रायपुर. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से वन भूमि पर काबिज लोगों के आवेदन निरस्त होने के बाद उनका कब्जा हटाने के लिए आदेशित किया है. इस आदेश के बाद अब निरस्त आवेदनों की संख्या को लेकर विवाद हो गया है. पर्यावरणविद् नितिन सिंघवी ने आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग के आंकड़ों के आधार पर निरस्त किए गए 4,55,131 आवेदनों पर कार्रवाई करने की मांग की है. जबकि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 20,095 आवेदनों को निरस्त किए जाने की जानकारी दी है.

एनजीओ “फारेस्ट फस्ट” एवं अन्य द्वारा दायर याचिका में 13 फरवरी को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वनों में हुए उन कब्जों को बेदखल किया है, जिनके दावा आवेदनों को वन अधिकार अधिनियम के तहत निरस्त किया गया है. छत्तीसगढ़ शासन ने इससे पहले शपथ पत्र देकर न्यायालय को बताया था कि अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों के कुल 20,095 दावों को निरस्त किए गए हैं, जिनमें से 4830 कब्जों के विरूद्ध कार्यवाही की गई है. न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई 24 जुलाई तक नया शपथ पत्र पेश करने के लिये कहा है कि बताया जावे कि बेदखली पूरी हो गई है कि नहीं.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया गलत आंकड़ा

सिंघवी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को वनों की रक्षा करने वाला निर्णय बताते हुए स्वागत किया है. साथ उन्होंने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ शासन ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा है कि मात्र 20,095 वन भूमि के दावा आवेदनों को निरस्त किया गया है, जिन्हें हटाया जाना है, जबकि आयुक्त आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग की ओर से दिए गये आंकडों के अनुसार मार्च 2018 तक ही 4,55,131 दावा आवेदनों को निरस्त किया गया था. उन्होंने प्रश्न किया कि जब कब्जे का पट्टा नहीं दिया गया तो कब्जे क्यों नहीं हटाए जा रहे?

गूगल मैप के जरिए कराया जाए सत्यापन

सिंघवी ने आरोप लगाया कि 2012 में जब पट्टे बंटना चालू हुऐ तब ही अवैध कब्जों का खेल चालू हो गया था, जब अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के संरक्षण तले अपात्रों ने वन भूमि पर कब्जा कर, पट्टे के लिये आवेदन करना चालू कर दिया. वन भूमि पर हुऐ ऐसे 4,55,131 कब्जों को हटाने के लिये तत्काल आदेश निकाले जाने चाहिए, जिनके दावा आवेदनों को निरस्त कर दिया गया है, इस संबंध में मुख्य सचिव को पत्र भी लिखा गया है. इसके साथ ही मांग की है कि बांटे गये सभी वैध पटटों का भी सत्यापन गूगल प्रो मैप से करवाना चाहिए, जिससे पता चले कि 2005 में कब्जा था कि नहीं.

अवैध कब्जों की वजह से बढ़ मानव-हाथी द्वंद

सिंघवी ने कहा कि वनों की रक्षा हमें राजनीति से परे रखकर करनी पड़ेगी. अवैध बंटे वन अधिकार पट्टे से छत्तीसगढ़ के वन खंडित हो गये है, जिसके कारण मानव-हाथी द्वन्द बढ़ रहा है तथा द्वन्द के कारण दोनों की मौतों की दर बढ़ रही है, गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में मार्च 2018 तक लगभग चार लाख लोगों को 338520 हेक्टर अर्थात् 3385 वर्ग किमी वन क्षेत्रों के पट्टे आबंटित किये जा चुके हैं.