सत्या राजपूत, रायपुर. छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में शनिवार-रविवार की छुट्टियों का नियम लागू होने से मरीजों की जान पर आफत बन आई है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल, जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और आयुष्मान आरोग्य मंदिर जैसे संस्थानों में आपातकालीन सेवाओं को छुट्टियों से मुक्त रखने का दावा है, लेकिन हकीकत कुछ और बयां कर रही है. लल्लूराम डॉट कॉम की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स और टेक्नीशियन ड्यूटी पर तैनात रहे. ज्यादातर सीनियर डॉक्टर गायब रहे. वहीं प्रशासनिक अधिकारी, लेखा कर्मचारी, बाबू और अन्य नियमित कर्मचारी छुट्टियों पर रहे. इसके चलते अस्पतालों की महत्वपूर्ण शाखाएं बंद रही, जिससे मरीजों काे इलाज कराने भटकना पड़ा. कई मरीजों की मौत तक हो गई.


छुट्टियों का जाल-मरीजों की जान पर भारी
शनिवार और रविवार एवं अन्य छुट्टियों पर प्रशासनिक शाखाएं जैसे लोकल परचेज, एलपी, आवक-जावक शाखा, लेखा शाखा, आयुष्मान शाखा, स्टोर शाखा, छात्र शाखा और एमआरडी शाखा बंद रहती है. इन शाखाओं के बंद होने से अस्पतालों में कई जरूरी काम ठप हो जाते हैं.
लोकल परचेज शाखा : यह शाखा बंद होने से तत्काल जरूरत की जीवन रक्षक दवाएं और मेजर सर्जरी के लिए इम्प्लांट्स की आपूर्ति रुक जाती है. सक्षम स्वीकृति के अभाव में मरीजों को दवाएं नहीं मिलतीं, जिससे उनकी हालत बिगड़ जाती है.
आवक-जावक शाखा : यह शाखा बंद होने से मरीजों को उच्चस्तरीय इलाज के लिए राज्य के बाहर रेफर करने के लिए जरूरी पत्र तैयार नहीं हो पाते. सरकारी कर्मचारियों के मेडिकल चिकित्सा प्रतिपूर्ति फॉर्म भी जमा नहीं हो सकते.
लेखा शाखा : लेखा शाखा बंद होने से बड़े ऑपरेशन के लिए राशि जमा करने या निकालने की सुविधा नहीं मिलती. मरीज को ऑपरेशन के लिए इंतजार करना पड़ता है, जो कई बार जानलेवा साबित होता है.
आयुष्मान शाखा : नियमित कर्मचारियों की छुट्टी के कारण आयुष्मान कार्ड से इलाज बाधित होता है. अनियमित कर्मचारी अकेले काम संभाल नहीं पाते और कई बार वे भी छुट्टी पर होते हैं.
स्टोर शाखा : यह शाखा बंद रहने पर मरीजों को जीवन रक्षक दवाएं और उपकरण उपलब्ध नहीं होते. स्टोर बंद होने पर मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
छात्र शाखा बंद होने पर मेडिकल कॉलेजों में जरूरी प्रशासनिक कार्य रुक जाते हैं.
एमआरडी शाखा : इस शाखा के बंद होने पर जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, पुलिस या न्यायालय के लिए जरूरी दस्तावेज और पोस्टमॉर्टम (पीएम) रिपोर्ट तक उपलब्ध नहीं हो पाती. संवेदनशील मामलों में भी देरी होती है.
अक्सर हम देखते हैं मरीजों की मौत हो जाती है या फिर इलाज नहीं मिलता है, उसे रेफर कर दिया जाता है तो इसका ठीकरा डॉक्टरों पर फोड़ा जाता है. डॉक्टर और नर्स दिन-रात मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं, लेकिन प्रशासनिक सुविधाओं के अभाव में वे बेबस हैं. बड़ा सवाल अब यह है कि बिना दवाओं, उपकरणों और जरूरी स्वीकृतियों के वे मरीजों का इलाज कैसे करें?

