जयपुर। प्रदेश में राइट टू हेल्थ के विरोध में चार हजार प्राइवेट अस्पतालों को बंद कर दिया गया है। बता दें कि इन अस्पतालों में शनिवार से ही नए मरीजों की भर्ती पर रोक लगा दी गई। यह फैसला चिकित्सकों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने लिया है। इस कमेटी का कहना है कि राज्य सरकार राइट टू हेल्थ बिल में संशोधन के मुद्दे पर राज्य सरकार अपने ही वादों स मुकर गई है।

बता दें कि प्रदेश के चार हजार प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों का इलाज बंद कर दिया गया है। वहीं अस्पताल में जो मरीज उपचार के लिए पहले से ही भर्ती हैं उन्हें भी छुट्टी दे दी जा रही है। आपको बता दें कि करीब 2 लाख मरीज रोजाना प्राइवेट अस्पतालों में अपना उपचार कराने पहुंचते हैं। वहीं 20 हजार मरीज अस्पताल में भर्ती रहते हैं। इन अस्पतालों के बंद होने के कारण सरकारी अस्पतालों पर मरीजों को दबाव बढ़ेगा।

ज्वाइंट एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि डॉ. कुलदीप शर्मा का कहना है कि राइट टू हेल्थ बिल में संशोधन के मामले में राज्य सरकार अपने ही वादों से मुकर गई है। कमेटी के सदस्यों के साथ इस बिल में संशोधनों पर जो सहमति बनी थी उसपर सरकार ने अपना रुख बदल लिया है। प्राइवेट अस्पतालों को यह बिल किसी भी स्वरूप में स्वीकार नहीं है। लिया है। अब प्राइवेट अस्पतालों को बिल किसी भी स्वरूप में स्वीकार नहीं है। डॉ कुलदीप का कहना है कि अगर यह बिल कानूनन बनेगा को तो किसी भी प्राइवेट अस्पताल का संचालन नहीं हो सकता। मजबूरी में अस्पतालों को बंद करना ही पड़ेगा।

डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि मरीजों के उपचार में प्राइवेट अस्पतालों की भागीदारी 75 फीसदी है। इतनी बड़ी संख्या में मरीजों का इलाज करने पर भी सरकार का रवैया नकारात्मक है। सरकारी अस्पतालों में सरकार चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं करवा रही वहीं दूसरी ओर राइट टू हेल्थ बिल की आड़ में प्राइवेट अस्पतालों का दम घोट रही है।

डॉ. शर्मा ने बताया कि शटडाउन में प्रदेश भर के सभी प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों ने शटडाउन पर अपनी सहमति दे दी है। इस संबंध में सरकार को अवगत कर दिया है। जब अस्पताल ही बंद रहेंगे तो सरकारी योजनाओं में उपचार ही नहीं होगा। डॉ. शर्मा ने कुछ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सीएम अशोक गहलोत को गुमराह करने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों का पक्ष मुख्यमंत्री के सामने रखा ही नहीं जा रहा है।

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