मुंबई. स्वर कोकिला Lata Mangeshkar आज अपना 92वां जन्मदिन मना रही हैं. लता मंगेशकर का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ है. उन्होंने अपने गाने की शुरुआत 11 साल की उम्र में 1940 से की थी. 1943 में मराठी फिल्म ‘गजाभाऊ’ में उन्होंने हिंदी गाना ‘माता एक सपूत की दुनिया बदल दे’ को आवाज दी. यह उनका पहला गाना है.

बता दें कि 2001 में उन्हें भारत रत्न और 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला. लता जी सरल-निर्मल हैं, सम्मानित इतनीं कि सब उन्हें ‘दीदी’ कहकर पुकारते हैं. Lata Mangeshkar मानती हैं कि पिता की वजह से ही वे आज इतनी फेमस सिंगर हैं, क्योंकि संगीत उन्होंने ही सिखाया. आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर को लंबे समय तक मालूम ही नहीं था कि बेटी गा भी सकती है.

लता को अपने पिता के सामने गाना गाने से डर लगता था. वो रसोई में मां के काम में हाथ बंटाने आई महिलाओं को कुछ गाकर सुनाया करती थीं. मां डांटकर भगा दिया करती थीं कि लता के कारण उन महिलाओं का वक्त जाया होता था, ध्यान बंटता था.

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पिता के शिष्य को सिखाया था सही सुर

एक बार लता के पिता के शिष्य चंद्रकांत गोखले रियाज कर रहे थे. दीनानाथ किसी काम से बाहर निकल गए थे. पांच साल की लता वहीं खेल रही थीं. पिता के जाते ही लता अंदर गई और गोखले से कहने लगीं कि वो गलत गा रहे हैं. इसके बाद लता ने गोखले को सही तरीके से गाकर सुनाया. पिता जब लौटे तो उन्होंने लता से फिर गाने को कहा. लता ने गाया और वहां से भाग गईं. लता मानती हैं ‘पिता का गायन सुन-सुनकर ही मैंने सीखा था, लेकिन मुझ में कभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके साथ गा सकूं.’

सच हुई पिता की भविष्यवाणी

इसके बाद लता और उनकी बहन मीना ने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया. छोटे भाई हृदयनाथ केवल चार साल के थे जब पिता की मौत हो गई. उनके पिता ने बेटी को भले ही गायिका बनते नहीं देखा हो, लेकिन लता की सफलता का उन्हें अंदाजा था, अच्छे ज्योतिष जो थे. Lata Mangeshkar के मुताबिक उनके पिता ने कह दिया था कि वो इतनी सफल होंगी कि कोई उनकी ऊंचाइयों को छू भी नहीं पाएगा. साथ ही लता यह भी मानती हैं कि पिता जिंदा होते तो वे गायिका कभी नहीं बनती, क्योंकि इसकी उन्हें इजाजत नहीं मिलती.

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13 की उम्र से संभाला परिवार

पिता की मौत के बाद Lata Mangeshkar ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ मुंबई आकर मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं. 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में ‘पहिली मंगलागौर’ फिल्म में एक्टिंग की. कुछ फिल्मों में उन्होंने हीरो-हीरोइन की बहन के रोल किए हैं, लेकिन एक्टिंग में उन्हें कभी मजा नहीं आया. पहली बार रिकॉर्डिंग की ‘लव इज ब्लाइंड’ के लिए, लेकिन किसी कारण यह फिल्म अटक गई.

ऐसे मिला पहला बड़ा ब्रेक

जब संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया. शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी’. फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को फिल्म ‘मजबूर’ के गीत ‘अंग्रेजी छोरा चला गया’ में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया. यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई. बाद में शशधर ने अपनी गलती मानी और ‘अनारकली’, ‘जिद्दी’ जैसी फिल्मों में लता से कई गाने गवाए.

कभी अचार-मिर्च से नहीं किया परहेज

करियर के सुनहरे दिनों में वो गाना रिकॉर्ड करने से पहले आइसक्रीम खा लिया करती थीं और अचार, मिर्च जैसी चीजों से भी उन्होंने कभी परहेज नहीं किया. उनकी आवाज हमेशा अप्रभावित रही. 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्म करने वाली वे पहली भारतीय हैं.

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अपने सफर को जब Lata Mangeshkar याद करती हैं तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों की रिकॉर्डिंग वाली रातें भुलाए नहीं भूलतीं. तब दिन में शूटिंग होती थी और रात की उमस में स्टूडियो फ्लोर पर ही गाने रिकॉर्ड होते थे. सुबह तक रिकॉर्डिंग जारी रहती थी और एसी की जगह आवाज करने वाले पंखे होते थे.

PM ने दिया बधाई

प्रधानमंत्री Narendra Modi ने Lata Mangeshkar को जन्मदिन की बधाई देते हुए लिखा – ‘आदरणीय लता दीदी को जन्मदिन की बधाई. उनकी सुरीली आवाज पूरी दुनिया में गूंजती है. भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी विनम्रता और जुनून के लिए उनका सम्मान किया जाता है. व्यक्तिगत रूप से, उनका आशीर्वाद महान शक्ति का स्रोत है. मैं लता दीदी के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं.’