खिरेन्द्र यादव, कोण्डागांव। गोंड (मुरिया) जनजाति से आने वाली डॉ. जयमति कश्यप अपनी मेहनत और लगन की बदौलत आज न केवल बस्तर अंचल के लिए बल्कि देश-प्रदेश की महिलाओं के लिए अनुकरणीय है. डॉ. जयमति पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने 7 विषयों पर पीएचडी कर बस्तर को गौरवान्वित किया है. अब गोंडी भाषा-बोली पर व्याकरण लिख रही हैं. यही नहीं सैकड़ों महिलाओं को मानव तस्करी के दलदल से बाहर निकाला है.

बस्तर के धुर नक्सल प्रभावी दंतेवाड़ा जिले के वनग्राम कारली निवासी डॉ. जयमति कश्यप के सिर से बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया था. बचपन में गाय चराते हुए गांव के बच्चों को ड्रेस में स्कूल में पढ़ते देखा, तो मन में शिक्षा ग्रहण करने की ललक जागृत हुई कि काश मैं भी शिक्षा ग्रहण कर पाती और उन्होंने दृढ़ निश्चय से अपने सपने को साकार कर लिया. पहले पहल गुमरगुंडा आश्रम में बाद में कल्याण आश्रम में रहकर प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण किया.

उन्होंने अपनी काबिलियत और साहस के बल पर न केवल स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त किया बल्कि इतिहास, हिंदी, राजनीति, समाज शास्त्र, ग्रामीण जनजीवन, भूगोल एवं लोक प्रशासन जैसे 7 विषयों पर पीएचडी कर ऐसा मुकाम हासिल किया, जिसे अब तक कोई आदिवासी हासिल नहीं कर पाया है. वर्तमान में कोंडागांव जिले में महिला बाल विकास सुपरवाईजर के पद कार्यरत डॉ. जयमति कश्यप का मानना है कि यदि व्यक्ति लगन एवं निष्ठा से परिश्रम करे तो जीवन में कभी असफल नहीं होगा.

डॉ. कश्यप कहती हैं कि उन्होंने किताबों को ही अपना जीवन साथी बना लिया है, और अपनी विलुप्त हो रही बोली-भाषा गोंडी के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए सतत् कार्य कर रही हैं. उनका कहना है कि जब तक सांस है तब तक आदिवासी समाज की सभ्यता व संस्कृति को बचाने का पुरजोर प्रयास करती रहूंगी.

उन्होंने कहा कि बस्तर के आदिवासी समाज की व्यवस्थाएं परगनाओं पर संचालित होती है, इसीलिए मैंने बस्तर के परगनाओं पर गहन शोध किया है, जिसमें आदिवासी समाज की जीवन शैली के अतिरिक्त लोकनृत्यों एवं लोक गीतों की विस्तृत मीमांसा है. उन्होंने बताया कि मुझे कई दफा नक्सलियों ने बुलाया और नक्सलवाद अपनाने का दबाव डाला, लेकिन मैंने उनके आदेश को ठुकरा दिया. उनका मानना है कि बस्तर में अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए नक्सलियों ने आदिवासी जनजीवन में अनावश्यक दखलंदाजी, विन्घ बाधाएं डालकर उनके समग्र विकास और कल्याण की राह में रोड़ा खड़ा कर दिया है.

मणिकर्णिका सम्मान से हो चुकी हैं सम्मानित

कोंडागाँव जिला में महिला-बाल विकास पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत डॉ. जयमति कश्यप को उनके द्वारा किये गये शोध के लिये पं. रविशंकर विश्वविद्यालय की ओर से पीएच-डी की उपाधि से अलंकृत किया गया है. उनके शोध का विषय था बस्तर के परगनाओं का सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक व्यवस्था का एक ऐतिहासिक अध्ययन. इसी तरह उन्हें रायपुर की ही दो संस्थाओं रोटरी क्लब ऑफ रायपुर ग्रेटर और क्रिएटिव आईज प्रमोशन्स की ओर से मणिकर्णिका सम्मान से भी विभूषित किया गया है. यही नहीं उन्हें किशोरी-बालिका सम्मान से महिला-बाल विकास विभाग, कोंडागाँव द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है.

कई मंचों पर किया बस्तर का नाम रोशन

डॉ. जयमति कश्यप ने जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (मध्यप्रदेश), इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नी दिल्ली सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं संस्थाओं की ओर से आयोजित अनेकोनेक कार्यशालाओं ल संगोष्ठियों में भाग ले चुकी हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने देश की शीर्षस्थ साहित्यिक संस्था साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित जीवन्त संगोष्ठी में भी शिरकत किया था, जिसमें देश के सुप्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भाग लिया था. इस तरह वे सभी मंचों पर बस्तर का नाम रोशन करती आ रही हैं.

स्कूलों में चल रही गोंडी भाषा में लिखी पुस्तक

यह भी उल्लेखनीय है गोंडी में लिखी उनकी पुस्तिका नना मुया का प्रकाशन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नयी दिल्ली से हो चुका है. यह पुस्तिका जिले की सभी प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिये शासकीय तौर पर प्रदाय की गई है. यह भी उल्लेखनीय है कि वे अपने शासकीय दायित्वों का पूरी तरह लगन, परिश्रम और निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए भी इन सभी गतिविधियों में सम्मिलित होती रही हैं, जिसके लिये विभाग द्वारा भी उनकी प्रशंसा की जाती है.