शिखिल ब्यौहार, भोपाल। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ इन दिनों देश में सियासत का प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। केंद्रीय कैबिनेट से इस विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद संसद में पक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। बताया जा रहा है कि सोमवार, 16 दिसंबर को इस बिल को संसद में पेश किया जाएगा। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इस बिल को लोकसभा में पेश करेंगे। बिल के लोकसभा में पेश होने से पहले लल्लूराम डॉट कॉम ने “एक देश एक चुनाव” (One Nation One Election) पर भारत सरकार के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत से खास बातचीत की। पढ़िए सवाल और जवाब…
सवाल: एक चुनाव की व्यवस्था देश के संघीय ढांचे को कमजोर करेगी ?
रावत: देश में ऐसा होता रहा है, कई बार हुए। यह संघीय ढांचे को विपरीत रूप से प्रभावित करेगा, यह कहना सही नहीं है। हां, एक बार इनको फिर से सिंक्रोनाइज करने के लिए कटौती या बढ़ोतरी करने का अवसर आएगा। इलेक्शन कमीशन ने 82, 83 में लिखा था। एक साथ चुनाव होने से संघीय ढांचे में कोई दिक्कत नहीं आने वाली।
सवाल: एक देश एक चुनाव की व्यवस्था का विपक्षी पार्टियों विरोध क्यों कर रही है ?
रावत – इसका विरोध तो बहुत से क्षेत्र से होगा। हर साल इलेक्शन होते हुए तरह-तरह के प्रयोग कर सकते हैं। इस बार नहीं तो अगली बार जीत सकते हैं और इसी में 5 साल व्यस्त रहते हैं। अगर एक देश एक चुनाव हुआ तो सारे प्रयास तो, वह तो 5 साल के लिए बेरोजगार हो जाएंगे।
सवाल: वन नेशन वन इलेक्शन से नुकसान हो सकता है क्या? क्या इससे देश में एक दलीय व्यवस्था को मजबूती मिलेगी ?
रावत: हमारा मतदाता मैच्योर हो चुका है। महाराष्ट्र का चुनाव देखिए। नांदेड़ में दोनों चुनाव थे। एक ही पोलिंग स्टेशन में दो वोटिंग मशीन थी। मतदाताओं ने अलग-अलग फैसले दिए। इससे एक दलीय व्यवस्था हो जाएगी ऐसा नहीं लगता।
सवाल: चुनाव आयोग को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा?
रावत – देखिए..अभी 25 लाख से चुनाव कर लेते हैं। लोकसभा के साथ तीन-चार स्टेट में चुनाव होता है। 20-22 लाख मशीनों से काम चल जाता है। लेकिन सारे राष्ट्र में एक साथ काम होगा तो 50 लाख मशीन चाहिए। इन्हें बनाने वाली कंपनियां लिमिटेड हैं। इनकी कुल क्षमता सालाना 10 लाख है। इन दोनों कंपनियों पर जब हम आर्डर प्लेस करेंगे तब उन्हें ढाई साल का समय लगेगा। इससे पहले संभव नहीं है। जिस दिन आदेश देंगे, भुगतान करेंगे, तब कहीं जाकर 50 लाख मशीन हो पाएंगे। और तब कहीं जाकर एक देश एक चुनाव संपन्न हो सकेगा। चुनौतियां तो हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि किया नहीं जा सकता। यदि साल 2025 में भी आर्डर प्लेस हुआ तो साल 2028 की शुरू में संभव हो सकता है।
सवाल: क्या एक देश एक चुनाव से चुनाव क्रम टूटेगा ?
रावत -नहीं, नहीं…यह नॉर्मल है। इससे चुनाव का क्रम टूटेगा नहीं बल्कि क्रम बनेगा।
सवाल: क्या संशोधन करने होंगे?
रावत: कई संशोधन करने होंगे। 82, 83, 174 आर्टिकल..बहुत संशोधन करने होंगे। 1951 की धाराओं में संशोधन करने होंगे। पंचायत और नगर पालिका एक साथ चुनाव कराने उनके सारे अधिनियम बदलने होंगे। सरकार की भी चुनौतियां हैं।
सवाल: एक बात बताइए..अल्पमत में सरकार आई तो मोदी सरकार की क्या चुनौती होगी?
रावत: अभी वर्तमान सरकार के पास संख्या बल उतनी नहीं है कि इसे पास कर सके। लिहाजा जो अन्य राजनीतिक दल है उससे समझौता करें। सहमति प्राप्त करें। तभी पास करने की स्थिति में होंगे और भी कमी हुई तो और भी कोई दिक्कत होगी।
सवाल: दुनिया में कहां-कहां एक देश एक चुनाव हैं? आप इसे देश के परिपेक्ष में कैसे देखते हैं?
