कुशीनगर. सरकार एक तरफ भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और जिरोटालरेंस की निति पर काम करने की बात कर रही है. वहीं दूसरी तरफ कुशीनगर जिले में कार्यरत जिम्मेदार अधिकारियों के चलते केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना जमीनी धरातल पर उतरने से पहले ही भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ रही है.
गांव के मजदूरों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कर मजदूरों को दूसरे प्रदेश में पलायन से रोकने के लिए चलाई जा रही मनरेगा योजना जिम्मेदारों के चलते भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गई है. ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक, तकनीकी सहायक, पंचायत सचिव “ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर” (खंड विकास अधिकारी) जिनके द्वारा इस योजना में जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है.
विशुनपुरा विकास खंड में मनरेगा योजना में जमकर हो रहा भ्रष्टाचार
विशुनपुरा विकास खंड के गांवों में मनरेगा योजना में जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है. जब इसकी जमीन स्तर पर पड़ताल की गई तो मनरेगा योजना में हो रही भ्रष्टाचार की कलई परत दर परत खुलकर सामने आने लगी. जो गांव में कभी साइड पर नहीं जाते हैं उनके नाम से साइड पर कार्य करते हुए आनलाइन मास्टरोल में हाजिरी लगा दी जाती है. ग्राम पंचायत में नियुक्त तकनीकी सहायक द्वारा बिना साइड पर गए एमबी कर दी जाती हैं, मजदूरों के खाते में पैसे भेज कर निकलवा लिया जाता है. जिसमें दो चार सौ रुपए उन मजदूरों को पैसे दे दिए जाते है, जिनको मनरेगा मजदूर बनाया गया और वो कभी साइड पर नहीं जाते हैं.
कागजी आंकड़ों में कार्य समाप्ति और पेमेंट
सबसे बड़ी बात हैं कि मनरेगा योजना से हो रहें कार्यों में कहीं भी कार्य स्थल कार्य शुरू होने और समाप्ति तक डिस्पले बोर्ड नहीं लगता. डिस्पले बोर्ड तब लगाया जाता जब उस परियोजना का कागज़ी आंकड़ों में काम होकर पेमेंट हो जाता. ताकि ग्रामीणों को इसकी जानकारी न होने पाएं की इस सड़क पर मिट्टी कार्य कार्य हो रहा और कितने मजदूर काम कर रहें हैं. और कितने मजदूरों का फर्जी हाजिरी लगाकर पेमेंट कराया जा रहा है. इसमें सबसे बड़ी समस्या उन मजदूरों को हो रही जो वास्तविक मजदूर हैं और उनको रोजगार नहीं मिल पा रहा. इस समय मनरेगा योजना में सरकारी धन का बंदरबाट खूब हो रहा है.
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मनरेगा योजना में हो रहे भ्रष्टाचार का जिम्मेदार कौन
इसमें सबसे बड़ा जिम्मेदार ग्राम पंचायत में नियुक्त तकनीकी सहायक हैं, जो पहले ग्राम पंचायत द्वारा प्रस्तावित कार्य पर स्टीमेट बनाता हैं. उसके बाद रोजगार सेवक की जिम्मेदारी होती हैं. वह स्टीमेट बने कार्य के साइड पर कार्य कराकर हाजिरी लगाने की है. उसमें रोजगार सेवक द्वारा कागजों में प्रस्तावित कार्य पर बिना कार्य कराए फर्जी मनरेगा मजदूरों की हाजिरी लगाना शुरू करता है. जो कभी भी मनरेगा योजना से हो रहें साइड पर कार्य करने नहीं जाते केवल वह कागज़ी आंकड़ों में मजदूरी करते, साइड पर कभी कभार दस से बीस मजदूर मिल जायेंगे जो सड़क पर उगे झाड़ियों को कुदाल से छिलते काटते नजर आ जाएंगे जो वास्तविक मनरेगा मजदूर हैं. उन्ही का फोटो भी हर साइडों पर अपलोड रहता जबकि कुछ ग्राम पंचायतों में रोजाना साइडों हर दिन 70 से लेकर 85-90 मजदूरों की हाजिरी लगती है, लेकिन अपलोड फोटो में केवल उस साइड पर पांच से सात मजदूरों का फोटो अपलोड रहता वही जब काम कम्पलीट हो जाता तो फर्जी लगे हाजिरी के मुताबिक पंचायत में नियुक्त तकनीकी सहायक द्वारा बिना साइड पर गए आफिस में बैठें बैठें MB कर भुगतान के लिए पंचायत सचिव के टेबल से फाइल होते हुए BDO आफिस तक पहुंचती हैं और उस फ़ाइल का भुगतान हो जाता हैं इस तरह सरकारी धन का बंदरबाट मनरेगा योजना में जमकर हो रहा है.
मोबाइल मानरीटिंग सिस्टम से खुल रही भ्रष्टाचार की पोल
अगर उच्च अधिकारी किसी भी मनरेगा योजना से हुए पेमेंट का स्थलीय निरीक्षण कर जांच कर लें तो मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार का पोल परत-दर-परत खुल जायेगी. मिट्टी कार्य में स्टीमेट के अनुसार कितने फिट मिट्टी की भराई सड़क पर हुई हैं. मेजरमेंट कर दिया जाए तो उनके कारनामे सामने आ जाएगा, लेकिन उच्च अधिकारी भी मौन साधे हुए हैं, जिनके जिम्मे सरकार के योजनाओं को जमीनी धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी है. अब देखना यह है की मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार कब तक रूकता हैं या इसी तरह भ्रष्टाचार बेलगाम ब सरकारी खजाने को खाली करता रहता है.
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