पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में पदोन्नति की मलाई पर जांच की घटाई पड़ गई है. गरियाबंद में 552 सहायक शिक्षको की पदोन्नति अधर में है. डीईओ पदोन्नति कराने में नाकाम साबित हुए हैं, इसलिए अब सयुंक्त संचालक के पाले में जांच और पदोन्नति का अधिकार चला गया है, क्योंकि इस लिस्ट से फर्जीवाड़ा और झोलझाल की बू आ रही है.
दरअसल, 7 साल से लंबित मैनपुर में नियुक्त कथित 132 फर्जी शिक्षाकर्मियों की जांच 139 पर भी कार्रवाई नहीं हुई है, फिर भी जिला शिक्षा अधिकारी ने पदोन्नति सूची में नाम शामिल कर दिया था. इसलिए सयुंक्त संचालक ने टी संवर्ग के 552 सहायक शिक्षकों की पदोन्नति रोक दी गई है. सचिव को पत्र लिख कर कहा गया है कि संचनालय स्तर के अफसरों की टीम बनाकर पहले जांच करना उचित होगा, फिर पदोन्नति दी जाएगी.
विभिन्न खरीदी और नियुक्ति को लेकर सुर्खियों में रहने वाले जिला शिक्षा विभाग फिर एक बार अपनी लापरवाही के कारण सुर्खियों में आ गया है. ताजा मामला पदोन्नति का है. शासन के निर्देश पर प्रदेश के विभिन्न जिलों में अक्टूबर माह में पदोन्नति कर लिया था, लेकिन गरियाबन्द इस मामले में भी पिछड़ गया.
जिला शिक्षा विभाग के ढुलमुल रवैये के अलावा लापरवाही के कारण टी संवर्ग के 552 सहायक शिक्षकों की पदोन्नति अब अधर में लटक गई है. सयुंक्त संचालक के कुमार ने 28 नवम्बर को शिक्षा सचिव डॉ एस भारती दासन को एक अर्ध शासकीय पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि जनपद सीईओ मैनपुर द्वारा उन 132 शिक्षाकर्मियों के नाम पदोन्नति में शामिल नहीं करने का आग्रह डीईओ को किया था, जिनके विरूद्ध वर्ष 2016 से जांच लंबित है. बावजूद टी सवर्ग के 552 की सूची में इन 132 के नाम शामिल कर दिया गया है.
2016 की जांच में जिन 139 कर्मियों पर कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी. वह भी लंबित है, इसलिए संचनालय स्तर से टीम गठित कर जांच करने और इस जांच के बाद ही पदोन्नति करना उचित होना कहा गया है. पत्र की प्रतिलिपि गरियाबन्द कलेक्टर डीईओ को भी जानकारी के लिए भेजी गई है. इसमें दो बड़ी वजह है, जिसके चलते संचनालय स्तर के टीम को नए सिरे से जांच करने की जरूरत पड़ी.
कारण 1- जांच में कई विषंगतियां
सयुंक्त संचालक के पत्र में बताया गया है कि जनपद पंचायत मैनपुर द्वारा 2005 से 2007 में स्वीकृत 454 पद पर शिक्षाकर्मी वर्ग 3 की भर्ती की गई. दिव्यांगता अनुभव, खेल कूद और एनसीसी जैसे कैडेट के फर्जी दस्तावेज के जरिये नौकरी हासिल करने की शिकायत की जांच 2016 में तत्कालीन जिला सीईओ के नेतृत्व में गठित कमेटी ने की.
जांच में 322 अभ्यर्थी उपस्थित हुए इन्हीं में से 139 का दस्तावेज सही होना बताया गया. 129 को फर्जी बताकर कमेटी ने नियुक्ति निरस्त करने कहा. इसी में से 65 के दस्तावेज सम्बंधित संस्थान को परीक्षण के लिए भेजने कह दिया.
इस प्रतिवेदन के बाद मामले में क्या हुआ कहीं जिक्र नहीं, न तो सम्बन्धितों को कोई नोटिस तामिल की गई, न ही गोपनीय चरित्रावली में कार्रवाई की कोई जिक्र की गई. तत्कालीन कमेटी की दोष पूर्ण जांच के अलावा कई विषंगतिया सामने आईं. इसी वजह से निरस्त करने की कार्यवाही लंबित है.
कारण 2- 132 की जांच अधर में लटकी है
2016 के जांच में जो 132 लोग शामिल नहीं हुए उनके पाक साफ होने पर संशय बना हुआ है. सवाल यह भी है कि इनकी जांच पिछले 8 साल से लंबित क्यों है. जांच के दायरे में होने के बावजूद जो लोग शामिल नहीं हुए, उन्हें पदोन्नति सूची में शामिल नहीं करने जनपद सीईओ के पत्र के बावजूद उनका नाम सूची में शामिल है.
सूची को डीईओ ने विवादास्पद कर पदोन्नति प्रकिया को दूषित कर दिया है. पूर्व में जिन्हें जांच का जिम्मा मिला, वे अपने रिश्तेदार और निजी स्वार्थ के चलते ऐसे लोगों के नाम को कार्रवाई से हटा दिया था, जिससे ऐसे दर्जन भर लोग कार्यवाही के दायरे से बाहर हो गए.
लगातार हो रहे ब्लैकमेलिंग के शिकार
मैनपुर शिक्षाकर्मी भर्ती कांड के न्यौक्ताओ पर कानूनी कार्रवाई हो चुकी है. बावजूद मामला विगत 18 वर्षों से दस्तावेजों के पेंच में फंसा हुआ है. इन 18 साल में अधर में लटके कर्मियों को निजी हो या सरकारी क्षेत्र या फिर जनप्रतिनिधियों से कई दफे ब्लैक मेलिंग का शिकार होना पड़ा है. सिलसिला अब भी रुका नहीं है, जबकि इन सभी का संविलियन से लेकर नियमितीकरण तक हो चुका है.
नियुक्ति मामले के सारे रिकॉर्ड भी जल कर खाक हो चुका है. इतने साल की नौकरी में कर्मियों का कानूनी पक्ष भी मजबूत हो चुका है. जांच जांच के खेल के दरम्यान मानसिक रूप से परेशान होकर कई कर्मियों की मौत भी हो चुकी है, कुछ ने तंग आकर नौकरी तक छोड़ दी है. संचनालय स्तर पर जांच हुई तो मामले में पारदर्शिता होने व प्राकृतिक न्याय की उम्मीद जाग गई है.
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