रायपुर। आदिवासियों की आस्था का प्रतीक गढ़िया पहाड़ को सौंदर्यीकरण के नाम पर इस कदर बर्बाद कर दिया गया है, कि एक हरा-भरा पहाड़ हो सकता आने वाले समय खत्म हो जाए. क्योंकि सड़क निर्माण के नाम पर तमाम नियम-कायदे कानून को ताक पर रख दिए गए. निर्माण कार्य में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुए और मामला एनजीटी तक पहुँच गया. एनजीटी के निर्देश वन विभाग की ओर जाँच भी हुई, वन कानून का उल्लघंन मिला, कई अधिकारी-कर्मचारी दोषी मिले, लोक निर्माण विभाग को नोटिस हुआ, लेकिन अब उसी गढ़िया पहाड़ के निर्माण पर गड़बड़ी नहीं होने की बात 4 सदस्यीय जाँच टीम ने कह दी है.


शिकायतकर्ता अभिजीत दत्ता के आरोपों पर 4 सदस्यीय जाँच टीम गठित की गई. टीम में आरईएस ईई पी.एस. सुधाकर, डब्ल्यूआरडी ईई आर.आर. वैष्णव, पीएमजीएसवाय ईई उल्लास कोपुलवार और अपर कलेक्टर आर. चेलक शामिल थे. अब जाँच टीम की ओर से दी गई रिपोर्ट में किसी भी तरह से गड़बड़ी निर्माण कार्य में होने से इंकार कर दिया गया. जाँच रिपोर्ट में टीम के सदस्यों ने कहा, कि सड़क निर्माण का कार्य 2 वर्ष पूर्ण हो चुका है, वन कानून अधिनियम 1980 का उल्लंघन नहीं हुआ, पहाड़ पर तालाब नहीं खोदा गया है, न ही मलबा डंप किया गया है. न ही सड़क किनारे जो दीवाल खड़ी गई उसकी गुणवत्ता में कोई कमी पाई गई है.


जाँच अधिकारी आर. चेलक का कहना है कि इसमें किसी भी तरह से कोई गड़बड़ी नहीं हुई. शिकायतकर्ता की ओर से जो शिकायतें मिली सभी में जाँच की गई है. कहीं कोई ख़ामिया नहीं मिली है.

जाँच रिपोर्ट में जो बातें सामने आई वह बेहद चौंकाने वाली है. क्योंकि फरवरी 2018 में जब lalluram.com की टीम ने मौके पर जाकर पड़ताल की थी, तो वर्तमान जाँच रिपोर्ट से सारी बातें अलग थी. हमने दस्तावेजों के परीक्षण और अधिकारियों से मिली जानकारी के अधिकार पर यह पाया था, कि निर्माण कार्य में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचर हुए हैं.
गढ़िया पहाड़ से संबंधित पूरे मामले को इस दस्तावेजी रिपोर्ट को यहाँ पड़ा जा सकता है.

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शिकायतकर्ता अभिजीत दत्ता का कहना है, कि चार सदस्यीय जाँच टीम ने जो रिपोर्ट दी है, उसे फिर से चुनौती देंगे. इस मामले में लीपापोती की गई है. सभी तथ्यों को छुपा दिया गया. हमारी शिकायतों को नज़र अंदाज किया गया है. जबकि मैंने पूर्व की जाँच रिपोर्ट और प्रमाण के साथ शिकायतें की थी. फिर यह कहना है कि कहीं कोई गड़बड़ी नहीं है, इसका मतलब साफ है की पूरी तरह गड़बड़ी है. इस मामले में दोषी अधिकारी-कर्मचारियों को बचाने का प्रयास किया गया है.