फीचर स्टोरी. छत्तीसगढ़ में मछली पालन को सरकार खेती का दर्जा दे चुकी है. राज्य में मछली पालन की नई नीति भी बन चुकी है. नई नीति से मछली पालन को तेज गति मिली है. किसान आर्थिक उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर हुए हैं. शिक्षित युवा भी मछली पालन को करियर के लिहाज से काफी अच्छा मान रहे हैं. संभावनाओं और सपनों के गढ़ छत्तीसगढ़ में मछली पालन कारोबार का मजबूत केंद्र बन रहा है.

दरअसल इसके पीछे की बड़ी वजह है भूपेश सरकार की नई नीति. नई नीति के तहत मछली पालन को खेती का दर्जा तो मिला ही है, राज्य के मछुआरों को उत्पादकता बोनस दिए जाने का प्रावधान भी किया गया है. उत्पादक बोनस में सरकार की राशि प्रदान की जाती है. यह राशि छत्तीसगढ़ राज्य मत्स्य महासंघ को जलाशयों एवं बैराज की नीलाम से प्राप्त होने वाली राशि की 25 प्रतिशत होती है. इसी नीति में सरकार की ओर से अलंकारिक मछली पालन एवं गम्बुसिया मछली पालन को भी प्रोत्साहित किए जाने का प्रावधान किया गया है.

मछली पालन नवीन नीति में जानिए क्या कुछ है खास

0 से 10 हेक्टेयर औसत जल क्षेत्र के तालाबों एवं जलाशयों को ग्राम पंचायत द्वारा नियमानुसार 10 वर्षीय पट्टे प्रदान करना.

10 हेक्टेयर से अधिक एवं 100 हेक्टेयर औसत जल क्षेत्र के तालाबों एवं जलाशयों को मछली पालन के लिए खुली निविदा आमंत्रित करना.

10 वर्ष के लिए पट्टे पर आबंटित करने का अधिकार जनपद पंचायत को.

100 हेक्टेयर से अधिक एवं 200 हेक्टेयर के तालाबों एवं जलाशयों को जिला पंचायत को अधिकार.

200 से अधिक एवं 1000 हेक्टेयर तक के जलाशय एवं बैराज को मछली पालन विभाग द्वारा पट्टे पर आबंटित करने का अधिकार.

1000 हेक्टेयर से अधिक के जल क्षेत्र वाले जलाशय एवं बैराज छत्तीसगढ़ राज्य मत्स्य महासंघ के आधिपत्य में रहेंगे.

मत्स्य महासंघ द्वारा जलाशय एवं बैराज को पट्टे पर दिए जाने हेतु खुली निविदा से प्राप्त आय का 50 प्रतिशत राशि मछली पालन विभाग के राजस्व खाते में देय होगी.

शेष 50 प्रतिशत का 25 प्रतिशत हिस्सा स्थानीय स्तर पर मत्स्याखेट करने वाले मछुआरों को उत्पादकता बोनस के रूप में दिया जाएगा.

वहीं राज्य में नदियों पर बने एनिकटों एवं उन पर स्थित डीप पूल जो 20 हेक्टेयर से अधिक के हैं, उन्हें संचालक मछली पालन द्वारा निर्धारित समयावधि के लिए मछुआ समूह, मत्स्य सहकारी समिति, महिला स्व सहायता समूह, मछुआ व्यक्ति को पट्टे पर नियमानुसार दिया जाएगा. इसके लिए एनिकटों एवं दहो के आसपास के ग्रामीण, जो मत्स्याखेट से जीवन यापन करते हो, उन मछुआरों का नदी एवं दहवार सहकारी समिति का गठन किया जाएगा. नदियों एवं 20 हेक्टेयर से कम जल क्षेत्र वाले एनिकट व डीप पूल में निःशुल्क मत्स्याखेट की व्यवस्था यथावत रहेगी. नगरीय निकाय के अंतर्गत आने वाले समस्त जल क्षेत्र नगरीय निकाय के अंतर्गत रहेंगे. नगरीय क्षेत्रों तथा नगरीय निकायों के तालाबों एवं जलाशयों को शासन की नीति के अनुसार पट्टे पर आबंटित किया जाएगा.

युवाओं और महिला समूहों को अवसर

नई नीति के तहत 0 से 10 हेक्टेयर औसत जल क्षेत्र के जलाशयों/तालाबों का आबंटन मछुआ समूह, मत्स्य सहकारी समिति एवं आजीविका मिशन के तहत गठित स्थानीय महिला समूह, मछुआ व्यक्ति व मत्स्य कृषक को प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा. मछली पालन में डिप्लोमा, स्नातक या स्नातकोत्तर व्यक्ति एवं बेरोजगार युवा मछुआ व्यक्ति व मत्स्य कृषक माने जाएंगे. गौठानों के लिए निर्मित तालाबों में मछली पालन का कार्य गौठान समिति या उनके द्वारा चिन्हित समूह करेगा. पंचायतों द्वारा लीज राशि में बढ़ोतरी प्रति दो वर्ष में 10 प्रतिशत की वृद्धि कर निर्धारण किया जाएगा, जिसका उपयोग जनहित के विकास कार्यो में किया जाएगा.

