दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति का विवाहेत्तर संबंध (Extra marital affair) तब तक क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में नहीं माना जाएगा, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि इससे पत्नी को कोई मानसिक या शारीरिक पीड़ा हुई है. यह टिप्पणी जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने दहेज हत्या के आरोपी पति को जमानत देते समय की.

दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के सभी 12 जोन और 2 रिक्त पदों के लिए चुनाव आज

बेंच ने स्पष्ट किया कि विवाहेत्तर संबंधों को दहेज हत्या के मामले में पति को फंसाने का आधार नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा कि यदि मृतक महिला की मृत्यु का कारण विवाहेत्तर संबंध हैं, तो दहेज की मांग का मामला कैसे उठ सकता है. इस संदर्भ में, किसी एक आरोप पर ध्यान केंद्रित करना अधिक उचित होगा. विवाहेत्तर संबंध और दहेज की मांग के बीच साक्ष्यों के आधार पर संबंध स्थापित करना आवश्यक है.

इस मामले में दंपती की शादी को लगभग पांच वर्ष हो चुके थे. 18 मार्च, 2024 को पत्नी ने आत्महत्या कर ली. पति को उसकी ससुराल में महिला की अप्राकृतिक मौत के मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने, दहेज हत्या और दहेज उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

दिल्ली में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ्तार,152 नए मामले के साथ सक्रिय मरीजों की संख्या हुई 436

अभियोजन पक्ष ने मृतक के परिवार के हवाले से बताया कि आरोपी पति का एक महिला के साथ विवाहेतर संबंध था, जिसके समर्थन में कुछ वीडियो और चैट रिकॉर्ड प्रस्तुत किए गए. हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस आरोप की गंभीरता पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह क्रम उचित नहीं है. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि इस मामले में आरोपपत्र दायर किया जा चुका है, इसलिए आरोपी को जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है.

बेंच ने यह स्पष्ट किया कि महिला के जीवित रहने के दौरान न तो उसने और न ही उसके परिवार ने दहेज उत्पीड़न की कोई शिकायत दर्ज कराई थी. इस कारण से, ऐसे आरोपों पर विश्वास करना कठिन है. सत्र अदालत मामले की पूरी सुनवाई के बाद ही अंतिम निर्णय सुनाएगी.

CM रेखा गुप्ता ने हरिद्वार में गंगा स्नान कर कहा- मां गंगा का आशीर्वाद मिले ताकि यमुनाजी को भी हम अविरल और स्वच्छ बना सकें

दहेज हत्या मामले में आरोपी बरी

दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में पति और ससुराल के अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशांत चंगोत्रा की अदालत ने कहा कि गवाहों और साक्ष्यों की कमी के कारण आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए. इस मामले में आरोपियों के खिलाफ थाना अतरौली में एफआईआर दर्ज की गई थी.