नौ दिन की छुट्टी मरीजों की सजा
छत्तीसगढ़ में छुट्टियों का क्लबिंग एक गंभीर समस्या बन गई है. उदाहरण के लिए, 23 अगस्त (शनिवार) से 31 अगस्त (रविवार) तक का कैलेंडर देखें तो नौ दिन छुट्टी है. 23-24 अगस्त शनिवार-रविवार की छुट्टी है. 26 अगस्त तीजा की छुट्टी, 27 अगस्त गणेश चतुर्थी, 28 अगस्त नुवाखाई, फिर 30-31 शनिवार-रविवार को छुट्टी है. यदि कर्मचारी 25 और 29 अगस्त को भी छुट्टी ले लें तो यह नौ दिन की लंबी छुट्टी बन जाती है. सालभर में शनिवार-रविवार, शासकीय और अन्य छुट्टियों को मिलाकर 135 दिन छुट्टी होती है. इसके अलावा 18 आकस्मिक अवकाश, छह माह का मातृत्व अवकाश और दो साल का चाइल्ड केयर लीव कर्मचारियों के पास होता है. इन छुट्टियों का बोझ आखिरकार मरीजों पर पड़ता है.
राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने कहा, शासन द्वारा निर्धारित छुट्टियां हैं. हम कर्मचारियों को रोक नहीं सकते. वैकल्पिक व्यवस्था में डॉक्टर और नर्स ड्यूटी पर रहते हैं, लेकिन कुछ शाखाएं बंद रहती है.
लाचारी और मौत का साया
केस – 1
45 वर्षीय रामलाल (बदला हुआ नाम) हृदय रोगी को शनिवार को अस्पताल में भर्ती किया गया. मेजर सर्जरी के लिए इम्प्लांट की जरूरत थी, लेकिन लोकल परचेज शाखा बंद होने से स्वीकृति नहीं मिली. सोमवार तक इंतजार में उनकी हालत बिगड़ गई और मौत हो गई.
केस – 2
30 वर्षीय सुमन (बदला हुआ नाम) को गंभीर स्थिति में दिल्ली रेफर करना था, लेकिन आवक-जावक शाखा बंद होने से पत्र तैयार नहीं हुआ. दो दिन बाद पत्र मिला, तब तक उनकी हालत नाजुक हो चुकी थी.
केस – 3
50 वर्षीय रमेश (बदला हुआ नाम) को आयुष्मान कार्ड से ऑपरेशन का खर्च उठाना था, लेकिन आयुष्मान शाखा में कर्मचारी नहीं थे. रमेश को इलाज के लिए निजी अस्पताल में मोटी रकम खर्च करनी पड़ी.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दिए ये सुझाव
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम से बात करते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने छुट्टी को मरीजों के लिए जानलेवा बताया है. वहीं कर्मचारी कम होने पर सुझाव भी दिया गया है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा, छुट्टियों को ख़त्म करना चाहिए या फिर वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे इलाज प्रभावित न हो.
- वैकल्पिक व्यवस्था- छुट्टियों के दौरान प्रशासनिक शाखाओं में रोटेशनल ड्यूटी लागू की जाए.
- डिजिटल प्रणाली – दस्तावेज और स्वीकृतियों के लिए ऑनलाइन सिस्टम शुरू हो, ताकि छुट्टियों में भी काम न रुके.
- आपातकालीन स्टाफ – स्टोर और आयुष्मान शाखा जैसी महत्वपूर्ण शाखाओं में आपातकालीन कर्मचारियों की तैनाती हो.
- जिम्मेदारी तय हो -छुट्टियों के कारण मरीजों की मौत होने पर जवाबदेही तय की जाए.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में छुट्टियों का यह सिलसिला मरीजों के लिए मौत का फरमान बन रहा है. डॉक्टर और नर्स अपनी पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन प्रशासनिक सुविधाओं की कमी उन्हें बांधे रखती है. सरकार को चाहिए कि आपातकालीन सेवाओं को पूरी तरह सुनिश्चित करे, ताकि मरीजों की जान बचाई जा सके. यह कहना गलत नहीं होगा कि छुट्टियों की यह व्यवस्था निश्चित रूप से जानलेवा बन रही है.
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