देशभर से किसान एक बार फिर राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर जुटने लगे हैं. सोमवार सुबह से ही किसान संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की ओर से आयोजित ‘किसान महापंचायत’ में शामिल होने के लिए पहुंच रहे हैं. महापंचायत में मुख्य रूप से सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP की कानूनी गारंटी, कृषि, डेयरी, पोल्ट्री और मत्स्य पालन क्षेत्रों को अमेरिका के साथ किसी भी संभावित समझौते से अलग रखने और कृषि कानूनों (अब निरस्त) के खिलाफ आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मामलों की वापसी जैसी पुरानी मांगों पर विचार किया जाएगा. एसकेएम ने कहा है कि बैठक पूरी तरह शांतिपूर्ण रहेगी और किसानों से बड़ी संख्या में भागीदारी की अपील की गई है.
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यह महापंचायत लगभग चार साल बाद आयोजित हो रही है. साल 2020-21 में हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक डेरा डालकर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग उठाई थी. अंततः केंद्र सरकार को कानून वापस लेने पड़े थे.
केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद किसान आंदोलन समाप्त हो गया था, लेकिन कई किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने एमएसपी पर कानून बनाने और अन्य वादों को अब तक पूरा नहीं किया. इन्हीं मुद्दों को लेकर एक बार फिर दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों की महापंचायत बुलाई गई है. दिल्ली पुलिस ने ऐहतियातन सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम किए हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, मौके पर करीब 1,200 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके और राजधानी की कानून-व्यवस्था बनी रहे.
पंजाब और हरियाणा के किसानों ने कई महीनों तक शंभू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले रखा था. शंभू बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चार महीने से ज्यादा समय तक अनशन किया था. केंद्र सरकार के साथ कई चरणों की बातचीत के बावजूद एमएसपी की गारंटी पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका. खनौरी बॉर्डर पर भी बड़ी संख्या में किसान जुटे थे, जिन्हें बाद में बलपूर्वक हटाया गया.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की सराहना करते हुए उन्हें ‘सच्चा किसान’ बताया था. अदालत ने टिप्पणी की थी कि कुछ लोग शिकायतों का निपटारा नहीं चाहते, उनका राजनीतिक अजेंडा रहता है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईवे देश की जीवनरेखा हैं, इसलिए उन्हें अवरुद्ध नहीं किया जा सकता.
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