बंद पड़े खदानों में मछली पालन और रोजगार

नई नीति में कई नई चीजों को जोड़ा गया है. इसी में बंद पड़े खदानों में भी मछली पालन करना और रोजगार के नवीन अवसरों को पैदा करना है. इसके तहत बड़े खदानों में मछली पालन को बढ़ावा देने हेतु केज स्थापना की पहल की जाएगी. सिंचाई जलाशयों में केज कल्चर योजना के क्रियान्वयन के लिए मछली पालन विभाग पूर्ण रूप से अधिकृत होगा, इसके लिए सिंचाई जलाशय को दीर्घ अवधि के लिए विभाग लीज पर दे सकेगा. वहीं मत्स्य बीज विक्रय करने वालो एवं उत्पादकों को मछली पालन विभाग में पंजीयन कराना एवं विभाग से लाईसेंस लेना अनिवार्य होगा. निजी क्षेत्र में अधिक से अधिक हेचरी एवं संवर्धन प्रक्षेत्रों के निर्माण को प्रोत्साहन एवं शासन की नीति के अनुरूप अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा. राज्य में स्थित अनुपयोगी एवं बंद पड़े खदानों को विकसित कर मछली पालन हेतु स्थानीय बेरोजगारों को पट्टे पर दिया जाएग.

किसानों को 3 लाख तक कर्ज

सरकार की कोशिश है यह कि खेती का दर्जा प्राप्त मछली पालन से किसान अधिक से अधिक संख्या में जुड़े में. लिहाजा सरकार की ओर से किसानों को 3 लाख रुपये तक कर्ज भी दिया जा रहा है. छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक के माध्यम से गौपालन के लिए किसानों को 2 लाख तक का ऋण मात्र एक प्रतिशत ब्याज पर तथा 2-3 लाख रूपए तक का ऋण 3 प्रतिशत ब्याज पर उपलब्ध कराए जाने की योजना संचालित है. इसी तरह राज्य में मछली पालन करने वाले किसानों को एक लाख रूपए तक ऋण मात्र एक प्रतिशत ब्याज पर तथा 01-03 लाख रूपए तक का ऋण एक प्रतिशत ब्याज पर उपलब्ध कराया जा रहा है.

सोहन जैसे किसानों की आर्थिक उन्नति

मछली पालन से आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर ये कहानी है गरियाबंद जिले में विकासखंड छुरा के चितामाड़ा गाँव निवासी मछली पालक किसान सोहन ठाकुर की है. सोहन अभी तक खेतिहर मजदूर के रूप में काम करता था, लेकिन अब सोहन की एक नई पहचान उन्नत मछली पालक के रूप में होने लगी है. पहले सोहन की कमाई खेती-मजदूरी से डेढ़ लाख रुपये सालाना थी, लेकिन मछली पालन को अपनाने के बाद सोहन सालाना साढ़े चार लाख रुपये तक कमा रहा है. सोहन की इस कमाई से न सिर्फ सोहन की तरक्की हो रही है, बल्कि परिवार की आर्थिक स्थिति भी अब मजबूत होने लगी है.

दरअसल सोहन के जीवन में यह परिवर्तन आया है सरकार की नई मछली पालन नीति से. नई नीति के तहत सोहन को मछली पालन की नवीन तकनीकों और प्रावधानों की जानकारी मिली. विभाग की ओर से सोहन को 0.2 हेक्टेयर जमीन पर संवर्धन तालाब का निर्माण कराया गया. साथ ही स्पान संपर्धन योजना से 25 लाख स्पान मत्स्य बीज, जाल, फिश माउंट ग्रोथ प्रमोटर विभाग की ओर से शत-प्रतिशत अनुदान दिया गया.

सोहन के मुताबिक मछली पालन से पूर्व अत्याधिक परिश्रम के बाद भी कमाई बहुत कम होती थी. लेकिन अब आर्थिक स्थिति सुधरती ही जा रही है. आय का नया माध्यम कम लागत, कम मेहनत में अधिक लाभकारी है. परिवार में कुछ 6 सदस्य हैं और जीवन यापन पहले से कहीं बेहतर है.

पारंपरिक मछली पालन से निकलकर नवीन तकनीक और सरकार की नई नीति से जो फायदा हुआ है उसे शब्दों में बता नहीं सकता. पूर्व में हम परम्परागत पद्धति से मछली पालन करते थे जिससे हमें 0.5 हे. जल क्षेत्र में केवल 25 हजार रूपये सलाना लाभ होता था किन्तु 0.5 हे. तालाब एवं 0.2 हे. संवर्धन पोखर तालाब में नवीन पद्धति से मछली पालन करने से हमारी सलाना आय लगभग 4 लाख 50 हजार रूपये हो गई.

सोहन का कहना है कि वर्तमान में कतला, रोहू, मृगल, तिलपीया मछली का पालन किया जाता है एवं विभिन्न बाजारों में विक्रय किया जाता है. स्वयं के व्यय पर 0.4 हे. जमीन पर 03 संवर्धन तालाब का निर्माण करा पाने में सक्षम हुए. अब तक कुल 0.6 हे. क्षेत्र में 04 तालाबों में मत्स्य बीज संचयन का कार्य करते है एवं 0.5 हे. मत्स्य पालन का कार्य करते है.