मैंगो ब्रदर्स ईशांश और शुभम जैसे किसान आज देश के लिए प्रेरणा हैं और बस्तर की ये बगिया बताती है कि अगर हौसला हो, तो कोई भी जमीन बंजर नहीं होती और शायद यही असली विकास का फल है, जो अब हमारे गांवों से शहरों तक पहुंच रहा है.

आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। बस्तर जिसे आज तक आप नक्सलवाद, जंगल और आदिवासी जीवनशैली के लिए जानते रहे हैं. अब वहां से एक बदलाव की खूशबू आ रही है आम के बागानों से. जी हां, बस्तर के दो युवा आम के ऐसे जादूगर बन गए हैं, जिन्होंने ना सिर्फ दर्जनों किस्मों के आम बचाए हैं, बल्कि अब दुनिया के सबसे महंगे आम मियाजाकी को भी उगाने की तैयारी कर रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में जंगलों के बीच बकावंड इलाके में जब आप पहुंचते हैं, तो वहां आपको एक ऐसी बगिया मिलेगी, जिसे अब मैंगो वैली कहा जाने लगा है. इस बगिया को हकीकत में बदलने वाले दो भाई ईशांश सिंह राठौर और शुभम सिंह राठौर हैं, जिन्होंने मिलकर आम की 40 से ज्यादा प्रजातियों का संरक्षण किया है. इनमें से कई किस्में तो अब दुर्लभ मानी जाती हैं. दशहरी, आम्रपाली, लंगड़ा, केसर, बॉम्बे ग्रीन, सिंदूरी, अरुणिका 300 रुपये किलो तक बिकता है. यहां तक बगिया में बारहमासी आम भी पाया जाता है.

ईशांश और शुभम का कहना है कि आम की अच्छी पैदावार के लिए 30-40 डिग्री तापमान और 7 से 5 पीएच वाली मिट्टी सबसे बेहतर होती है, जो बस्तर में सहज उपलब्ध है. यही कारण है कि उन्होंने पारंपरिक खेती छोड़कर उन्नत और पूरी तरह जैविक खेती का रास्ता अपनाया. इनके बागान में रसायनिक खाद या कीटनाशकों का कोई नामो-निशान नहीं है. हर चीज प्राकृतिक, हर तरीका सस्टेनेबल.

दोनों भाई बताते हैं कि उन्होंने शुरू में खुद सीखने की कोशिश की. छोटे पैमाने से शुरू किया, फिर रिसर्च किया कि बस्तर में क्या मुमकिन है. अब 1500 से ज्यादा पेड़ हैं, और 6 से ज्यादा किस्में हर साल फल दे रही हैं. प्रत्येक एकड़ में 7 से 8 क्विंटल आम निकलता है, और हर वर्ष 7 से 8 लाख का मुनाफा होता है. मैंगो ब्रदर्स की मेहनत का नतीजा है कि छत्तीसगढ़ में आम महोत्सव में विशिष्ट आम के लिए प्रथम व द्वितीय पुरस्कृत किया गया है.

मैंगो ब्रदर्स ने केवल आम ही नहीं, बल्कि अपने खेत में इंटरक्रॉपिंग का ऐसा मॉडल तैयार किया है, जो बाकी किसानों के लिए प्रेरणा बन रहा है. आम के पेड़ों के बीच नारियल, पपीता, लीची, अनानास और दूसरी फलदार फसलें उग रहे हैं. खेती अब इनके लिए केवल आजीविका नहीं, बल्कि वैज्ञानिक प्रयोगशाला बन चुकी है, जिसमें हर दिन कुछ नया सीखने और सिखाने का मौका होता है. शुभम सिंह बताते हैं कि हमने देखा कि किसान एक ही फसल पर निर्भर रहते हैं. हमने तय किया कि इंटरक्रॉपिंग से जोखिम घटेगा और आमदनी बढ़ेगी. अब हर मौसम में कोई ना कोई फसल तैयार रहती है.

मियाजाकी आम बनेगा बस्तर की पहचान

अब इनका अगला लक्ष्य है मियाजाकी आम जापान में उगने वाला यह लाल रंग का रसीला फल, जिसकी बाजार में कीमत 3.5 लाख रुपए प्रति किलो तक होती है, अब बस्तर की मिट्टी में अपनी जगह बना रहा है. इन दोनों भाइयों ने इसकी बुवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है, और आने वाले सालों में यह बस्तर की नई पहचान बन सकती हैं.

किसान से बने मेंटॉर और ट्रेंडसेटर

ईशांश और शुभम अब खुद को किसान भर नहीं मानते वे मेंटॉर और ट्रेंडसेटर बन गए हैं. आसपास के गांवों से युवा यहां आकर बागवानी सीखते हैं. आधुनिक तकनीक, जैविक विधि और फलों की वैज्ञानिक समझ लेकर लौटते हैं. कुछ तो अपने खेतों में भी इनका मॉडल लागू कर चुके हैं. बस्तर का यह प्रयोग अब ग्रामीण नवाचार का रोल मॉडल बनता जा रहा है.

तो बदलाव की फसल लहलहाती जरूर है

मैंगो ब्रदर्स के इस नवाचार ने साबित कर दिया है कि अगर सोच नई हो तो ज़मीन कोई भी हो बदलाव की फसल जरूर लहलहाती है. बस्तर के जंगलों में अब सिर्फ तीर-कमान नहीं बल्कि फल, फूल और भविष्य के सपने पनप रहे हैं. आम की खुशबू अब संघर्ष की नहीं समृद्धि की पहचान बन रही है.