सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में संग्रहित धान की 23250 किस्मों में से 13 किस्मों का चयन अनुसंधान के लिए किया गया. आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए इन 13 किस्मों को कुछ अन्य चेक किस्मों के साथ टेस्ट किया गया, जिसमें से 3 किस्में लायचा, महाराजी और गठुवन में विशिष्ट औषधीय गुण प्राप्त किए गए. विश्वविद्यालय अब इन्हें नए उत्पाद के तौर पर बाजार में लाने में जुट गया है.
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में किए गए परीक्षण में गठुवन चावल (मोटा चावल) में रोग प्रतिरोधक क्षमता, एंटी-इंफ्लेमेटरी के अलावा गठिया रोग के उपचार में उपयोगी पाया गया, वहीं सुगंधित एवं पतले महाराजी चावल में कैंसर रोधी, एंटी-इंफ्लेमेटरी, महिलाओं में गर्भावस्था के बाद पानी की तरह उपयोगी पाया गया है. इसके अलावा सुगंधित एवं मध्य पतले आकार वाले लायचा चावल को कैंसर रोधी, रोग प्रति रक्षा क्षमता वाला और त्वचा संबंधित रोगों के उपचार में उपयोगी पाया गया है. इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग अगले चरण के कार्यों में जुट गया है.
एचओडी डॉक्टर दीपक शर्मा ने बताया कि 23250 क़िस्म के चावल में से 13 अलग-अलग किस्म के चावल में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में परीक्षण हुआ है, जिसमें तीन किस्म गठुवन, महराजी, लायचा चावल में औषधीय गुण मिले हैं. अब इसके विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए परीक्षण का दौर जारी है. उन्होंने बताया कि इन चावलों का बहुत जल्द नए उत्पाद, सप्लीमेंट, कैप्सूल, बोर्नबिटा जैसे अन्य उत्पाद बनाने के लिए परीक्षण जारी है, बहुत ही जल्द अब मार्केट में उपलब्ध होगा.
डॉ. दीपक शर्मा ने बताया कि इस चावल को खाने में शामिल करने से लाभ तो होगा, लेकिन उतना नहीं जितना इसका कच्चा खाने से हैं. गर्म होते ही कई पोषक तत्व बढ़ जाते हैं, इसलिए एक चम्मच कच्चा चावल का सेवन ज़्यादा लाभदायक है. उन्होंने बताया कि चावल की इन किस्मों का धमतरी, बस्तर बेल्ट में उत्पादन पहले ज़्यादा होता था, लेकिन अब किसानों ने उत्पादन लेना बंद कर दिया है. अब इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय अगले चरण के कार्यों में जुटा है, जैसे इसके नए क़िस्म तैयार करना, उत्पादन कर मार्केट में पहुँचाना आदि.