पूर्व सीआईए अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने दावा किया है कि 1980 के दशक की शुरुआत में इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षा को रोकने के लिए भारत और इजरायल द्वारा पाकिस्तान के कहुटा परमाणु संयंत्र पर हवाई हमले करने के प्रस्तावित योजना से कई समस्याओं का समाधान हो सकता था। उन्होंने तत्कालीन भारत सरकार द्वारा इस अभियान की अस्वीकृति को शर्मनाक बताया। उन्होंने कहा कि शर्म की बात है कि इंदिरा गांधी ने इसे मंजूरी नहीं दी थी।

बार्लो ने कहा, ‘यह अफसोस की बात है कि इंदिरा गांधी ने इसे मंजूरी नहीं दी, इससे कई समस्याएं हल हो सकती थीं। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के निर्माता और प्रसारक ए.क्यू. खान के निर्देशन में स्थापित कहुटा संवर्धन केंद्र पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सफल खोज का केंद्र बना। इसकी परिणति 1998 में इस्लामाबाद के पहले परमाणु परीक्षणों के रूप में हुई।’

अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से आंखें मुंदी

साल 1985 से 1988 के बीच शीर्ष अमेरिकी खुफिया एजेंसी में काम करने वाले बार्लों ने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से ना सिर्फ आंखें मूंदी बल्कि मदद भी की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने शुरुआत में भारत विरोध को सामने रखा लेकिन बाद में अपने बम को इस्लामिक बम घोषित कर दिया। बार्लो ने इजरायल और भारत के पाकिस्तान की न्यूक्लियर साइट पर हमले के प्लान का भी खुलासा किया है।

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में बार्लो ने दावा किया कि साल 1990 में अमेरिकी खुफिया समुदाय ने पाकिस्तान के F-16 विमानों पर परमाणु हथियार तैनात होते देखे थे। हमें बिना किसी संदेह के पता था कि पाकिस्तान के F-16 विमान परमाणु हथियार ले जा सकते हैं। ये हमने खुद होते हुए देखा था।

अमेरिका को सब पता था

बार्लो का कहना है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोका। इसकी वजह ये थी कि पाकिस्तान को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण (1979-1989) के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख सहयोगी बना लिया था। उन्होंने कहा कि वॉशिंगटन के अधिकारियों को वैज्ञानिक ए.क्यू. खान के कहुटा में यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों की जानकारी मिल गई थी।

भारत था निशाने पर

बार्लो ने दावा किया है कि पाकिस्तान का परमाणु हथियार विकसित करने का मुख्य उद्देश्य भारत का मुकाबला करना था। हालांकि बाद में इसके निर्माता अब्दुल कदीर खान (ए क्यू खान) के नेतृत्व में इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षा ने इसे एक ‘इस्लामिक बम’ में बदल दिया। इसका उद्देश्य ईरान सहित अन्य इस्लामी देशों तक इस तकनीक का विस्तार और प्रसार करना था।

बार्लो ने कहा, ‘मुझे लगता है कि ए.क्यू. खान ने एक बार यह कहा था कि हमारे पास ईसाई बम है, हमारे पास यहूदी बम है, और हिंदू बम है। ऐसे में हमें एक मुस्लिम बम चाहिए। मेरे लिए यह बिल्कुल स्पष्ट था कि पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों को परमाणु हथियार तकनीक प्रदान करने का इरादा रखता है, और यही हुआ।’

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