मुंबई. Sanjay Leela Bhansali की फिल्म Gangubai Kathiawadi आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. फिल्मों से लोगों को काफी उम्मीदें होती हैं. किसी भी फिल्म के ऐलान के बाद से ही लोगों को रिलीज का इंतजार रहता है. हाल ही में Sanjay Leela Bhansali की Gangubai Kathiawadi आई है, जिससे दर्शकों को काफी उम्मीदें हैं. यह फिल्म की कहानी कमाठीपुरा की गंगूबाई की जिंदगी पर आधारित है, जिसे कभी उसके लवर या पति ने मात्र 1000 रुपए में बेच दिया था और फिर वह सेक्स वर्कर बन गई.

बता दें कि इस फिल्म में गंगूबाई का किरदार एक्ट्रेस Alia Bhatt ने निभाया है. वहीं, रहीम लाला जो गंगूबाई का मुंहबोला भाई होता है, उसके किरदार में Ajay Devgn नजर आ रहे हैं. हालांकि, डॉन करीम लाला (Don Karim Lala) का नाम फिल्म में रहीम लाला कर दिया गया है. आलिया भट्ट ने Gangubai Kathiawadi के रूप में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है.

वहीं, अगर आप भी गंगूबाई की जिंदगी को और करीब से जानने के लिए इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं, तो उससे पहले फिल्म का ये रिव्यू पढ़ लीजिए, ताकि आप ये जान सकें कि आपको ये फिल्म देखनी है या नहीं.

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क्या है फिल्म की कहानी ?

बता दें कि Gangubai Kathiawadi की कहानी गुजरात के काठियावाड़ में पली बढ़ी गंगा हरजीवन दास काठियावाड़ी की है. गंगा के पिता बैरिस्टर होते हैं. गंगा एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती है. हालांकि, 16 साल की उम्र में गंगा इश्क में पड़ जाती है. वो भी अपने पिता के साथ काम करने वाले रमणिक के साथ. नौवीं क्लास तक पढ़ी गंगा एक दिन अपने अभिनेत्री बनने के सपने को पूरा करने के लिए रमणिक के साथ गुजरात से मुंबई भाग जाती है. वो रमणिक ही होता है जो उसे मुंबई में अभिनेत्री बनने के सपने दिखाता है और उसे अपने प्यार के जाल में फंसाकर मुंबई ले आता है. यहां वह मात्र 1000 रुपए में गंगा को कमाठीपुरा की उन गलियों में बेच देता है, जहां पर हर रोज कई महिलाओं के जिस्म का सौदा होता है.

पहले तो गंगा इस सच को मानने को तैयार नहीं होती कि उसे बेच दिया गया है, लेकिन हालात से समझौता करने के बाद वह गंगा से कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर गंगू बन जाती है और फिर गंगू से गंगूबाई. हालांकि, गंगू के जीवन में बदलाव तब आता है, जब उसकी जिंदगी में डॉन करीम लाला की एंट्री होती है. करीम लाला को गंगूबाई अपना भाई मान लेती है और करीम लाला गंगू को अपनी बहन. करीम लाला के दम पर कमाठीपुरा पर गंगूबाई का राज होता है. गंगूबाई सेक्स वर्कर्स को समाज में इज्जत दिलवाने और अपने कानूनी अधिकारों के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ती है. इसके लिए वह देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी जा मिलती है.

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रिव्यू

गंगूबाई पर जो किताबों में लिखा है और जो इंटरनेट पर पटा पड़ा है, वो कहानी अपने आप में बहुत कुछ कहती है. बड़े पर्दे पर गंगूबाई की उस दर्दभरी और रौंगटे खड़े कर देने वाली कहानी को दर्शाने में संजय लीला भंसाली कामयाब रहे या नाकाम रहे ये तो वक्त ही बताएगा हैं. असल किरदार पर बनने वाली कहानी को जितना प्रभावित होना चाहिए, वो संजय लीला भंसाली अपनी इस फिल्म में शायद नहीं दिखा पाए हैं. गंगूबाई की कहानी को सिर्फ कह दिया गया है, वो भी उतना ही जितना हुसैन जैदी ने अपनी किताब में लिख दिया है. अगर किसी ऐसे शख्स पर फिल्म बनाई जाती है, जो असल किरदार है, तो उसपर रिसर्च होना बहुत महत्वपूर्ण होता है.

ये फिल्म का सबसे बड़ा नेगेटिव पॉइंट है कि गंगूबाई के गंगा से गंगू बनने तक के सफर को प्रभावी तरीके से दर्शाने के लिए ज्यादा रिसर्च नहीं की गई है. अगर मेकर्स चाहते तो गंगूबाई के बचपन और उसके परिवार संग उसके रिश्ते को भी दर्शा सकते थे, ये फिल्म को एक मजबूती देता कि कैसे गंगा ने अपने परिवार को छोड़ने का फैसला लिया. गंगा जिसके साथ भागती है, उसे कहानी में एकदम से एंटर करा दिया, न ये दिखाया कि गंगा और रमणिक कैसे एक दूसरे के करीब आए. गंगा और रमणिक की लव स्टोरी को थोड़ा और अच्छे से दर्शाया जा सकता था.

इसके बाद जब गंगा कमाठीपुरा पहुंची, तब उसके साथ क्या-क्या हुआ शुरुआत में ये भी फिल्म से गायब दिखा. फिल्म की छोटी-छोटी चीजें ऐसी रहीं, जिनपर काम किया जा सकता था. गंगूबाई और डॉन करीम लाला के रिश्ते को भी और खूबसूरती के साथ पेश किया जा सकता था, लेकिन मेकर्स इसमें भी नाकाम दिखे. सबसे बड़ी फिल्म में कमी तो यहीं दिखी कि हम असल में गंगूबाई के बारे में जान ही नहीं पाए कि आखिर गंगा कौन थी, उसका व्यवहार कैसा था, उसके आसपास के लोग उसके बारे में क्या सोचते थे, उसका बचपन कैसा था?