रायपुर। राजधानी को स्मार्टसिटी बनाने के नाम पर नगर निगम ने 400 साल पुराने एक ऐतिहासिक महत्व के पेड़ को काट दिया. पेड़ काटने की वजह स्मार्ट सिटी के लिहाज से सड़क संकरी है जिसे चौड़ी करना है. दलील यह भी दी जाती है कि पेड़ से कुछ दूरी में स्थित चौक में ट्रैफिक जाम लगता है.
यह पीपल के पेड़ की छांव इतिहास के कई महत्वपूर्ण पलों की गवाह रहा है. हम बात कर रहे हैं सैकड़ों साल पुरानी धरोहर पीपल के पेड़ की जो कि कोतवाली के सामने एक काम्पलेक्स से सटकर लगा हुआ था. हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग से हुई जिन्होंने इस पेड़ के इतिहास से जुड़ी हुई कई चीजों की जानकारियां हमारे साथ साझा की.
बताया जा रहा है कि इस पेड़ की न सिर्फ पूजा की जाती थी बल्कि पेड़ के नीचे बने चबूतरे में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बैठकें भी होती थीं. जहां स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर नई-नई रणनीतियां बना करती थी. अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल का निवास भी यहीं पास में ही था और वे उस पेड़ के नीचे अपने साथियों के साथ बैठा करते थे.
 
उनके अलावा कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खूबचंद बघेल भी आया करते थे. स्वतंत्रता आंदोलन के अलावा यह पेड़ साधू संतों की सत्संग से भी जुड़ा रहा है. बताया जाता है कि पेड़ की छांव के नीचे अक्सर ही साधू संत बैठा करते थे और श्रद्धालुओं को धर्म व सद्कर्म का उपदेश दिया करते थे.
लेकिन अब इस पेड़ की ठंडक भरी छांव थके हुए लोगों को सुकून देती थी. रिक्शे वाले से लेकर आम आदमी भी अक्सर इस पेड़ की छांव के नीचे बैठकर सुस्ताते थे. लेकिन विकास के नाम पर एक बार फिर ऐतिहासिक धरोहर की बलि चढ़ा दी गई जिसे सहेजा जाना था.
निगम की इस कारस्तानी का विरोध नेता प्रतिपक्ष सूर्यकांत राठौर ने किया है उन्होनें निगम की इस कार्रवाई को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि एक तरफ इस प्रदूषित शहर को शुद्द हवा आक्सीजन देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर आक्सीजोन बनाया जा रहा है. वहीं 24 घंटे आक्सीजन देने वाले हरे भरे पेड़ों को ही काट दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसी तरह अगर कार्रवाई की जाती रहेगी तो शहर एक दिन सिर्फ कांक्रीट का जंगल बस रह जाएगा. उन्होंने इसके लिए निगम महापौर को जिम्मेदार ठहराया है.
वही महापौर प्रमोद दुबे के लिए यह हरा-भरा पेड़ छह महीने पहले ही मर चुका था. उनका कहना है कि इस पेड़ की आयु छह महीना पहले ही खत्म हो गई थी और इस पेड़ की वजह से ट्रैफिक जाम लगा करता था. यह पेड़ कभी भी गिर सकता था.
इस मामले में पंडित रविशंकर विवि रायपुर के जैविकीय अध्यय़नशाला के प्रोफेसर आरके प्रधान का कहना है कि पेड़ काटने और दस पेड़ लगाने के सरकारी नियम से इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है. एक विकसित बरगद 10 टन एसी के बराबर ठंडक करता है. पेड़ को काटने से पूरा इको सिस्टम और बायोडाइवर्सिटी पर असर पड़ता है. गिद्धों के लुप्त होने की बड़ी वजह बड़े पेड़ों का काटा जाना है. ये केवल बड़े पेड़ों में ही अपना घोंसला बनाती हैं. बड़ा पेड़ बनाने में 50 से 100 साल लगते हैं. इसलिए सरकार की पेड़ काटकर उसकी भरपाई 10 पेड़ों से कराने का भी कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा कि पेड़ों की ज़रुरत रायपुर को है जो पेड़ कटा है. उसकी भरपाई कैसे होगी. दूसरे देशों में पेड़ों के लिए सड़क बदल दी जाती है. दूसरे निर्माण तोड़ दिया जाता है. हमारे देश में सबसे पहले पेड़ काटा जाता है. इसका हमें आने वाले समय में गंभीर परिणाम भुगतना होगा.