लंदन। मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा कर सकती हूं. कितनी बड़ी बात है, मैं चकित, खुश, सम्मानित और विनम्र हूं महसूस कर रही हूं. यह कहना है 64 वर्षीय लेखिका गीतांजलि श्री का, जिनके उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज मिला है. इसे डेजी रॉकवेल ने ट्रांसलेट किया है. यह विश्व की उन 13 पुस्तकों में शामिल थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए लिस्ट में शामिल किया गया था.

गुरुवार को लंदन में एक समारोह में लेखिका ने कहा कि वह “बोल्ट फ्रॉम द ब्लू” से “पूरी तरह से अभिभूत” थीं. उन्होंने 50,000 GBP का अपना पुरस्कार लिया और पुस्तक की अंग्रेजी अनुवादक डेजी रॉकवेल के साथ इसे साझा किया. इस अवसर पर गीतांजलि श्री ने कहा कि इस पुरस्कार के मिलने से एक अलग तरह की संतुष्टि है. ‘रेत समाधि/’टॉम्ब ऑफ सैंड’ उस दुनिया के लिए एक शोकगीत है जिसमें हम निवास करते हैं. बुकर निश्चित रूप से इसे कई और लोगों तक पहुंचाएगा.

उन्होंने कहा कि मेरे और इस पुस्तक के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं में एक समृद्ध और साहित्यिक परंपरा है. इन भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों को जानने के लिए विश्व साहित्य अधिक समृद्ध होगा. इस तरह की बातचीत से जीवन की शब्दावली बढ़ेगी. अमेरिका के वरमोंट में रहने वाली चित्रकार, लेखिका और अनुवादक रॉकवेल ने उनके साथ मंच साझा किया.

निर्णायक पैनल के अध्यक्ष फ्रैंक विने ने कहा कि आखिरकार, हम डेजी रॉकवेल के अनुवाद में गीतांजलि श्री की पहचान और अपनेपन के उपन्यास ‘सैंड ऑफ सैंड’ की शक्ति, मार्मिकता और चंचलता से मोहित हो गए. उन्होंने कहा कि यह भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, जिसकी मंत्रमुग्धता, करुणा युवा उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को कई आयाम में ले जाती है.