रावत – देखिए..बिल्कुल भारत में अपनाया जा सकता है। बहुत से देश हैं जिन्होंने एक राष्ट्र एक चुनाव को अपनाया है। अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, साउथ अफ्रीका… यहां एक देश एक चुनाव होता रहा है। इंडोनेशिया मुस्लिम बहुल देश है। लेकिन वहां हिंदू मुस्लिम संस्कृति एक साथ मिलकर जुटते हैं। सैकड़ो मंदिर है। अलग-अलग चीज हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम पापुलेशन वहीं है। सेकंड नंबर में इंडिया में। पाकिस्तान, बांग्लादेश तो बाद में आते हैं और वहां एक देश एक चुनाव होता है और बहुत अच्छे से होता है। कोई समस्या नहीं आती। लेकिन इससे सस्ते चुनाव हो जाएंगे, यह कहना गलत है। अब एक देश जिसका बजट 40 लाख करोड़ है, वह 5 साल में एक बार होने वाले चुनाव में पॉइंट 1% चुनाव में तो खर्च कर सकता है। पार्टियों का खर्चा बहुत ज्यादा होता है। बहुत सारी रिसर्च होती है। इसमें 1 लाख 10 हजार करोड़, 1 लाख 40 हजार करोड़ पार्टी खर्च की बात कही है। अपनी-अपनी रिसर्च है। लेकिन पार्टी का खर्चा बहुत होता है। यह जरूर खर्चा कम होगा। 5 साल में एक बार खर्च होने करना पड़ेगा। कितना, यह उनकी इच्छा शक्ति की बात है।
सवाल: आपके अनुभव के मुताबिक देश के लिए वन नेशन वन इलेक्शन कितना जरूरी है?
रावत – जो मेरी राय है, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कोई डिबेट नहीं हो पाती। जनता के बहुत इंपॉर्टेंट मुद्दों पर बात नहीं हो पाती। देखिए अब दिल्ली में पॉल्यूशन बहुत बढ़ गया। यमुना प्रदूषित होने पर सुप्रीम कोर्ट सामने आया पर चुनाव के कारण कुछ नहीं हुआ। दूसरी बात, 05 साल नेताओं के बीच में एक शत्रुता का भाव हो जाता है। विधानसभा में तर्क वितर्क कर लिया। राजनीति को देखिए। अभी शत्रुता जैसी स्थिति बन रही वह अच्छी नहीं है। स्वस्थ राजनीतिक परिदृश्य होना चाहिए।
एक बात और, लोकतंत्र के लिए चुनाव के टाइम पर होना चाहिए। चुनाव के कारण दो-तीन महीने के लिए नेता गायब हो जाते हैं। शीर्ष नेता अपनी पार्टी के प्रचार के लिए निकल गया। टॉप लेवल जहां से निर्णय होना है वही खाली हो जाता है। जब ऊपर की नहीं रहेंगे, तो नीचे की सेना का क्या होगा? जनता के मुद्दे भूल जाते हैं। सुरक्षा बलों की बहुत बड़ी समस्या है। जो देश की सुरक्षा के लिए लगे रहते हैं, वह हर साल चुनाव के लिए निकल लिए जाते हैं। सीमाओं और देश के लिए रिस्की स्थित बनती है। 5 साल में एक बार निकाल लो और फिर उनको अपनी ड्यूटी करने दो। इसलिए इस चुनाव से फायदा होगा।
सवाल: वन नेशन वन इलेक्शन से मतदाताओं की टेंडेंसी बदलेगी, क्या-क्या कहता है आपका चुनावी अनुभव?
रावत– पॉजिटिव असर इसका पड़ेगा। देखिए लोकसभा चुनाव में मतदाता रिमोट हो जाता है। विधानसभा चुनाव में बढ़ जाता है और पंचायत और नगरीय निकायों में जबरदस्त वोटिंग होती है। यदि एक साथ हुआ तो तीनों को वोट एक साथ डालना पड़ेगा। वोटर का पार्टिसिपेशन बढ़ जाए। उड़ीसा में लोकसभा-विधानसभा एक साथ होते थे लेकिन परिणाम देखिए अलग-अलग। इसलिए मतदाता बहुत सोच समझ कर वोट देता है। उसके मध्य अलग होते हैं। अब का मतदाता बहुत मैच्योर हो गया है।
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