नई दिल्ली। विपक्षी दलों ने केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकार देश में संस्थानों को बर्बाद करने के एक नए स्तर तक पहुंच गई है। आजाद भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ कि चुनाव आयुक्त को प्रधानमंत्री कार्यालय ने कभी बुलाया हो। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा, यह अत्याचारी है। पीएमओ एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण को कैसे बुला सकता है? स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक अनिवार्य? इससे भी बुरी बात यह है कि चुनाव आयोग इतना लापरवाह और उपस्थित कैसे हो सकता है?
कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया है कि वो चुनाव आयोग के साथ मातहत संस्था जैसा बर्ताव कर रही है। कांग्रेस महासचिव और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने शुक्रवार को कुछ रिपोर्ट्स को आधार बनाते हुए कहा कानून मंत्रालय के एक अधिकारी ने एक नोट जारी किया था। मुख्य चुनाव आयुक्त को इस नोट पर आपत्ति थी। इस नोट में प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीके मिश्रा के साथ होने वाली एक बैठक में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के मौजूद रहने की उम्मीद जताई गई थी।
सुरजेवाला ने कहा, बिल्ली अब बाहर आ गई है! अब तक जो फुसफुसाहट थी वो सच निकला। मुख्य चुनाव आयुक्त को प्रधानमंत्री कार्यालय ने कभी बुलाया हो, ऐसी बात आजाद भारत में कभी नहीं सुनी गई थी। चुनाव आयोग के साथ अपनी मातहत संस्था जैसा बर्ताव करना, देश के हर संस्थान को बर्बाद करने के मोदी सरकार के रिकॉर्ड की एक और कड़ी है। आजाद भारत में ऐसी बात नहीं सुनी गई थी। ”
गौरतलब है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते माह 16 नवंबर को हुई बैठक से कुछ दिनों पहले चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय के एक अधिकारी से एक असामान्य पत्र मिला था। जिसमें ये कहा गया था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा आम मतदाता सूची को लेकर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इस बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त और दोनों चुनाव आयुक्त की उपस्थित की ‘अपेक्षा’ की जाती है। जिसको लेकर ये पूरा विवाद है।