झांसी. डिजिटल युग में युवाओं पर सोशल मीडिया का खुमार चढ़ा हुआ है. रील्स, मीम्स, लाइक, कमेंट और शेयर के दौर में युवा संस्कारों से विमुख हो रहे हैं. वहीं, बुंदेलखंड की बेटियां आधुनिक चकाचौंध से दूर दूसरों का जीवन संवारने निकल पड़ी हैं.
इन बेटियों ने लोगों को संस्कारों का पाठ पढ़ाने के लिए घर छोड़ दिया है. जैन समाज के प्रतिष्ठित परिवारों की इन बेटियों को 16 दिसंबर को आर्यिका विशाश्री माताजी कोलकाता में आर्यिका दीक्षा प्रदान करेंगीं.
बता दें कि बेटियां साध्वी बनकर जैन धर्म के सिद्धांत और नियमों का पालन करते हुए पूरे देश में संस्कारों का शंखनाद करेंगीं. इन दिनों इन बेटियों की जगह-जगह बिनौली यात्रा निकाली जा रही है. इस दौरान बेटियां गृहस्थावस्था में हुई भूलों की समाज से क्षमा याचना कर रही हैं.
वहीं, ललितपुर के बानपुर निवासी महेंद्र नायक की बड़ी बेटी शिवा जैन आर्यिका माता विशाश्री से दीक्षा लेने जा रही हैं. शिवा दीदी के पिता महेंद्र नायक बताते हैं कि वर्ष 2011 में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज और आर्यिका विशाश्री माताजी ने बानपुर में पंचकल्याणक महोत्सव कराया था.
इस दौरान शिवा दीदी माताजी के पास वैयावृत्ति (सेवा) करने जाती थीं. मां संध्या जैन बताती हैं कि शिवा दीदी ने टीकमगढ़ से बीसीए किया है. उनकी बचपन से ही धार्मिक कार्यों में रुचि थी. पिछले 11 साल से वह आर्यिका संघ में रहकर संयम की साधना कर रही हैं. शिवा दीदी की छोटी बहन सेजल जैन भी धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहती हैं.
भिंड निवासी प्रकाशचंद्र जैन और ऊषा जैन की बेटी शैली जैन भी वैराग्य पथ पर आगे बढ़ रही हैं. मां ऊषा जैन बताती हैं कि शैली दीदी नगर में आर्यिका संघ (जैन साध्वियों) के आगमन के दौरान बढ़-चढ़कर सेवा करती थीं. लॉकडाउन में आर्यिका विशाश्री माताजी औरंगाबाद में वर्षायोग (चातुर्मास) कर रही थीं. इस दौरान वे संघ में शामिल हो गईं और आर्यिका माता से ब्रह्मचर्य और दो प्रतिमा के व्रत ले लिए. इसके बाद उन्होंने घर वापसी नहीं की. एमए कर चुकीं शैली दीदी ने बताया कि आर्यिका माताजी को देखकर मन में संयम का भाव जागृत हुआ और सब कुछ छोड़ने का फैसला कर लिया.
भोपाल के सलामतपुर निवासी सपना दीदी टीचर बनना चाहती थीं. उन्होंने अंग्रेजी से एमए करने के बाद बीएड किया. लेखन में रुचि थी तो आध्यात्मिक लेख भी लिखा करती थीं. धर्म के संस्कारों का प्रभाव हुआ और उन्होंने संयम पथ अपनाने की ठान ली. चार महीने पहले कोलकाता में आर्यिका संघ के दर्शन करने पहुंचीं सपना दीदी ने आर्यिका माताजी से दीक्षा के लिए निवेदन किया. इस पर आर्यिका माता ने सपना दीदी के परिवार की सहमति मांगी. बिटिया के त्याग की अनुमोदना करते हुए परिवार ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी. अब वे आर्यिका दीक्षा लेकर समाज को धर्म का पाठ पढ़ाना चाहती हैं.
आर्यिका विशाश्री माताजी से राजस्थान के हिंगोनिया निवासी रौनक दीदी भी दीक्षा लेने जा रही हैं. बीकॉम कर चुकीं रौनक दीदी 2015 में आर्यिका संघ में ब्रह्मचारिणी की रूप में शामिल हुईं थीं. आठ साल की कठिन तपस्या और त्याग के बाद उनको दीक्षा मिलने जा रही है. रौनक दीदी बताती हैं कि आर्यिका दीक्षा लेकर अपना कल्याण करना चाहती हूं.
बुंदेलखंड की धरती से पहले भी 150 से ज्यादा जैन संत दीक्षा ले चुके हैं. आचार्य विराग सागर, आचार्य विमर्श सागर, मुनि सुधा सागर महाराज समेत तमाम जैन साधु-साध्वी आज समाज को सही दिशा दे रहे हैं. साथ ही बुंदेलखंड को गौरवान्वित कर रहे हैं.
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जैन धर्म में मुनि और आर्यिका दीक्षा लेने के बाद बेटियों का जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा. बेटियां पूरे वर्षभर दो सफेद साड़ियां पहनेंगीं. 24 घंटे में एक बार बैठकर अंजुलि (हाथ) में अन्न और जल ग्रहण करेंगीं. कभी भी अपने घर में प्रवेश नहीं कर सकेंगीं. एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पदविहार करेंगीं. मोबाइल, टीवी, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री का उपयोग नहीं करेंगी. आहार में भी शुद्ध और सात्विक खाद्य पदार्थ ही लेंगीं. तख्त और चटाई पर भी सोएंगीं. रात आठ बजे से सुबह चार बजे तक मौन रहेंगीं. इसके अलावा स्वाध्याय, धर्म चर्चा और प्रभु स्तुति में ही समय व्यतीत करेंगीं.