मक्का जिले के किसानों के लिए केवल फसल नहीं, आशा का एक बीज है. लेकिन इस बार आसमान से बरसे पानी ने उनकी मेहनत, सपनों और उम्मीदों को एक साथ बहा दिया.
संजीव शर्मा, कोंडागांव। कोंडागांव में मानसून की पहली बारिश के साथ चली तेज आंधियों ने मक्का उत्पादक किसानों को गहरा आर्थिक और मानसिक आघात पहुंचाया है. जहां एक तरफ खेतों में खड़ी फसलें आंधी से धराशायी हो गईं, वहीं दूसरी तरफ निचले इलाकों में जल भराव से मक्का की जड़ें सड़ने लगी.
मौसम की मार से खेतों में तैयार खड़ी मक्के की फसलें पूरी तरह गिर गई हैं. निचले क्षेत्रों में जलजमाव से फसलें सड़ने लगी है. यहां तक खलिहानों में सूख रही फसलें भी बारिश से भीग गईं. दानों में अंकुर फूटने लगे हैं, जिससे वे अब बाजार में नहीं बिक पाएंगे.

मक्का उत्पादन का गणित
मक्का उत्पादक किसान बताते हैं कि प्रति एकड़ 30,000 से 35,000 रुपए की लागत आती है. 50 – 60 क्विंटल मक्के की पैदावार होती है, जो 2,000 से 2,200 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजार में बिकती है. इस लिहाज से प्रति एकड़ 80,000 रुपए के आसपास की आमदनी होती है. लेकिन अब अधिकांश फसल या तो बर्बाद हो चुकी है या अंकुरित होकर अनुपयोगी हो गई है.

प्रशासन करवा रहा है फसल सर्वे
तहसीलदार मनोज कुमार रावटे मानते हैं कि लगातार बारिश से फसलें खराब हुई हैं. इसके बाद हुए फसल नुकसान का जायजा लेने के लिए पटवारी के माध्यम से सर्वे कराया जा रहा है. उन्होंने कहा कि पात्र किसानों को आर्थिक सहायता सीधे खाते में दी जाएगी. वहीं उप संचालक कृषि डीपी ताण्डे का कहना है कि मैं खुद लगातार क्षेत्रीय दौरे कर रहा हूं. कुछ किसान मक्का सड़क किनारे सूखा रहे हैं, लेकिन लगातार बारिश से पौधों का हरा भाग भी प्रभावित हो सकता है.

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