रायपुर. फरवरी के बीच में अप्रैल में होने वाले राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव को लेकर राज्य के सियासी गलियारों में सुगबुगाहट शुरु हो गई है. अप्रैल में राज्यसभा की 51 सीटें देश भर में खाली हो रही हैं. जिसमें से दो सीटें छत्तीसगढ़ की हैं. दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में जाने वाली है. लिहाज़ा अभी चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है.
जो दो सीटें खाली हो रही हैं, उसमें अभी एक सीट पर भाजपा के रणविजय सिंह के पास तो दूसरी कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता मोतीलाल वोरा के पास है. चूंकि राज्य की विधानसभा में कांग्रेस को तीन चौथाई बहुमत है इसलिए ये दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में जाएगी.
चर्चा है कि मोतीलाल वोरा को कांग्रेस रिपीट करेगी. हालांकि इस पर अंतिम निर्णय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और खुद मोतीलाल वोरा को करना है.लेकिन माना जा रहा कि वोरा की बर्थ कंफर्म ही रहेगी.
दूसरी सीट को लेकर जद्दोजहज है. बड़ा सवाल है कि दूसरी सीट प्रदेश नेतृत्व के खाते में जाएगी या केंद्रीय नेतृत्व किसी बड़े नेता को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा जाने का मौका देगा. चूंकि कांग्रेस की स्थिति दूसरे राज्यों की विधानसभाओं में कमज़ोर है. इसलिए इस बात की संभावना ज़्यादा है कि कांग्रेस अपने किसी बड़े नेता को छत्तीसगढ़ से चुने.
केंद्रीय नेताओं में दो नामों की चर्चा है. पहला नाम कांग्रेस की उपाध्यक्ष प्रियंका गांधी है. चर्चा है कि कांग्रेस उन्हें राज्यसभा भेजना चाहती है. उन्हें किसी कांग्रेस शासित राज्य से भेजा जाएगा. जिसमें छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश है.
यूपी की टीम प्रियंका छत्तीसगढ़ के पदाधिकारियों से ट्रेनिंग ले रही है. उनकी टीम के माध्यम से वो छत्तीसगढ़ से जुड़ी हैं और छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं के साथ उनका सीधा संवाद है. इसलिए वो छत्तीसगढ़ के कोटे से राज्यसभा जा सकती हैं.
दूसरा नाम कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष रणदीप सुरजेवाला का है. कांग्रेस के नेतृत्व का मानना है कि सूरजेवाला के राज्यसभा जाने से कांग्रेस को सदन में मज़बूती मिलेगी. तीसरा नाम राज्य के प्रभारी पीएल पुनिया का है. पुनिया के खाते में ये बात दर्ज है कि पार्टी को राज्य में संगठात्मानक रुप से मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई. चुनाव के बाद भी राज्य से उनका नाता मज़बूती के साथ जुड़ा हुआ है. माना जा रहा है कि कांग्रेस उन्हें राज्यसभा टिकट देकर विधानसभा चुनाव में जीत का ईनाम दे सकती है.
एक संभावना इस बात की भी है कि दूसरा सांसद चुनने का अधिकार राज्य नेतृत्व को सौंप दिया जाए. इस सूरत में किसी राज्य के नेता की लॉटरी लग सकती है.