रायपुर. प्रभा खेतान फाउंडेशन और अभिकल्प फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से छत्तीसगढ़ी राजभाषा और प्रदेश की अन्य बोलियों के लिए साहित्यिक कार्यक्रम ‘आखर’ (Aakhar) की दूसरी कड़ी में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार और कवि रामेश्वर वैष्णव शामिल हुए. होटल हयात में आयोजित इस कार्यक्रम में विजय मिश्रा अमित ने उनके छत्तीसगढ़ी साहित्यिक सफर पर उनसे चर्चा की.

अभिकल्प फाउंडेशन के संस्थापक गौरव गिरिजा शुक्ला ने बताया कि ‘आखर’ (Aakhar) छत्तीसगढ़ी भाषा और यहां की विभिन्न बोलियों के संरक्षण के संदर्भ में बहुत ही सार्थक प्रयास है. इसका उद्देश्य हमारे प्रदेश की सभी क्षेत्रिय बोलियों और भाषाओं में लिखे साहित्य को लोगों तक पहुंचाना और युवा पीढ़ी को इनसे अवगत कराना है. ‘आखर’ (Aakhar) कार्यक्रम की यह दूसरी कड़ी थी. उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में हर महीने ‘आखर’ कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा.

गजलों से मिली प्रेरणा

सवाल-जवाब की कड़ी में साहित्यकार रामेश्वर वैष्णव ने बताया कि 6वीं कक्षा में उन्हें पुरस्कार में दीवान-ए-गालिब भेंट में मिली. उस समय वे उनकी गजलों के मायने नहीं पता थे, लेकिन बाद में इसी किताब से प्रेरणा मिली. उन्होंने बताया कि रायपुर में उन्हें अच्छे दोस्त मिले जिनके साथ वो गजल लिखने का अभ्यास करने लगे. इसी के साथ उनकी लेखनी में धार आता चला गया. सन 1976 में उनकी लिखी छत्तीसगढ़ी गजल का पहली बार प्रसारण आकाशवाणी में हुआ. जिसके बोल थे-

‘हम दूसर के डहर बन गए हन,
कोनो हमरो डहर बन जातिस,
सब तुंहर मन, हमर बन जातिन,
अउ हमर ह तुंहर बन जातिस…

स्वामी आत्मानंद के प्रवचन से बदला आत्महत्या का इरादा

रामेश्वर ने बताया कि उन्होंने सन 1964 में मैट्रिक की परीक्षा मेरिट लिस्ट से उत्तीर्ण की. जिसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया. लेकिन वहां परीक्षा में फेल होने पर उनके मन में आत्महत्या का विचार आया और वे वर्तमान सरस्वती नगर रेलवे स्टेशन में ट्रेन के सामने कूदकर जान देने के इरादे से चले गए. वहां एक अनजान बुजुर्ग महिला ने उन्हें भगा दिया और उसके बाद उसी दिन स्वामी विवेकानंद आश्रम में स्वामी आत्मानंद जी के जीवन-मृत्यु पर प्रवचन सुनने के बाद उन्होंने आत्महत्या का इरादा बदल दिया.

विभिन्न विधाओं में रामेश्वर के प्रयोग

रामेश्वर वैष्णव ने बताया कि उन्होंने छत्तीसगढ़ी कविता, गीत, दोहा, सोरठा, चौपाई, कव्वाली, भांगड़ा, रैप सॉन्ग, माहि और अन्य विधाओं में भी अनेक प्रयोग किए हैं, जो कि बहुत ही लोकप्रिय हुए हैं. बातचीत के दौरान उन्होंने अपने कुछ लोकप्रिय गाने भी गुनगुनाए. जिसमें-

तैं बिलासपुरहिन, मैं रायगढ़िया….

बने करे राम मोला अंधरा बनाए….

झन भुलव माँ बाप ल… इत्यादि गीत के बोल गुनगुनाए…

कार्यक्रम में अभिकल्प फाउंडेशन के वरिष्ठ सदस्य गिरिजा शुक्ला ने रामेश्वर वैष्णव का सम्मान किया. वहीं शिक्षाविद स्मिता शर्मा ने विजय मिश्रा अमित जी का सम्मान किया. इसके अलावा एहसास वुमन बिलासपुर की सदस्य डॉ. गरिमा तिवारी ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया.

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