रायपुर. गोमर्टा अभ्यारण से सटे इलाके में क्वार्टज की दो माइन खोलने की अनुमति के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस और पर्यावरणीय स्वीकृति के मामले में जानबूझकर गड़बड़ी की गई है. दस्तावेज़ बताते हैं कि रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए अपनी रिपोर्ट में तात्कालीन डीएफओ ने सच को छिपाते हुए झूठी रिपोर्ट दी और केंद्र सरकार की राज्य स्तर समाघात निर्धारण प्राधिकरण ने पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए सच छिपाते हुए रिपोर्ट बनाई. इस मामले में खनिज विभाग की भूमिका भी संदिग्ध है. उसने बिना स्थल का निरीक्षण किए लीज़ का लाइसेंस दे दिया. उसने इस बात की पड़ताल की भी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरणों के निर्देश का पालन हुआ है या नहीं.

महासमुंद के सरायपाली क्षेत्र के बिरकोनी गांव में करीब 25 हैक्टेयर क्षेत्र में करीब 1.5 लाख टन सालाना क्वार्टजाइट के उत्खनन की स्वीकृति नियमों को बाइपास करके दी गई है. लल्लूराम डॉट कॉम के पास उस रिपोर्ट की कॉपी है जिसके आधार पर क्वार्ट्ज की तीन खदाने अभ्यारण्य से लगे इलाके में दी गई. इन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि रिपोर्ट के शब्दों में हेराफेरी करके अभ्यारण्य के सटे इलाके में करोड़ों की माइन्स का फॉरेस्ट क्लीयरेंस और पर्यावरणीय स्वीकृति कराकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाई गईं.

लल्लूराम डॉट कॉम के पास अशोक कुमार पटेल और राजेश शर्मा को गोमर्टा अभ्यारण्य से सटे इलाके में क्वार्ट्ज की माइन की फॉरेस्ट क्लीयरेंस और पर्यावरणीय स्वीकृति से संबंधित दस्तावेज़ हैं.

दस्तावेज़ के मुताबिक राजेश शर्मा नाम के शख्स ने सराईपाली के बिरकोल गांव में 12.5 हैक्टेयर ज़मीन क्वार्ट्ज की खुदाई के लिए लीज़ पर लेने के लिए 25 जुलाई 2017 को फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए आवेदन किया. 6 दिन बाद भी तात्कालीन डीएफओ ने ये कहते हुए इस खदान के लिए क्लीयरेंस दे दिया कि पांच किलोमीटर की परिधि में इस वनमंडल में राष्ट्रीय अभ्यारण्य, हाथी कॉरीडोर या वन्यप्राणी अभ्यारण्य नहीं आता. जबकि वस्तुस्थिति ये है कि इस खदान से कुछ ही दूर पर गोमर्डा अभ्यारण्य स्थित है. उस वक्त डीएफओ के पद पर आलोक तिवारी पदस्थ थे.

तात्कालीन डीएफओ तिवारी के इसी रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार की एजेंसी राज्य स्तर समाघात निर्धारण प्राधिकरण ने पर्यावरणीय स्वीकृति 23 जुलाई 2017 को राजेश शर्मा को दे दी. जिसके बाद उन्हें सालाना 95 हज़ार टन क्वार्टज के खनन का लाइसेंस मिल गया. दरअसल, गोमर्डा अभ्यारण्य रायगढ़ वनमंडल का हिस्सा है. इसलिए महासमुंद वनमंडल क्षेत्र का हवाला देकर सच को छिपा लिया गया.

मज़ेदार बात है कि डीएफओ ने फॉरेस्ट क्लीयरेंस में 5 किलोमीटर में कोई अभ्यारण्य का नहीं होना बताया और इसी के आधार पर समाघात निर्धारण समिति ने अपनी स्वीकृति में लिख दिया कि प्रस्तावित खदान के 10 किलोमीटर की परिधि में कोई अभ्यारण्य नहीं है. इन दस्तावेज़ों से साफ ज़ाहिर है कि राजकीय समाघात निर्धारण समिति ने न तो डीएफओ की रिपोर्ट पढ़ी न ही प्रस्तावित स्थल का परीक्षण किया.

अशोक कुमार पटेल ने 9 मई 2017 को बिरकोल के ही 11.411 हैक्टेयर में करीब 47 हज़ार टन सालाना क्वार्टज के खनन के लिए फॉरेस्ट क्लीयरिंग का आवेदन महासमुंद के तात्कालीन डीएफओ के पास लगाया था. जिसे एक साल पहले की तारीख 11 मई 2016 पर फॉरेस्ट क्लीयरेंस दे दिया गया. जिस तारीख को आवेदन दिया गया उस तारीख को महासमुंद के डीएफओ आलोक तिवारी ही थे. लेकिन जिस बैक डेट पर फॉरेस्ट क्लीयरेंस अशोक कुमार पटेल को मिला, उस वक्त वहां के डीएफओ एचएल रात्रे थे.

इस मामले में भी फॉरेस्ट क्लीयरेंस की रिपोर्ट में 5 किलोमीटर की परिधि का ज़िक्र है. लेकिन राज्य स्तर समाघात निर्धारण समिति ने अपनी स्वीकृति में लिख दिया कि डीएफओ ने 10 किलोमीटर की परिधि में कोई अभ्यारण्य का नहीं होना बताया है. दोनों दस्तावेज़ ये साफ इशारा करते हैं कि दोनों ही मामलों मे पर्यावरणीय स्वीकृति देने में मामले में कोई चूक नहीं हुई है बल्कि जानबूझकर दोनों ही विभाग के अधिकारियों ने गड़बड़ी की है.

इस मामले का खुलासा तब हुआ जब इसी गांव में मिली क्वार्ट्ज की तीसरी माइन ने अपने लीज़ के विस्तार का आवेदन लगाया. जिसके बाद पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड ने मौका मुआयना किया. तब विभाग को पता चला कि नियम विरुद्ध यहां क्रशर लगाया गया है और ये इलाका गोमर्डा अभ्यारण्य से सटा हुआ है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अभ्यारण्य से सटे दस किलोमीटर इलाके में किसी तरह की माइनिंग गतिविधियों को अनुमति नहीं दी जा सकती.