नवरात्रि का पहला दिन शैलपुत्री का दिन माना जाता है. मां शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है. जहां शारदीय और चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री स्वयं उपस्थित होकर भक्तों को साक्षात् दर्शन देती हैं. वाराणसी सिटी स्टेशन से चार किलोमीटर दूर स्थित मां शैलपुत्री के मंदिर में नवरात्र के पहले दिन आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा. रात में भक्तों की कतार लगी रही. मां शैलपुत्री का मंदिर बहुत प्राचीन है. यहां के लोग नहीं जानते कि मंदिर की स्थापना कब और किसने की. (navratri ka pehla din)
शैलपुत्री राजा शैलराज की पुत्री हैं (navratri ka pehla din)
मंदिर के सेवकों ने बताया कि माता शैलपुत्री का जन्म राजा शैलराज के यहां हुआ था. उसके जन्म के समय नारदजी वहां पहुंचे और कहा कि यह कन्या बहुत प्रतिभाशाली है और भगवान शिव पर आस्था रखने वाली होगी. इसके बाद जब मां शैलपुत्री बड़ी हुईं तो वह यात्रा पर निकल गईं. उसके मन में शिव के प्रति आस्था थी, इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंच गई. उन्हें यहां वरुणा नदी के किनारे का स्थान बहुत पसंद आया. इसके बाद माता शैलपुत्री यहीं तप करने लगीं. कुछ दिनों बाद जब पिता भी यहां आए तो उन्होंने अपनी पुत्री को आसन पर बैठकर तपस्या करते देखा. इसके बाद राजा शैलराज भी उसी स्थान पर बैठकर प्रणय निवेदन करने लगे. बाद में पिता-पुत्री का मंदिर बनाया गया. माता शैलपुत्री का वाहन बैल है और वह अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं.
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