केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन सफदरजंग अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग में निशुल्क न्यूरो मॉड्यूलेशन सुविधा शुरू की गई है। इस सेवा के माध्यम से ऐसे मरीज, जिन्हें मानसिक रोगों के उपचार में दवाओं से लाभ नहीं मिलता, उनका इलाज उन्नत न्यूरो मॉड्यूलेशन तकनीक से किया जा सकेगा। खास बात यह है कि मरीजों को यह सुविधा पूरी तरह निशुल्क उपलब्ध होगी।

इस सुविधा से विभिन्न मानसिक रोगों से जूझ रहे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी। अस्पताल प्रशासन के अनुसार नव स्थापित न्यूरो मॉड्यूलेशन केंद्र में अत्याधुनिक आरटीएमएस (रिपिटिटिव ट्रांसक्रैनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन), एमईसीटी (मॉडिफाइड इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी) और टीडीसीएस (ट्रांसक्रैनियल डायरेक्ट करंट स्टिमुलेशन) जैसी उन्नत मशीनें स्थापित की गई हैं।

अवसाद, अल्ज़ाइमर, ओसीडी और सिज़ोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों के उपचार में न्यूरो मॉड्यूलेशन तकनीक का व्यापक उपयोग किया जाता है। इसके अलावा मिर्गी, कमर दर्द और अन्य कई न्यूरोलॉजिकल या क्रॉनिक दर्द संबंधी समस्याओं में भी यह तकनीक प्रभावी साबित होती है। वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा बहुत सीमित है, जिसकी वजह से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए ऐसे उपचार तक पहुँचना कठिन हो जाता है। अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. संदीप बंसल ने कहा कि संस्थान की कोशिश है कि किसी भी मरीज को आर्थिक सीमाओं के कारण आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से वंचित न होना पड़े। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अस्पताल में यह निशुल्क न्यूरो मॉड्यूलेशन सुविधा शुरू की गई है।

एक सेशन में लगते हैं लगभग 20 मिनट

अस्पताल के मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज वर्मा ने बताया कि न्यूरो मॉड्यूलेशन मशीनों में एक छोटा मैग्नेट लगा होता है, जिसके माध्यम से मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से को स्टिमुलेट किया जाता है। इससे मरीजों में बीमारी के लक्षणों में कमी आती है। एक सेशन पूरा होने में लगभग 20 मिनट लगते हैं और इसे सप्ताह में तीन बार किया जाता है। उन्होंने बताया कि मरीज की बीमारी की गंभीरता के आधार पर थेरेपी की अवधि तय की जाती है। निजी अस्पतालों में इस उपचार की लागत डेढ़ से दो लाख रुपये तक होती है, जबकि सफदरजंग अस्पताल में यह सुविधा पूरी तरह निशुल्क उपलब्ध है। बार-बार आत्महत्या के विचार आने जैसी गंभीर स्थितियों में एमईसीटी का उपयोग किया जाता है।

दोगुने हुए मरीज

डॉ. वर्मा ने बताया कि पहले अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग की ओपीडी में सालाना लगभग 40 से 45 हजार मरीज आते थे। लेकिन पिछले दो से तीन वर्षों में यह संख्या बढ़कर करीब 80 हजार तक पहुँच गई है। अस्पताल में स्थापित न्यूरो मॉड्यूलेशन मशीनें अत्याधुनिक, महंगी और बड़े आकार की हैं, जिनका उपयोग गंभीर मानसिक बीमारियों के उपचार में किया जाता है। हालांकि, उन्होंने बताया कि बाजार में अब पेन ड्राइव या हेलमेट जैसे छोटे आकार वाले पोर्टेबल उपकरण भी उपलब्ध हो गए हैं।

सफदरजंग अस्पताल के मनोचिकित्सकों के अनुसार न्यूरो मॉड्यूलेशन गंभीर मानसिक बीमारियों के उपचार में एक प्रभावी विकल्प के रूप में तेजी से उभर रहा है। दवा-प्रतिरोधी सिज़ोफ्रेनिया जैसे जटिल मामलों में भी इस तकनीक से अच्छे परिणाम मिले हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि जब दवाएं मरीज पर असर करना बंद कर देती हैं, तब न्यूरो मॉड्यूलेशन थेरेपी उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिन मरीजों पर दवाएं असर कर रही होती हैं, वे भी इस तकनीक को उपचार के सहायक विकल्प के रूप में चुन सकते हैं, क्योंकि इससे लक्षणों में अपेक्षाकृत तेजी से सुधार होता है।

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