नई दिल्ली. भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में एक बार फिर गिरावट दर्ज की गई है. भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, 30 मई 2025 को समाप्त सप्ताह में देश की विदेशी मुद्रा आस्तियां घटकर 691.49 अरब डॉलर रह गईं. इस दौरान भंडार में 1.23 अरब डॉलर की कमी दर्ज की गई.

इससे ठीक एक सप्ताह पहले, 23 मई 2025 को समाप्त सप्ताह में भंडार में 6.992 अरब डॉलर की भारी बढ़ोतरी हुई थी, जिससे कुल भंडार 692.721 अरब डॉलर हो गया था. वहीं, 16 मई 2025 को इसमें 4.888 अरब डॉलर की गिरावट आई थी. उस गिरावट की मुख्य वजह सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी बताई गई थी.
गिरावट के पीछे ये हैं मुख्य वजहें
- रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए आरबीआई डॉलर बेच सकता है. इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ा.
- FCA (विदेशी मुद्रा आस्तियों) में यूरो, येन और पाउंड जैसी मुद्राओं के मूल्य में गिरावट का असर कुल भंडार पर भी पड़ता है.
- आयात बिलों में वृद्धि और बकाया विदेशी ऋण का भुगतान भी भंडार में गिरावट का कारण हो सकता है.
- वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, जैसे तेल की कीमतों में वृद्धि या अमेरिकी मौद्रिक नीति में बदलाव, भी विदेशी भंडार को प्रभावित करते हैं.
भारत अभी भी मजबूत स्थिति में है
हालांकि, मौजूदा गिरावट के बावजूद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीने के आयात के लिए पर्याप्त बना हुआ है. RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि यह स्तर अभी भी भारत की आर्थिक स्थिरता का संकेत है.
सितंबर 2024 में उच्चतम स्तर
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2024 में 704.885 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था. तब से इसमें उतार-चढ़ाव हो रहा है.
विदेशी मुद्रा भंडार क्यों महत्वपूर्ण हैं?
विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश द्वारा रखी गई सुरक्षित विदेशी संपत्तियों का संग्रह है, जिसमें डॉलर, सोना, एसडीआर और आईएमएफ में जमा राशि शामिल है. यह देश की आर्थिक मजबूती, मुद्रा स्थिरता और वैश्विक व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भंडार में गिरावट जारी रही तो विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर पड़ सकता है. हालांकि, फिलहाल भारत की स्थिति स्थिर मानी जा रही है.