रायपुर। कोयला खदानों के व्यावसायिक खनन की अनुमति दिए जाने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ ३ जुलाई को देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया है. इस विरोध-प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ के 25 किसान संगठनों अपनी भागीदारी निभाएंगे.

विरोध-प्रदर्शन करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित- आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति) आदि संगठन प्रमुख हैं.

इन संगठनों से जुड़े नेताओं संजय पराते, आलोक शुक्ला, सुदेश टीकम, राजिम केतवास, बालसिंह, पारसनाथ साहू, आई के वर्मा, नरोत्तम शर्मा, तेजराम विद्रोही, केशव शोरी, रमाकांत बंजारे, ऋषि गुप्ता, कृष्णकुमार, कपिल पैकरा, अयोध्या प्रसाद राजवाड़े आदि ने कहा कि छत्तीसगढ़ के जिन नौ कोल ब्लॉकों को नीलामी की जा रही है, उनमें से कई कोल ब्लॉक पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में है. हाथी संरक्षण और विभिन्न कारणों से इसे खनन के लिए ‘नो-गो एरिया’ घोषित किया गया है.

किसान नेताओं ने कहा कि हसदेव अरण्य की 20 ग्राम पंचायतों ने इस क्षेत्र में पेसा, वनाधिकार कानून व पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का उपयोग करते हुए कोयला खनन के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं. आदिवासी समुदायों को हमारे देश के संविधान से मिले इन अधिकारों के मद्देनजर केंद्र सरकार का यह निर्णय गैर-कानूनी है.

किसान नेताओं ने कोयला के व्यवसायिक खनन का प्रदेश के आदिवासी समुदायों पर पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय दुष्प्रभाव, जैव विविधता और समृद्ध वन्य जीवों के विनाश, राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना के अतिक्रमण तथा अंतर्राष्ट्रीय पेरिस समझौते की भावना के उल्लंघन को देखते हुए इसके कानूनी पहलुओं पर झारखंड सरकार की तरह छत्तीसगढ़ सरकार को भी कोर्ट में चुनौती देने की अपील की है.