शब्बीर अहमद,भोपाल। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने बड़ा फैसला लिया है. उन्होंने आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज को अपना गुरु मान लिया है. गुरु आज्ञा पर 17 नवंबर से परिवारजनों से सभी तरह के संबंध समाप्त कर विश्व को अपना परिवार बनाने का निर्णय लिया है. अपने नाम से भारती शब्द हटाकर दीदी मां रखने का फैसला लिया है.
उमा भारती के सन्यास के ऐलान पर कांग्रेस नेता अजय सिंह ने कहा कि उमा भारती की बात पर विश्वास नहीं, वो सन्यास नहीं लेंगी. कांग्रेस विधायक कमलेश्वर पटेल का कहना है कि उमा भारती को सन्यास लेने की जरूरत नहीं. उमा भारती अपनी मुखरता से BJP सरकार के खिलाफ बोलती रहें. गली मोहल्लों में दारूखोरी को बढ़ावा देने वालों के लिए अपनी आवाज़ उठाते रहें.
उमा भारती ने फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि मेरी संन्यास दीक्षा के समय पर मेरे गुरु ने मुझसे और मैंने अपने गुरु से 3 प्रश्न किए. उसके बाद ही मेरी संन्यास की दीक्षा हुई.
मेरे गुरु के 3 प्रश्न थे
1. 1977 में आनंदमयी मां के द्वारा प्रयाग के कुंभ में ली गई ब्रह्मचर्य दीक्षा का क्या मैंने अनुशरण किया है?
2. क्या प्रत्येक गुरु पूर्णिमा को मैं उनके पास पहुंच सकूंगी ?
3. मठ की परंपराओं का आगे अनुशरण कर सकूंगी ?
तीनों प्रश्न के उत्तर में मेरी स्वीकारोक्ति के बाद मैंने उनसे जो तीन प्रश्न किए
1. क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है?
2. मठ की परंपराओं के अनुशरण में मुझसे कभी कोई भूल हो गई तो क्या मुझे उनका क्षमादान मिलेगा ?
3. क्या मुझे आज से राजनीति एवं परिवार त्याग देना चाहिए ?
पहले दो प्रश्नों के अनुकूल उत्तर गुरु जी द्वारा मिलने के बाद मेरे तीसरे प्रश्न का उनका उत्तर जटिल था. मेरे परिवार से संबंध रह सकते हैं, लेकिन करुणा एवं दया मोह या आसक्ति नहीं. देश के लिए राजनीति करनी पड़ेगी.
राजनीति में मैं जिस भी पद पर रहूं मुझे और मेरी जानकारी में मेरे सहयोगियों को रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से दूर रहना होगा. इसके बाद मेरी सन्यास दीक्षा हुई, मेरा मुंडन हुआ, मैंने स्वयं का पिंडदान किया और मेरा नया नामकरण संस्कार हुआ मैं उमा भारती की जगह उमाश्री भारती हो गई.
मैं जिस जाति, कुल एवं परिवार में पैदा हुई उस पर मुझे गर्व है, मेरे निजी जीवन एवं राजनीति में वह मेरा आधार एवं सहयोगी बने रहे. हम चार भाई दो बहनें थे. जिसमें से 3 का स्वर्गारोहण हुआ है. मेरे पिता गुलाब सिंह लोधी एक खुशहाल किसान थे, मेरी मां बेटी बाई कृष्ण भक्त परम सात्विक जीवन जीने वाली महिला थीं.
मैं घर में सबसे छोटी हूं यद्यपि मेरे पिता के अधिकतर मित्र कम्युनिस्ट थे, लेकिन मुझसे ठीक बड़े भाई अमृत सिंह लोधी, हर्बल सिंह लोधी, स्वामी प्रसाद लोधी और कन्हैयालाल लोधी सभी जनसंघ एवं भाजपा से मेरे राजनीति में आने से पहले ही जुड़ गए थे. मेरे अधिकतर भतीजे बाल स्वयंसेवक हैं. मुझे गर्व है कि मेरे परिवार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे मेरा लज्जा से सिर झुके. इसके उल्टे उन्होंने मेरी राजनीति के कारण बहुत कष्ट उठाए.
उन लोगों पर झूठे केस बने, उन्हें जेल भेजा गया. मेरे भतीजे हमेशा सहमे हुए से एवं चिंतित से रहे कि उनके किसी कृत्य से मेरी राजनीति ना प्रभावित हो जाए. वह मेरे लिए सहारा बने रहे और मैं उन पर बोझ बनी रही. संयोग से जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज भी कर्नाटक के हैं. अब वही मेरे लिए गुरु स्थान पर हैं.
उन्होंने मुझे आज्ञा दी है कि समस्त निजी संबंधों एवं संबोधनों का परित्याग करके मैं मात्र दीदी मां कहलाऊं एवं अपने भारती नाम को सार्थक करने के लिए भारत के सभी नागरिकों को अंगीकार करूं. संपूर्ण विश्व समुदाय ही मेरा परिवार बने.
मैंने भी निश्चय किया था कि अपने सन्यास दीक्षा के 30 वें वर्ष के दिन मैं उनकी आज्ञा का पालन करने लग जाऊंगी. यह आज्ञा उन्होंने मुझे दिनांक 17 मार्च, 2022 को रहली. जिला सागर में सार्वजनिक तौर पर माइक से घोषणा करके सभी मुनि जनों के सामने दी थी. मैं अपने परिवार जनों को सभी बंधनों से मुक्त करती हूं. मैं स्वयं भी 17 तारीख को मुक्त हो जाऊंगी.
मेरा संसार एवं परिवार बहुत व्यापक हो चुका है. अब मैं सारे विश्व समुदाय की दीदी मां हूं मेरा निजी कोई परिवार नहीं है. अपने माता-पिता के दिए हुए उच्चतम संस्कार, अपने गुरु की नसीहत, अपनी जाति एवं कुल की मर्यादा, अपनी पार्टी की विचारधारा और अपने देशके लिए मेरी जिम्मेदारी इससे मैं अपने आप को कभी मुक्त नहीं करूंगी.
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