राजस्थान. होली त्योहार है रंगों का और खूब सारी मस्ती का. कहते हैं कि ये एक ऐसा त्योहार है, जिसमें लोग गिले-शिकवे भूला कर इसके रंग में रंग जाते हैं. भारत के अलग-अलग राज्यों में होली खेलने का भी अलग-अलग तरीका है. कहीं लट्ठमार होली होती है तो कहीं फूलों से होली खेली जाती है. इसी तरह की एक विशेष होली खेली जाती है राजस्थान के नागौर में. यहां की फक्कड़ होली पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है, जो विशेष रूप से पुष्करणा समाज के लोग खेलते हैं.
राजा अमर सिंह के पिता गजसिंह के समय काल से यहां फक्कड़ होली मनाई जाती हैं. होली मनाने का ये ढ़ग बेहद खास है क्योंकि इस होली में नकली मुक्केबाजी और नकली लड़ाई की कला का प्रदर्शन किया जाता हैं.
ये है फक्कड़ होली का इतिहास
वीर अमर सिंह राठौड़ के बहादुर पिता गजसिंह के समय नागौर में फक्कड़ गैर की परंपरा शुरू हुई थी. जो आज भी उसी तरह से चली आ रही है. नागौर में होली से पहले 2 बार फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पहली गैर शिवरात्रि की रात को पुष्करणा समाज की ओर से निकाली जाती है. इसके बाद रंगभरी एकादशी पर पुष्करणा समाज की गैर लोढ़ा के चौक से शुरू होकर शहर के प्रमुख स्थानों तक जाती है और वापस इसकी जगह आकर अल सुबह इसका समापन होता है.
इस होली को बनाता ये खास
होली से पहले यहां पर डाडिया गायन, उसके बाद होली मनाने में केवल गुलाबी रंग, नकली मुक्केबाजी औरनकली लड़ाई कला का प्रदर्शन किया जाता है. यह शहर के अलग-अलग स्थानों पर जाकर होली मनाते हुऐ लोढ़ा के चौक में होली का समापन किया जाता हैं. दोनों ही गैर में भगवान शिव के प्रतीक के रूप में एक व्यक्ति को फक्कड़ का रूप धराया जाता है. जो चंग, ढोलक और मंजीरे की धुन पर मदमस्त होकर नाचता है. न केवल युवा बल्कि बुजुर्ग भी इस धुन पर थिरकते हुए दिखाई देते हैं. इस दौरान पुष्करणा समाज के लोग शहर में अलग-अलग स्थानों पर घूमते हुए अपने सगे संबंधियों के घरों और उनके मोहल्लों तक जाते हैं और प्रेम के प्रतीक फाग गीत गाते हैं. होली के मौके पर जहां नागौर शहर में डांडिया रास की ऐतिहासिक परंपरा है. वहीं, धूलंडी के मौके पर पुष्करणा समाज की ओर से झगड़ा गैर का आयोजन भी होता है. जिसमें पूरे शहर के लोग उत्साह के साथ शामिल होते हैं.
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