दिल्ली के द्वारका स्थित DPS स्कूल में फीस वृद्धि को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले 2 महीनों से अभिभावक स्कूल के बाहर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका आरोप है कि स्कूल प्रशासन मनमाने तरीके से फीस बढ़ा रहा है, जबकि वे केवल शिक्षा निदेशालय द्वारा अनुमोदित फीस देने के लिए तैयार हैं. अभिभावकों का कहना है कि बिना किसी वैध कारण के फीस में वृद्धि करना अनुचित है.
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बाउंसरों की तैनाती और धक्का-मुक्की का आरोप
स्कूल प्रबंधन ने विरोध प्रदर्शन के दौरान अभिभावकों को रोकने के लिए सभी चार गेटों पर बड़ी संख्या में महिला और पुरुष बाउंसरों को तैनात किया. इस दौरान बाउंसरों ने अभिभावकों और बच्चों के साथ धक्का-मुक्की की, जिसके परिणामस्वरूप कई बच्चों को स्कूल के गेट पर रोक दिया गया और उन्हें अंदर जाने नहीं दिया गया. आरोप है कि इससे पहले भी स्कूल प्रशासन ने कुछ बच्चों के साथ अभद्रता की थी, उन्हें लाइब्रेरी में बंधक बना दिया था और कई बच्चों को तेज धूप में खेल के मैदान में बैठने के लिए मजबूर किया था. इन घटनाओं के बाद अभिभावकों का गुस्सा और बढ़ गया, जिसके चलते उन्होंने शिक्षा के मुद्दे पर प्रदर्शन किया.
स्कूल के गेट पर बाउंसर्स की तैनाती के साथ, बच्चों को फीस बढ़ाने के विवाद के चलते घर भेजने की घटना 9 मई 2025 को शुरू हुई, जब DPS द्वारका ने 32 छात्रों के नाम काट दिए. आरोप है कि 13 मई को जब ये बच्चे स्कूल पहुंचे, तो चार पुरुष और दो महिला बाउंसर्स ने उनकी पहचान पत्र की जांच की और उन्हें वापस भेज दिया. इस प्रक्रिया के दौरान, बच्चों के माता-पिता को पहले से सूचित नहीं किया गया.
पेरेंट्स का आरोप है कि स्कूल ने डायरेक्टोरेट ऑफ एजुकेशन (DoE) की अनुमति के बिना पिछले 5 वर्षों में फीस को ₹1,39,630 से बढ़ाकर लगभग ₹1,90,000 कर दिया है. जब पेरेंट्स ने इसका विरोध किया, तो स्कूल ने 32 बच्चों को निकाल दिया और गेट पर बाउंसर तैनात कर दिए. 100 से अधिक पेरेंट्स ने स्कूल के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां हाईकोर्ट ने स्कूल को ‘पैसे कमाने की मशीन’ और बच्चों के साथ किए गए व्यवहार को ‘यातना’ करार दिया.
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शिक्षा निदेशालय और सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग
अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रशासन अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रहा है, जिससे छात्रों और उनके परिवारों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस स्थिति को देखते हुए, उन्होंने शिक्षा निदेशालय और सरकार से कठोर कार्रवाई की अपील की है. उनका मानना है कि सरकार को निजी स्कूलों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए और ऐसे संस्थानों के खिलाफ एक प्रभावी नियामक तंत्र स्थापित करना चाहिए, ताकि अभिभावकों का शोषण रोका जा सके.
कोर्ट ने कहा- बच्चों को निकालना सैडिस्टिक और अमानवीय
15 मई 2025 को 102 अभिभावकों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने स्कूल को दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (LG) के नियंत्रण में लेने की मांग की. 16 मई 2025 को जस्टिस विकास महाजन ने मामले की सुनवाई के दौरान स्कूल से पूछा कि बिना किसी नोटिस के 32 बच्चों को कैसे निकाला गया. कोर्ट ने कहा कि स्कूल ने दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट, 1973 की धारा 35(4) का उल्लंघन किया, जो निष्कासन से पहले अभिभावकों को नोटिस देने की अनिवार्यता को दर्शाता है. स्कूल के वकील से नोटिस के सबूत मांगे गए, लेकिन स्कूल कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका. इसके बाद, 20 मई 2025 को जस्टिस सचिन दत्ता ने स्कूल के वकील पुनीत मित्तल से फिर से नोटिस के सबूत मांगे, लेकिन स्कूल ने फिर से कोई सबूत नहीं दिया. कोर्ट ने बच्चों के निष्कासन को ‘सैडिस्टिक’ और ‘अमानवीय’ करार दिया और मामले का फैसला सुरक्षित रख लिया, अगली सुनवाई 5 जून को होगी.
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