कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। जब देश आधुनिकता की दौड़ में भाग रहा है, ऐसे में आज भी कुछ लोग हैं जो हमारी परंपराओं की लौ को अब भी जलाए हुए हैं। ग्वालियर की एक ऐसा ही परिवार अपने अनोखे हुनर और समर्पण से न केवल कला को जीवित रखे हुए हैं, बल्कि दीपोत्सव के दौरान हमारी सांस्कृतिक जड़ों से भी हमें जोडे रखा हैं।
चित्रकारी में न सिर्फ कला, बल्कि आस्था भी
डिजिटल दौर में जहां मशीनें तस्वीरें छाप रही हैं, वहीं ग्वालियर की बुजुर्ग महिला पवन कुमारी कुशवाह के हाथों की कला देवी-देवताओं के जरिये भारतीय संस्कृति को जीवंत कर रही हैं। ये हैं ग्वालियर की चितेराओली की एक ऐसी कलाकार, जिनका परिवार पिछले छह पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक लक्ष्मी पूजन पन्ना चित्रकारी की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। गंगाजल और कच्चे रंगों से बनाई जाने वाली इनकी चित्रकारी में न सिर्फ कला है, बल्कि आस्था भी बसती है। दीपावली के मौके पर लक्ष्मी पूजन के लिए बनाये जाने वाले पन्ने बहुत खास है।
बड़ी खबरः जनपद के ADO ने फांसी लगाकर की आत्महत्या, फौज से रिटायर्ड होने के बाद 1 साल पहले
हाथों से इन्हें दीपोत्सव के लिए तैयार किया जाता
सादा कागज पर हाथों से सालभर इन्हें दीपोत्सव के लिए तैयार किया जाता है ,अलग अलग साइज में तैयार होने वाले यह पूजन पन्ना बाजार में मौजूद सामान्य पन्नो से अलग है, क्योंकि बाजार के मशीनों से प्रिंट होने वाले पन्नो में माता लक्ष्मी, सरस्वती और श्री गणेश होते है,जबकि हाथों से तैयार होने वाले इन खास पन्नो में देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु, श्री गणेश, गरुड़ भगवान, हनुमान, 04 हाथी, सूरज, चांद भी उकेरे जाते है। कुल 11 देवी-देवताओं को बड़े ही सुंदर रूप में स्थान दिया जाता है। यदि आप इन्हें खरीदने पहुंचेंगे तो साइज के हिसाब से यह 251 रुपये से लेकर 5001 रुपये तक की रेट में मिलते है।
प्रमोशन में आरक्षण मामले पर सियासी संग्रामः सपाक्स और अजाक्स आमने-सामने, कांग्रेस बोली-बैठक में कुछ
परंपरा और संस्कृति का भी उत्सव
आजकल सब कुछ रेडीमेड और डिजिटल हो गया है, लेकिन जो चीज़ हाथों से बनती है, उसमें जो आत्मीयता होती है, वो कहीं और नहीं मिलती। परिवार की मुखिया बुजुर्ग पवन कुमारी कुशवाह का कहना है कि वर्ष 1857 में सिंधिया महाराज द्वारा झांसी से उन्हें ग्वालियर लाकर बसाया गया था। उनका परिवार तब से आज तक इस कला को जीवित रखा है। आज जब बाजार डिजिटल प्रिंटेड तस्वीरों से भरा है, तब भी उनकी चित्रकारी की मांग बनी हुई है। बहरहाल दीपावली सिर्फ रोशनी का त्योहार नहीं, परंपरा और संस्कृति का भी उत्सव है। और जब ऐसी कला जीवित रहती है, तो हमारी संस्कृति की रोशनी कभी मंद नहीं पड़ती।

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें