रायपुर. हर साल 1 मई को श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है. श्रमिक दिवस पर श्रमिकों का सम्मान भी होता, लेकिन साल के एक दिन के बाद श्रमिकों का हाल बेहाल ही होता है. इस रिपोर्ट में आपको बताएंगे कि श्रम मंत्री के घर के पास काम की तलाश में हर सुबह चौराहे पर इक्कठा होने वाले मजदूरों का हाल क्या है.

श्रमिक दिवस के ठीक दूसरे दिन हम श्रमिकों के बीच उनका हाल जानने तेलीबांधा पहुंचे. रोजगार की तलाश में गांवों से बड़ी संख्या में मजदूर रायपुर पहुंचते हैं. मजदूरों की भीड़ तेलीबांधा चौराहे पर लगती है. तेलीबांधा चौराहे से कुछ दूरी पर ही श्रम मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया का अपना निजी आवास है. जबकि करीब एक किलोमीटर दूरी पर सरकारी बंगला है. मजदूर जिस चौराहे पर खड़े रहते हैं, श्रम मंत्री अक्सर उस मार्ग से आना-जाना करते हैं. लेकिन कभी मजदूरों की सुध भी लेते हैं या नहीं ? यह सवाल है और इस सवाल का जवाब मजदूरों के मुताबिक न में ही है. वैसे श्रम मंत्री की यह जवाबदेही तो बनती है कि बीच-बीच में वह अपने विभाग की खोज-खबर लेते रहे. मजदूरों के बीच जाकर जान लेते कि रोजगार मिल रहा है या नहीं ? योजनाओं का लाभ मिल रहा है या नहीं ? सरकारी कैंटिन में भोजन मिल रहा या नहीं ?

मंत्री समय निकालेंगे, तब निकालेंगे, हो सकता है चुनाव के दौरान मजदूरों के बीच जाने का अवसर मिले. लेकिन हमने श्रमिक दिवस के दूसरे दिन श्रमिकों के बीच जाकर जो जाना, जो देखा उसे बताते हैं. तेलीबांधा चौराहे पर रोजाना सैकड़ों मजदूर रोजगार के लिए गांवों, शहर के ही अन्य मोहल्लों से आते हैं. बातचीत में पता चला कि अधिकतर मजदूरों का पंजीयन श्रम विभाग में नहीं है. मजदूर कार्ड नहीं बना है. जिनके पास श्रमिक कार्ड है उन्हें भी काम के लिए भटकना पड़ता है. श्रम विभाग की योजनाओं का भी समूचित लाभ नहीं मिलता. योजनाएं कौन-कौन सी संचालित की जा रही है ? योजनाओं का लाभ लेने के लिए उन्हें क्या-क्या करना होगा इसकी जानकारी भी नहीं है. कोई शिविर का आयोजन तेलीबांधा में श्रम विभाग की ओर से किया गया हो इसकी जानकारी भी नहीं है.

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मजदूरों को जानकारी किस बात की है ? इस सवाल के जवाब में मजदूर बताते हैं कि श्रम विभाग की ओर से एक सरकारी कैंटिन का संचालन किया जा रहा है. शहीद वीरनारायण सिंह श्रम अन्न योजना केंद्र शुरुआती कुछ महीने में तो कैंटिन ठीक से चला, लेकिन अब हालत बहुत खराब है. कैंटिन में पीने का पानी तक नहीं मिलता. बीते डेढ़ साल से कैंटिन में पीने का पानी नहीं है. कैंटिन में भरपेट भोजन भी नहीं नहीं मिलता है. यहां तक कैंटिन में भोजन के लिए कोई उचित स्थान तक नहीं है. पंजीकृतों को 5 रुपए में भोजन मिलता है, जबकि अन्य श्रमिकों को 22 रुपए में भोजन मिलता है. और तो और एक सुलभ केंद्र (शौचालय-बाथरूम) तक की व्यवस्था यहां नहीं है.

मजदूर जब कैंटिन में इस बात की जानकारी दे ही रहे थे, कैंटिन के मैनेजर हड़बड़ा गए. उन्होंने तत्काल श्रम विभाग में किसी को फोन पर सूचित किया. श्रम विभाग के एक कर्मचारी हड़बड़ाते हुए कैंटिन पहुंचे. श्रम विभाग के कर्मचारी ने बताया कि कैंटिन का संचालन भिलाई स्थित अक्षय पात्र संस्थान की ओर से किया जा रहा है. श्रमिकों को 200 ग्राम तक भोजन दिया जाता है. फिल्टर प्लांट कोरोना के दूसरे चरण के दौरान से बंद है. नगर निगम की ओर से पानी सप्लाई की मांग की गई है. अब तक पानी निगम से नहीं मिला है.

इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद अब श्रम मंत्री क्या करेंगे ? मजदूरों के बीच जाएंगे ? कैंटिन की व्यवस्था सुधरवाएंगे ? या फिर सालभर का इतजार करेंगे ? किसी श्रम दिवस को मनाने के लिए ? किसी बड़े आयोजन में बतौर अतिथि शामिल होकर मजदूरों को सम्मानित करने के लिए ?

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