दुबई. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब सरकार ने एक हिन्दू पिता और मुस्लिम मां की बेटी को जन्म प्रमाण पत्र दिया गया हो. ऐसा तब मुमकिन हो पाया जब यूएई प्रवासियों के विवाह कानूनों को लेकर सहनशीलता का साल (ईयर ऑफ टालरेंस) मना रहा है.

मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार, यूएई के प्रवासियों के विवाह कानून के अनुसार, एक मुस्लिम पुरुष गैर-मुस्लिम महिला से शादी कर सकता है, लेकिन एक मुस्लिम महिला एक गैर मुस्लिम पुरुष से शादी नहीं कर सकती है. इस कानून की वजह से केरल में 2016 में शादी करने के बाद शारजाह में बसे किरण बाबू और सनम साबू सिद्दीकी को जुलाई 2018 में बच्ची के जन्म के बाद समस्या का सामना करना पड़ा.

किरण बाबू बताते हैं कि मेरे पास आबूधाबी का वीसा है, मैने वहां इंश्योरेंस कवर भी लिया हुआ है. पत्नी के अस्पताल में प्रसव के बाद अस्पताल प्रबंधन ने जन्म प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया क्योंकि मैं हिन्दू हूं. इसके बाद मैने न्यायालय के जरिए अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन दिया. चार महीनों तक ट्रायल चलने के बाद मेरा आवेदन खारिज कर दिया गया. बाबू बताते हैं कि बच्ची का कोई वैधानिक दस्तावेज नहीं होने के बाद उनकी आशाएं क्षमा अवधि पर सिमट गई.

बताते चलें कि यूएई के शासक ने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के बीच मेल-जोल बढ़ाने और देश की छवि को सहनशील देश के तौर पर बताने के लिए वर्ष 2019 तो सहनशीलता का साल के रूप में घोषित किया है. बाबू बताते हैं कि बेटी के जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिलने की वजह हमने बड़े मुश्किल से दिन काटे. ऐसे में हमारे लिए क्षमा अवधि उम्मीद की एक किरण थी. हमारे पास बच्ची के जन्म का कोई प्रमाण नहीं होने की वजह से अप्रवासन स्वीकृति नहीं मिली. ऐसे में भारतीय दूतावास ने काफी मदद की.

सहनशीलता के साल में मेरे आवेदन को न्यायिक विभाग ने असाधारण मानते हुए लिया और कहा कि ऐसे मामलों में हमें अनुरोध पत्र देने होगा. हमने अनुरोध पत्र सौंपा दिया और  मुख्य न्यायाधीश ने स्वीकृति प्रदान की. इसे हम स्वास्थ्य विभाग को दिया और मेरी बेटी के लिए जन्म प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया. इसके बाद बाबू फिर से न्यायालय गए और आव्रजन के लिए उनका प्रकरण स्वीकार कर लिया गया.

बाबू को उनकी बेटी अनाम्ता एसलाइन किरण के लिए हिन्दू पर्व विशु के एक दिन पहले 14 अप्रैल के लिए जन्म प्रमाण पत्र मिला. बाबू ने कहा कि मुझे बताया गया कि मेरा पहला प्रकरण है, जब नियमों को शिथिल किया गया है. भारतीय दूतावास के सलाहकार राजामुरुगन ने कहा कि न्यायालय का यह फैसला आने वाले प्रकरणों के लिए एक उदाहरण साबित होगा.