पष्ट उल्लंघन हैं। अन्य विश्वविद्यालयों जैसे महाराणा प्रताप उद्यानिकी विश्वविद्यालय, करनाल ने भी UGC के अनुसार ही PhD और NET के अलग अंक दिए, जो इस निष्कर्ष को मजबूत करता है।

10 जनवरी 2024 को गठित तीन सदस्यीय समिति में अध्यक्ष डॉ. गिरीश चंदेल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर, सदस्य डॉ. बंशी गोपाल सिंह, कुलपति, पं. सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय बिलासपुर और प्रो. बलदेव भाई शर्मा कुलपति कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर शामिल थे। समिति ने कुलपति, कुलसचिव, शिकायतकर्ताओं से दस्तावेज मांगे, बयान लिए और जांच की।

कुणाल शुक्ला सामाजिक कार्यकर्ता का बड़ा आरोप है कि जांच में गड़बड़ी, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, नियमों का उल्लंघन और तानाशाही साबित होने के बावजूद पिछले साल भर से जांच रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेंक दिया गया है। तीन बड़े विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने जांच करके राज्यपाल को रिपोर्ट सौंप दी है, लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है। सवाल यह है कि कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?

जांच समिति की सिफारिशें

  • कम अर्हता वाले अभ्यर्थियों की नियुक्तियां निरस्त करें।
  • भविष्य की भर्तियों में UGC स्कोर कार्ड का सख्ती से पालन करें।
  • कुलपति और कुलसचिव के बीच तनावपूर्ण संबंधों का तत्काल समाधान करें, जो विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर रहा है।
  • धारा 17 के तहत प्रशासनिक कार्रवाई करें।

एक साल बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं?

रिपोर्ट जनवरी 2024 में राज्यपाल को सौंपी गई, लेकिन अक्टूबर 2025 तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। शिकायतकर्ता अभ्यर्थी निराश हैं। एक अभ्यर्थी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हमने PhD किया, लेकिन NET वालों से पीछे छूट गए। रिपोर्ट में हमारा पक्ष सही ठहरा, फिर भी न्याय नहीं मिल रहा। कुलसचिव के बयानों से साफ है कि कुलपति की दबंगई ने प्रक्रिया को तोड़ा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला उच्च शिक्षा विभाग की उदासीनता को उजागर करता है। यदि UGC नियमों का पालन होता, तो योग्य उम्मीदवारों को मौका मिलता।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। राजभवन से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। अभ्यर्थी संगठन प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। जांच समिति के सदस्यों ने कहा कि रिपोर्ट के आधार पर तत्काल कार्रवाई जरूरी है, नहीं तो शिक्षा का स्तर गिरेगा।