पुरषोत्तम पात्र/ लोकेश्वर सिन्हा, गरियाबंद. किडनी की बीमारी से ग्रसित लोगों की मौत की वजह से देवभोग विकासखंड के सुपेबेड़ा गांव देश-प्रदेश में चर्चित हो चुका है. दूषित पानी पीने की वजह से यहां के 70 लोगों की जान किडनी की बीमारी की वजह से हो चुकी है. अब ऐसे ही हालात मैनपुर विकासखंड के फरसरा गांव में बनने लगे हैं, जहां के लोगों के लिए दूषित पानी पीना मजबूरी बन चुकी है.
लगभग 150 लोगों की आबादी वाले ग्राम फरसरा में अधिकतर कमार, भुंजिया जनजाति के लोग रहते हैं. साफ पानी का कोई और जरिया नहीं होने की वजह से यहां के लोग गड्ढे खोदकर बूंद-बूंद पानी एकत्रित कर उपयोग करते हैं. वहीं वन विभाग ने यहां के ग्रामीणों तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नल जल योजना के तहत लाखों रुपए खर्च किए, लेकिन ग्रामीणों को इसका लाभ अब तक नहीं मिल पाया है.
पेयजल संकट गर्मी के दिनों में और ज्यादा विकट हो गया है. गांव के कुएं, तालाब सब सूख चुके हैं. लिहाजा, गांव की महिलाएं-बच्चे 44-45 डिग्री टेम्परेचर में तीन किलोमीटर तक चलते हुए नदी तक का सफर करना पड़ रहा है, जहां पीने के पानी के लिए गड्ढा खोदकर रखा है. इसी गड्ढे से वे बर्तनों में पीने के लिए पानी भरते हैं. स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस गड्ढे से केवल इंसान ही नहीं बल्कि जानवर तक अपनी प्यास बुझाते हैं.
सरकार विशेष पिछड़ी जनजातियों का स्तर सुधारने के लिए हर साल करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन फरसरा गांव में जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. साफ पानी से वंचित ग्रामीणों का कहना है कि शासन-प्रशासन के नुमाइंदे जल्द ही इस ओर कोई कड़ा कदम नही उठाएंगे तो वह दिन दूर नहीं एक और सुपेबेड़ा बनने में. अब देखना यह होगा कि शासन कब ग्रामीणों को दूषित पानी से मुक्ति दिलाते हुए शुद्ध पेयजल की व्वस्था करा पाती है.