रायपुर। क्या इसे बीजेपी के भीतर नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाने की शुरूआत मानी जाए? दरअसल पूर्व मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता चंद्रशेखर साहू ने निकाय चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार का जिम्मा अप्रत्यक्ष तौर पर आला नेताओं पर फोड़ा है. उन्होंने दो टूक पूछा है कि क्या सत्तारूढ़ दल, प्रशासन और धनबल के आगे हमने घुटने टेक दिए हैं? साहू ने कहा कि निकाय चुनाव की हार की समीक्षा भी की गई है या नहीं, इसकी मुझे जानकारी नहीं है, किसी फोरम में मुझे नहीं बुलाया गया है, यदि तथ्यपूर्ण समीक्षा की जाएगी, तो जरूर इससे कुछ ऐसा निकलेगा, जिससे पार्टी अपनी खामियों को दुरस्त कर सकेगी. उन्होंने कहा कि हमारे असंख्य कार्यकर्ता चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा थे. नगरीय निकायों में काबिज नहीं हो पाने की पीड़ा इन कार्यकर्ताओं को है. चंद्रशेखर साहू ने कहा कि संगठन के भीतर संवाद केवल आला नेताओं और पदाधिकारियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, पार्टी को मजबूत करना है, तो इस संवाद में कार्यकर्ताओं को भी शामिल करना होगा.
पूर्व मंत्री ने कहा कि प्रदेश में जिस तरह के हालात हैं, सरकार के खिलाफ जो वातावरण बन रहा है, चाहे धान खरीदी को लेकर हो या फिर बेरोजगारी भत्ते को लेकर या शराबबंदी का वादा कर पीछे जाने की मुद्दा हो, इन सबको लेकर बीजेपी को जेहाद छेड़ दिए जाने की जरूरत है. सरकार की हर टिप्पणी आघात करने वाली है, ऐसी स्थिति में विपक्ष की भूमिका प्रभावी होनी चाहिए, लेकिन दो उप चुनाव और दस नगर निगम हारे जाने के बाद पार्टी को लेकर संदेश क्या जा रहा है? हमे अब तटस्थ होकर बात करने की जरूरत है.
चंद्रशेखर साहू ने कहा कि बीजेपी मूल रूप से कैडर बेस्ड पार्टी है. इसकी तुलना कांग्रेस के साथ नहीं की जा सकती. जब यह कैडर लड़ाई के लिए तैयार होता है, तो उसका लाभ पार्टी को ही मिलता है. निगम छिन गया, तो इससी समीक्षा हो सकती है, निराश होने की जरूरत नहीं है. जरूरत है पार्टी के भीतर हर स्तर पर संवाद बढ़ाने की. हम अपनी बात को निरंतर पार्टी फोरम में रखना चाहते हैं. यह मौका ऐसा है कि सरकार के खिलाफ पूरी आक्रामकता और दमखम के साथ न केवल लड़ा जाए, बल्कि लोगों को जोड़ा जाए.
धान खरीदी जैसे अहम मुद्दे पर लड़ाई में बीजेपी चूकी
चंद्रशेखर साहू राज्य के पूर्व कृषि मंत्री रह चुके हैं. धान खरीदी एक पाॅलिटिकल इशू कैसे बनता रहा है, इसे वह बखूबी समझते हैं. इसे लेकर उनका कहना है कि भूपेश सरकार की धान खरीदी की नीति से किसान संतुष्ट नहीं है. किसानों से 2500 रूपए में खरीदी किए जाने का वादाखिलाफी सरकार ने पहले किया. धान खरीदी के लिए बनाई गई व्यवस्थाओं ने भी किसानों को खूब रूलाया. इसे एक बड़ा पाॅलिटिकल मूवमेंट बनाया जा सकता था, लेकिन यह बीजेपी की रणनीतिक चूक थी कि सरकार के खिलाफ बने इस माहौल को लेकर सड़कों पर जैसा आंदोलन होना चाहिए था, वैसा हुआ नहीं. हालांकि यह अपेक्षा अब भी की जा सकती है.