अम्बिकापुर से 10 किलोमीटर दूर सिलफिली के करीब कंचनपुर के किसान विजय साहू अब तक चार गाड़ी खीरा फेंक चुके हैं। खेतो से खीरे की तुड़ाई और पैकिंग करने में 2 रुपये प्रति किलो खर्च आता है। लेकिन लॉक डाउन में 2 रुपये में भी कोई खीरा खरीदने को तैयार नहीं हुआ तो उन्हें इसे फेंकना पड़ा.
विजय जब बाकी खीरे की फसल को देखते हैं, उनकी धड़कने बढ़ जाती हैं। कहीं इन्हें भी लॉक डाउन की वजह से फेंकना न पड़े। 10 एकड़ खीरे में उनके करीब 15 लाख रुपये फंसे हैं। फसल तैयार हो रही है लेकिन मंडी में कोई बाहर का खरीददार नहीं आ रहा है। मंडी में खीरे की कीमत 1 रुपये से 4 रुपये किलो है। ऐसे में लागत के एक तिहाई पैसे भी निकालने मुश्किल हो जाएंगे। विजय का कहना है कि आज 2 गाड़ी माल बिका है, तो थोड़ी से राहत मिली है। लेकिन आगे भी राहत मिलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है.
लॉक डाउन ने जो हाल खीरे का किया है वही हाल बाकी सब्ज़ियों का भी कर रखा है। यहां थोक में पत्तागोभी 1-2 ₹ किलो, आलू 12-15₹ किलो, फूल गोभी 10-15 ₹ किलो, भिंडी 23-25 ₹ किलो का रेट है। जबकि सभी सब्ज़ियों की बम्पर पैदावार करने वाले किसानों को उम्मीद थी कि इस बार रेट ज़्यादा मिलेंगे.
सिलफिली के कपिल सेन का कहना है कि
सिलफिली के सभी सब्ज़ी उत्पादक किसानों का बुरा हाल है। फसल तैयार है और ख़रीददार आ नहीं रहे। दूसरे राज्य से ग्राहकों के न आने से सिलफिली के आसपास करीब से ज़्यादा गांव सब्ज़ी उत्पादित करते हैं और सिलफिली की मंडी से बाहर से आये व्यापारियों को माल बेचते हैं। लेकिन लॉक डाउन की वजह से मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा माल नहीं जा पा रहा है। अगर गाड़ीवाले सब्ज़ी लेकर चले भी जाएं तो वापिस खाली गाड़ी लाने में दिक्कत है.
सिलफिली के एक और किसान राजेश का कहना है इतना बड़ा सब्ज़ी उत्पादन क्षेत्र होने के बाद भी यहां कोई कोल्ड स्टोर नहीं है, जहां किसान अपनी सब्ज़ियों को कुछ दिन सुरक्षित रख सकें। लिहाज़ा किसानों को लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। राहत आगे भी मिलने की भी उम्मीद नहीं है.